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शनिवार, 14 मई 2011

फेसबुक में ‘टैग’




फेसबुक तू और तेरा हर रूप लगे हैं हमें महान
कभी देता हमें खुशी, कभी कर देता हमें हैरान
चित्रो, नोट्स व वीडियो का करते आदान प्रदान
अपने ग्रुप व  पेज से कराते  एक दूजे को पहचान

फेसबुक  टैग का तूने किया है इनमें सुंदर प्रयोग
हमने  भी जब चाहा, किया इसका खूब  उपयोग  
बेझिझक कर देते हैं, हम सब में शामिल उनको
जिन्हें समझा मित्र या समझा है अपना जिनको

कुछ मित्र तो झाँकते भी नहीं चाहे कर लो कितने टैग
कुछ मन से, कुछ बेमन से लगा जाते हैं पंसद का भोग
कुछ मित्र टैग से झुँझला कर देते हैं लिस्ट से हमें दफा
सेटिंग वो बदल सकते नहीं लेकिन हम से हो जाये खफा
  
सीमा है टैग की वरना कितने हो जाते इससे परेशान
फिर भी ‘’टैग करो बिंदास, कर जाते स्नेही मित्र ऐलान
अपना जान कई मित्र कर जाये हमें खुश देकर प्रोत्साहन
कुछ मन से प्रतिक्रिया देते,करते नहीं इसका वो कोई गुमान

वैसे सच कहूँ, मेरे लिए टैग तो एक बहाना है
असल में बस कुछ पल आपसे यूँ रूबरू होना है
कुछ अपनी कहनी है और कुछ आपकी भी सुननी है
आज फिर टैग होंगे आप, ये कविता भी तो पढ़वानी है ।

   -     -   प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 13 मई 2011

मेरी कविता




इसमें मै भी हूँ
इसमे तुम भी हो
इसमे घर भी है
इसमे परिवार भी है
इसमे समाज भी है
इसमे देश भी है
और विश्व भी है

मेरी कविता मे सब बतिया है

एकांत मे
कलम लिखती जाती है
कभी इसमे
प्रेम जागृत होता है
कभी इसमें
आक्रोश दिखता है
कभी इसमें
कुछ् सवाल होते है
कभी इसमे
खुद उत्तर बन जाता हूँ
कभी इसमे
एक टीस उठती है
कभी इसमें
असहाय नज़र आता हूँ
कभी इसमे
खुशी है तो कभी गम है

मेरी कविता मे सब बतिया है

जहां तक मेरी नज़र जाती है
जहां तक मेरी सीमा दिखती है  
जहां तक मेरी सोच ले जाती है
जहां तक जबाब मिल जाते है

मेरी कविता मे सब बतिया है

मेरी कविता तो मौसम है भावो की
मेरी कविता तो प्रतिबिंब है भावो की
मेरी कविता तो अहसास है भावो की
मेरी कविता तो खुशबू है भावो की

मेरी कविता मे सबकी बतिया है


-       प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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