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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

यहाँ वहाँ...




टुकड़ो टुकड़ो में प्यार 
अब तक ऐसी है अपनी यात्रा 
एहसासों की 
बहुत कम है मिश्रित मात्रा 
फिर भी तुम्हारी कही 
कई बातो में से 
कुछ एक को रेखांकित किया है
जिसे खुद ही बुदबुदाता हूँ 
भावनाओं का उबाल 
न जाने कितनी बार 
उबल कर बिखर गया 
यहाँ वहाँ

कई बार 
तुम्हारी लिखी रचनाओं को 
पढ़ा है 
इनमे बहुत बार खुद को ढूँढा है 
लेकिन नाकामी हासिल हुई 
थोड़ा बहुत 
किसी कोने में खुद को 
गिरा, असहाय महसूस किया है 
हाँ जो चाहता था खुद के लिए 
उसे सार्वजनिक रूप में 
लिखा हुआ नज़र आ ही गया 
यहाँ वहाँ

वक्त की बेहरमी और 
खुद की व्यस्तता में भी 
सुकून ढूँढने वाला 
तन - मन आज 
नज़र फेरने में 
पहले स्थान पर है 
लम्बे सफर में 
उतार चढ़ाव का वेग 
अपनों की 
पहचान कराने में सक्षम है 
फिर भी 
 एक भरोसे से भी
बिखर जाता है अस्तित्व 
यहाँ वहाँ

गागर में सागर लिए 
एहसास का गुलदस्ता
ख़ूबसूरत नज़र आता है 
लेकिन
भविष्य के दर्पण में
'प्रतिबिम्ब' 
धुंधला नज़र आता है 
 साथ होकर भी
गुलाब और कांटे
साफ़ साफ़ नज़र आते है 
गुल्दस्ते के कुछ फूल 
शायद बिखर गए है 
यहाँ वहाँ
-
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १८/०२/२०१७

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