पृष्ठ

शनिवार, 21 जनवरी 2017

दो शब्द





दो शब्द  ....

एक रास्ता
दो राहें 
अनजानी सी

पग भरती
खामोश कशिश
मंजिल ढूंढती

बेरुखी संजोये
दर्द समेटे
जड़े विलुप्त

चलते चलते
सुन सका
केवल बेबसी 

रुखा प्रेम
उबलती नफ़रत
खाली गाँव

रोते पहाड़
रीती नदियाँ
दुश्मन पहाड़ी

दुश्मन भाषा
अपने पराये
भूमि शापित

भूलती बिरासत
लुप्त संस्कृति
भस्म संस्कार

नीति दूषित
खंडित राजनीति
पहाड़ पहचान


-         प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २१/०१/२०१७
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...