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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

होली के रंग में रंग


रंगीन दुनिया,ढूढे फिर भी
कौन सफेद या काला है
अपनो के रंगो में भी खोजे
कौन अपना कौन पराया है
अमीरी का रंग
बस चढता जाता है
गरीबी का रंग 
तो बस बिखरता जाता है


खून का रंग 
अब सस्ता हुआ
आंतक का रंग
चारो ओर फैलता रहा
भय  का रंग
रोज़ मौत देता रहा
छोड हिंसा का रंग 
इंसानियत को अपनाये


फूलो का रंग
फीका ना हो जाये
जंगल का रंग 
सूना ना हो जाये
प्रकृति का ये रंग
कहीं उतर ना जाये
सब एक हो जाये
ले शपथ इसे बचाये

ये दोस्त (हर इंसान) 
तेरे रंग का क्या कहना
मुझे तो बस 
तेरा रंग ही भाया है
तेरे हर रंग में रंग जाना है
छोड नफरत का रंग,
अब स्नेह रंग में रंग जाना है

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल 
अबु धाबी, यूएई

परिवर्तन संसार का नियम है




परिवर्तन संसार का नियम है
नियम तोड़ने के लिये ही बनते है
तोड़ना या तोड़ – फ़ोड़ जुर्म है
जुर्म की कोई न कोई सज़ा है
सज़ा जुर्माना हो या फ़िर कैद
कैद में जानवर हो या फ़िर इंसान
इंसान अच्छा हो या बुरा
बुराई का छोड़ दो अब दामन
दामन किसका पकड़े या छोड़े
छोड़ ना देना साथ तुम मेरा
मेरे हो या अपने कैसे पहचाने
पहचान थोड़ी हो या गहरी
गहराई का है क्या कोई पैमाना
पैमाना चाहे अब कुछ परिवर्तन
परिवर्तन संसार का नियम है।



- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी
(पुरानी रचना दूसरे ब्लाग से)
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