यूं तो माँ के लिए हर दिन कम है हर शब्द कम है फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ
रख कर सर गोदी में, कुछ पल
मैं सोना चाहता हूँ
पाने आशीर्वाद तेरा, चरणों
में सर झुकाना चाहता हूँ
पास रह कर, हर पल
वही वात्सल्य पाना चाहता हूँ
उम्र की परवाह नही, पास
तेरे बच्चा होना चाहता हूँ
बैठकर
पास तेरे, बिछड़े पलों का हिसाब देना चाहता हूँ
रूठे
थे जो पल मुझसे, उनसे तुझे मिलाना चाहता हूँ
सर
पर तेरे हाथो का, वही स्पर्श फिर पाना चाहता हूँ
तोड़
कर खिलौना कोई, तेरे आँचल में छिपना चाहता हूँ
भगवान
का रूप तुझमे, आशीर्वाद तेरा पाना चाहता हूँ
भूल
हुई जो मुझसे कोई, माफी तुझसे मांगना चाहता हूँ
ममता
त्याग की मूरत तू, जीना तुझसे सीखना चाहता हूँ
कर्तव्य
बोध का है स्मरण, लिपट तुझसे कहना चाहता हूँ
वक्त
की अनजानी दूरी को, तेरे समीप लाना चाहता हूँ
मन
के असंख्य पन्नो पर, तेरा नाम लिखना चाहता हूँ
भावो
के ‘प्रतिबिंब’ से उभरी, तस्वीर तेरी बनाना चाहता हूँ
देर
कितनी हो जाए माँ, लौट कर तेरे पास आना चाहता हूँ
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
८/५/२०१६