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सोमवार, 2 मई 2016

ये आग






ये आग
सदियों से
चली आ रही कहानी है
जंगल तुमको गर्मियों में
एक दिन झुलसना है
पहाड तुमको
हरियाली से
नाता तोड़ना है
और सूना होना है

एक चिंगारी
सैकड़ो एकड़ वनक्षेत्र को
जलाकर राख कर देती है
जंगल में आग लगती है
या फिर लगाईं जाती है  
आज़ादी से अब तक
आग रोकने और
त्वरित नियंत्रण में
असफल है व्यवस्था
या है ये कोई षड्यंत्र?
जलस्रोत की कमी से
जंगलो में नमी कम है
कार्बनिक पदार्थ का
ज्वलनशील होना तय है
प्रयावरण पर खतरे का भय है  

दावाग्नि में
स्वाहा होती है
अकूत वन सम्पदा और
जैव विविधिता पर
मंडराता है संकट
पारिस्थितिक तंत्र
हो जाता है गड़बड़
विलुप्तप्राय वनस्पतियों और
वन्य जीवो पर होता असर
प्रश्नचिन्ह
लगता इनके अस्तित्व पर
और स्थिति
पहाड़ो के जन जीवन पर
गहरी चोट कर जाती है

इस आग से
उत्पन काला कार्बन
पहुँच हिमालय की निचली श्रृंखलाओं में
विकिरण सोख लेता है   
उत्सर्जन कार्बन डाईआक्साइड
और ग्रीनहॉउस गैस का   
तापक्रम में वृद्धि कर
अवक्षेपण में बदलाव ला सकता है  
और
पिघलते ग्लेशियर खतरा बन
जमी नदियों को प्रभावित कर
परावर्तन क्षमता में बदलाव लाते है

हाँ यह सब सोचकर
हम कितना डरते है
साल दर साल क्षति होती है
फिर भी कुछ नही करते है
पहाड़ और जंगल
मानव रहित हो रहे है
अपने होने की दुहाई दे रहे है
और हम खड़े
सरकार, व्यवस्था को दोषी मान
केवल इंद्र देव को याद् करते है
आज बस इतना ही कहना है
जंगलो से प्रेम करना
हमें फिर से सीखना होगा.
अपनी अगली पीढ़ी की खातिर
वन सम्पदा, वन्य जीवन  
और पहाड़ के

जन जीवन की  खातिर 

प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल  २/५/२०१६ 
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