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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

शेष रह गया जो ...

 


अलविदा हो रहा वर्ष
अंत में कुछ लिखना चाहता हूँ
पर आरम्भ कहाँ से करूँ 
सभी कुछ तो 
अंत की ओर अग्रसित है
जिज्ञासा प्रारम्भ है 
शास्वत सत्य तो अंत ही है 
और अंत में शेष बचता क्या है? 

अब तक ‘मैं’ लिखता रहा 
भावो को शब्द देता रहा
और ‘मैं’ लिखता रहा  
कुछ कहा और अनकहा भी
समाज भी और देश भी
संस्कृति और संस्कार भी
हास्य भी और परिहास भी 
सुख भी और दुःख भी
विकास भी और विनाश भी
प्रकृति भी और प्रलय भी
हिंदी प्रेम भी और मातृभाषा प्रेम भी
सत्य भी और असत्य भी  
प्रेम भी और विरह भी
विश्वास भी और अविश्वास भी 
आचार भी और विचार भी
अपमान भी और सम्मान भी
अंतर भी और समानता भी
मन का भी और अनमना भी
तर्क भी और कुतर्क भी
फिर भी कुछ रह गया शेष

लिखता रहा, गुणता रहा 
संवेदनाओं को भुनाता रहा 
अंगुलियाँ सब पर उठाता रहा 
नैतिकता दूसरों को पढ़ाता रहा
स्वयं को ‘मैं’ आगे बढ़ाता रहा
प्रश्न तुम पर खड़ा करता रहा
नाम ‘प्रतिबिम्ब’ लिखता रहा 
नाम फिर भी अपना तलाशता रहा
वर्चस्व अपना सदैव ढूंढता रहा 

नववर्ष में, नए जोश संग सोच लिखूँगा
नव चेतन मन की, बात नई लिखूँगा
आज जो लिखूँगा, नि:संकोच लिखूँगा
जो कहा वह लिखूँगा, पुन: लिखूँगा
रह गया जो शेष, वह सब लिखूँगा
शून्य हो जाने तक, ‘मैं’ पूर्ण लिखूँगा


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 31 दिसम्बर. 2022


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