सन १९७९ में जब पहली बार बारिश देख कर कुछ लिखने का मन हुआ तो शब्द कुछ इस तरह उभर कर आए थे। आज भी मेरी डायरी के पन्ने पर पहली कविता यही है।
प्रतीक्षा थी तेरी वर्षा रानी,
बहुत की तूने आनाकानी।
मोरो ने नाच कर दिखाया,
हमें वर्षा का संदेश सुनाया।
चारो ओर छा गई समां निराली,
घटा है छाई काली – काली।
चिडियों ने पंख फडफ़डाये,
बादल है अब गडगडाये।
जब आई बरखा रानी,
चारो ओर फैल गया पानी।
भर गये सब नदी तालाब,
चारो ओर खिले कमल गुलाब।
कोयल ने कू कू कर,
मन को सांतवना दी गाकर।
हरी भरी हुई है डालिया
पक्षी करने लगे उनसे अठखेलिया।
हरियाली की यों आ गई बहार है,
खुश हुये सब नर नार है।
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
मुझे पसंद है
जवाब देंहटाएंएक छोटी सी चिड़िया
एक छोटा सा घर
एक छोटा सा पहाड़
एक सुख छोटा सा
सांस एक छोटी बस ज़रा सा अटकी हुई
पसंद है मुझे हरियाली
हरी घास की चोटियां
जहां छोटी सी दरांती से मेरी मां
घास काट रही है
जिसके साथ कट गई
एक छोटी सी बाघिन की पूंछ
एक छोटी सी पहाड़ी पर
चीख़ छोटी सी
बहुत बढ़िया अभिव्यक्त किया अपने भावों को.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंyes...bahut sundar prayaash thaa vo bhi pehla aur itna accha...aur aaj aap bahut accha likhtey hai....meine bhi pehli poem baraf pe likha tha...meri Diary mei bhi bahut likha tha par samay ke saath meri diary ke panne ud gaye.....Pachaniye mei kaon hoo.....
जवाब देंहटाएंsach varsha ka harsh bhara hai kavita mein ,sunder rahana,badhai
जवाब देंहटाएंसभी शुभचिन्तको का शुक्रिया इस हौसला अफजाई का..
जवाब देंहटाएंगुमनाम जी ...ये रहस्य तो आप ही सुल्झाये..