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रविवार, 31 दिसंबर 2017

~ सुना है ~







सुना है
कुछ लोगों का भी
कहना है कि
मैं भाव खाने लगा हूँ
लगता भी होगा 
क्योंकि अब मैं
उनके भावो के बहकावे में नही हूँ
उनके शब्दों का गुलाम नही हूँ
उनकी आवाज को सुनता नही हूँ
हाँ सच है
उनके ठहराए नियमों से विलग
अपने नियमो का
निष्ठापूर्वक पालन करता हूँ 
अपनी दुनियाँ मे
चुने हुए अपनों के साथ
यहाँ तक कि आभासी दुनिया में
स्वछंद विचरण करता हूँ
दूसरो की खुश की चाह न कर
खुद मे ख़ुशी की
तलाश मे निरंतर प्रयासरत हूँ 

हाँ, प्रेम, मान - सम्मान सब था
जब तक रिश्ते मे इज्जत थी
जब तक स्नेह की डोर बंधी थी
बनते बिगड़ते अहसासों की कद्र थी 
रिश्ते मे पवित्रता का समागम था  
एक ख़्वाब के टूटने का भय था
एक व्यक्तित्व को खोने का डर था
अपने का साथ छूटने की कशमकश
रिश्ते को मजबूती प्रदान करती थी

दायरा न रखा, न बनाया था
लेकिन
स्वचेतन से मर्यादित होकर
हर व्यक्तित्व को
उसके स्थान पर
आदर या स्नेह से सदा संवारा
लेकिन अब
अपना अपमान मुझे नही गँवारा  


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०.११.२०१७

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