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सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

मिलन




सच है
जैसी हमारी दृष्टी
वैसी ही सृष्टि नज़र आती है
और
प्रकृति में ही छिपा है परमात्मा
उस प्रभु से, उस परमात्मा से
से मिलना हर कोई चाहता है
प्रकृति को छोड़
देवी देवताओं - सबकी चापलूसी करते है
असंख्य मिन्नतें कर
अपने लिए पाना चाहते है
तेज गति से
धन. पद. प्रतिष्ठा पाना चाहते है

हम आज
औपचारिकता पूर्वक
अराधना, पूजा और अर्पण कर
रीति रिवाजो को दोहरा कर
प्रभु से मिलने का
उसकी अनुकम्पा का
सहज मार्ग ढूंढना चाहते है
बस हृदय से आवाज़ नहीं उठती
हृदय से समर्पण नही है
हृदय में सच्चाई नही है
सत्य होना ही समर्पण है
जो हो वही रहना ही सत्य है

हम
अंतकरण में अँधेरा रख
बाहर उजाला करना चाहते है
जबकि
झूठ का तिलिस्म स्वयं को
स्वयं से दूर करता है
समर्पण के लिए
मन में बसे
हर आवरण को हटाना जरुरी है
उसके अंदर छुपे हर मुखौटे को
उतार फेंकना जरुरी है
स्वयं को शून्य कर
पूर्ण तक पहुँचा जा सकता है
सत्य को पाया जा सकता है
फिर परमात्मा यानि अंतरात्मा से
श्रद्धा सहित मिल सकते है
इस मिलन का होना ही
पूर्ण होना है ......


-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३१/१०/२०१६

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