पृष्ठ

रविवार, 27 मार्च 2016

लेकिन.....




आस कुछ थी मुझे, सूर्य की पहली किरण से
लेकिन
ढ़लता दिन और शाम उम्मीदों पर ढलने लगी

मैं सोच रहा था आज, भाव अनुबंध के लिखूं
लेकिन
छंद,  रिसते बंधन के कागज़ पर उभरने लगे

मैं गुनगुना रहा था, गीत मिलन और प्यार के
लेकिन
बोल विरह के गूँज कर, शोर चारों ओर मचाने लगे 

इन्द्रधनुष दूर क्षितिज पर, मन से भी दिखता था
लेकिन
उड़े अब रंग,  रंग काला फिर उस पर चढ़ने लगा

एहसास में, मौसम बसंत का आने को था बैचेन
लेकिन
आकर पतझड़ ने, नियम वो कुदरत का बदल दिया

आस मुलाक़ात की,  सावन के रंगों से स्वागत की
लेकिन
बरसात हुई बेरुखी की,  रंगों को होले से मिटा गई


                                    -प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २७/३/२०१६ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...