क्षितिज
पर
लालिमा
का बिखराव होते ही
नयनों
के
सपन
लोक से बाहर आते ही
हकीकत
से
सामना
होते ही वो आ जाती है
सूरज
की किरणें
उसे
सुनहरी ओढ़नी में सजा देती है
और
फिर .....
तन
मन पर
उसका
प्रभाव स्वत: ही नज़र आता है
खिला
सा चेहरा उसका
आँखों
के आगे तितली बन मंडराता रहता है
हर
रंग से सजी
उसकी
अदा आस पास रहने को मजबूर करती है
छू
लेने की चाह
तमन्ना
बन आगोश में भरने को मचल जाती है
देखो
न ....
शब्दकोश
के सारे शब्द
यहाँ
- वहाँ अपनी छाप छोड़ने को व्याकुल है
अर्थ
और भाव भी
सब
के हृदय पटल पर प्रभावित करने को तैयार है
अमर
प्रेम सी प्रियसी बन
तुम
मेरे दिन - प्रतिदिन और रोम रोम में व्याप्त हो
हाँ
तुम मेरा गौरव,
मेरा प्रेम "हिन्दी" हो .......
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प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल