पृष्ठ

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

भीड़




भीड़ का बोलबाला है 
वरना लगा सब जगह ताला है 
चाहे दुकान हो या रिश्ते 
भीड़ का अनुसरण कर
इंसान बिक जाता है
इंसान बिछ जाता है
इंसान भीड़ का सत्य नही जानता
लेकिन भेड़चाल में कदम मिला
अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है
भीड़ क्या कहती है
भीड़ क्या सुनती है
भीड़ क्या चाहती है
इंसान ने स्वयं को भीड़ के
आकर्षण वाले खूंटे से बाँध लिया है
फिर चाह कर भी मुक्ति नही मिलती
क्योंकि यह खूंटा बाहर ही नही
अंदर भी पेंठ बना लेता है
भीड़ में आप हो,
या भीड़ आपके लिए हो
दोनों ही
एक दूजे के परिचायक नज़र आते है

मैं इसी भीड़ का हिस्सा हूँ
यह जानते हुए भी
कि
भीड़ तो भ्रम है
भीड़ तो मिथ्या है
लेकिन
कल इसी भीड़ को
अपने लिए खड़ा करना चाहता हूँ
अपने साथ देखना चाहता हूँ
बिकता है इंसान
केवल पैसो से नही
भावो और स्वार्थ की
महंगी बोली लगती है यहाँ
टूट जाते है रिश्ते
दल बदलू नेताओं की
आत्मा लिए रिश्ते
बस नेता की तरह
अभिनेता बनना सीख लो
भीड़ को खुद से जोड़ लो .......

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ८/११/२०१६




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...