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मंगलवार, 30 मई 2017

रिसते रिश्ते



कर मेरे जज्बातों का कत्ल
लोग अब अंगुली मुझ पर उठाने लगे हैं
रूककर, थाम हाथ अपनों का
लोग अब कहीं अपनी जगह बनाने लगे हैं

अपने हालातों का कर जिक्र
वक्त की आड़ में रिश्ते रिसने लगे हैं
घोट गला मेरी चाहत का
वे ख़ुशी अपनी समेट मुस्कराने लगे हैं

कर दूर गलतफहमियों को
पा लिया सबने, जो उनका था खोया
पर लगा इल्जाम सोच पर मेरी
मिला जितना, पल भर में जैसे मैंने खो दिया

दूरी बना कर साथ चलना
एक अजब रिश्ता उनकी खुशी ने बना लिया
नहीं मंजूरी हमें कुछ कहने की
मौन को मेरे हर प्रश्न का उत्तर बना लिया

माना जिसे और अपना कहता रहा
मेरे बुरे वक्त में वो लोग हमसे दूर जाते रहे
थी उम्मीद जहाँ मिलन की ‘प्रतिबिम्ब’
मगर वक्त संग वहाँ, फासले अब वो बनाते रहे

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/५/२०१७
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