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सोमवार, 14 मार्च 2016

मैं और मेरी कविता





बस कुछ शब्द
और कुछ भाव 
एक कविता को जन्म देते है
कविता के पैदा होते ही
जीत का एहसास होता है
कभी उस जन्मी कविता को
घुप अँधेरे में रहने को
विवश होना पड़ता है
कभी उसे उसकी
प्रेरणा के सपुर्द कर
खुद को मुक्त कर देता हूँ
कभी उसे स्वतंत्र छोड़ देता हूँ
कभी उसे कोई
चाहने वाला अपना लेता है  
कभी मेरी कविता
विजय पताका बन हर दरवाजे पर
दस्तक देती आगे बढ़ती जाती है

कविता के चारों ओर
देख रहा हूँ कुछ जश्न सा
जश्न में शामिल कुछ अपने
जिंदाबाद जिंदाबाद
के नारे लगाते हुए पीछे चल रहे है
कुछ उद्देश्य से अभिज्ञन्य
बस एक भीड़ और
उसकी भेड़चाल में शामिल
कुछ चेहरे उछल उछल कर
शामिल होने की गवाही देते

देख रहा हूँ
जलसा थोड़ा आगे बढ़ा
और भीड़ में से
कुछ इधर उधर बिखर गए है
शायद कही से कोई आवाज़
उन्हें रिझाने लगी है
मैं और मेरी कविता
कुछ चेहरों को तलाशती रह जाती  
मुड़ कर उन्हें देखना चाहते है
पर वे ओझल है अब

हाँ उस भीड़ से
कुछ लोग अब आगे खड़े है
दोनों बाहे फैलाए
मेरा और कविता का
स्वागत करते है  
कुछ मेरे हौसले की
पीठ को थपथपाते है
शायद उनमे मेरी सोच को
समझने का हुनर है
या शब्दों और भावों के पारखी है  
या फिर वे जौहरी है
जो कीमत भी जानते है
और तराशते भी है
मैं और मेरी ये कविता
उन्हें प्रणाम करती है
उन पर गर्व करती है  
और ये कविता
उन्हें ही समर्पित है

-       प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १४/३/२०१६

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