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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

ये लोग ....





आज
मैं अपने धर्म की
बात नही कर सकता
अपने संस्कार और संस्कृति
की बात नही कर सकता
मेरे अपने धर्म के लोग
जो बुद्धिजीवी कहलाते है
उनको भी मेरा धर्म अब
साम्प्रदायिक लगता है
मेरे धर्म, संस्कृति और संस्कार
पर जो अत्यचार हुआ या हो रहा है
वह दूसरे धर्म की आजादी है
हमें चुप बैठकर
उनकी बकवास सुननी है
उन्हें कुछ भी कहने
लिखने की अभिव्यक्ति है
बस मैं कुछ कह दू तो
अपने ही मुझे काटने दौड़ते है
अपने इतिहास को ठेंगा दिखाते है
उन्हें अलग दिख उल्लू सीधा करना है
वही हमसे देशभक्ति का सबूत मांगते
देश को बेइज्जत करते बेईमान लोग

अल्प्संख्यंक के नाम पर
उन्हें ही कमजोर करते ये देशद्रोही
जानबूझ कर
देश से गद्दारी करते है
देश के
टुकड़े करने की स्वतंत्रता चाहते है
आतंकियों को
इंसाफ दिलाना चाहते है
देश और अदालतों को कोस कर
जमानत के लिए
उसी अदालत में जाते है
देश को
तबाह करने की बात करने वाले
खुद को
देशभक्त साबित करने में लगे है

बिका हुआ मिडिया,
बन राजनीति का मोहरा
ब्रेकिंग न्यूज में
दिखता चरित्र उनका दोहरा
टीआरपी के नाम पर,
ब्रेकिंग सनसनी फैलाते
नेताओ को
कुछ उल्टा कहने को मजबूर करते
पीछे घूम घूम कर
‘बाईट’ लेते कुछ पत्रकार
अपने दिमाग से पूछ
उनसे बुलवाते ‘जर्नलिस्ट’
केवल है ये खेल,
मिलता  टीआरपी का ‘क्रेडिट’
राई का पहाड़ बनाते
मिडिया के स्वतंत्र लोग

सोचता हूँ
कैसा खून बहता है इनकी रगों में
मज़ा आता है जिन्हें
अपनों के ही खून से खेलते हुए
हड़ताल के नाम
अपना ही देश नुक्सान करते हुए
भूल जाते है
खामियाजा खुद भी भुगतना होता है
अपने लोगो को
जात पात में बाँट, कुर्सी चाहते लोग
बहुसंख्यक होना
आज अपने ही देश में जुर्म लगता है
दुसरे धर्मो की तरह
ताल ठोक कर कहने में डरते लोग
और जो कह दे उन पर
साम्प्रदायिकता का लेबल लगाते लोग
शिक्षा को बांटते
संस्थानों में सेंध कर देशद्रोह को बढाते लोग  
शहीदों को मुंह चिढ़ाते
वोट के लिए राजनीति करते देशद्रोही लोग

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २८/२/२०१६

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