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बुधवार, 25 जनवरी 2017

उत्तर




उत्तर ...

मैं
बहुत सवाल करता हूँ न ?
खामोश रात के बीतते ही
सुबह से लेकर शाम तक
शोर
प्रश्नों की बौछार!!!
फिर भी तुम
बिना तंग हुए
स्थिति के मध्य्नज़र
देती हो बेहतर उत्तर
परिस्थिति से
सामना कराते उत्तर
प्रेम से सराभोर 
शरीर के रोम रोम से
उभरते अहसास
बेहिचक
बन जाते है
सटीक उत्तर

बचपन की उत्सुकता लिए
तुम्हारे अनगिनत प्रश्न 
लेकिन मैं तो तुम हूँ
तुम्हारे ही प्रश्नों के
कहे अनकहे उत्तर
और सच कहूं
मैं  बनता जा रहा हूँ
केवल तुम्हारा उत्तर
और जीने लगा हूँ
वो दायरा
जिसकी सीमा तुम हो ....


-       -   प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २५/०१/२०१७

रविवार, 22 जनवरी 2017

अंधेरे में....



अंधेरे में....

तलाशता रहा
अंधेरे में खुद को
अंधेरे में वक्त को
अंधेरे में किस्मत को
मगर
कोई उत्तर न मिल पाया
अंधेरे से
गुफ्तगू करने की ठान
हिम्मत जुटा पुकारने लगा
आँखे बड़ी कर
खुद को निपुण समझ
अपना ही वजूद ढूँढने लगा

अँधेरे में
अपना अक्श, अपना ‘प्रतिबिम्ब’
पहचानने से इंकार करने लगा
अपनों की पहचान में
कई नाम लिख डाले
लेकिन भूल गया था
अँधेरे में काली स्याही  
को कौन पढ़ पायेगा
कौन हाथ जला
एक रोशनी
मुझ तक पहुंचा पायेगा

लेकिन यकीन है
एक सुबह तो आयेगी
अँधेरे को चीरती हुई
विशिष्ट रोशनी से
चिन्हांकित करते हुए  
तब वक्त भी
तब किस्मत भी
नहीं रोक पायेगी
सुबह को आने से
उन किरणों को
मुझसे मिलने से  

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २२/०१/२०१७
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