पृष्ठ

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

शेष रह गया जो ...

 


अलविदा हो रहा वर्ष
अंत में कुछ लिखना चाहता हूँ
पर आरम्भ कहाँ से करूँ 
सभी कुछ तो 
अंत की ओर अग्रसित है
जिज्ञासा प्रारम्भ है 
शास्वत सत्य तो अंत ही है 
और अंत में शेष बचता क्या है? 

अब तक ‘मैं’ लिखता रहा 
भावो को शब्द देता रहा
और ‘मैं’ लिखता रहा  
कुछ कहा और अनकहा भी
समाज भी और देश भी
संस्कृति और संस्कार भी
हास्य भी और परिहास भी 
सुख भी और दुःख भी
विकास भी और विनाश भी
प्रकृति भी और प्रलय भी
हिंदी प्रेम भी और मातृभाषा प्रेम भी
सत्य भी और असत्य भी  
प्रेम भी और विरह भी
विश्वास भी और अविश्वास भी 
आचार भी और विचार भी
अपमान भी और सम्मान भी
अंतर भी और समानता भी
मन का भी और अनमना भी
तर्क भी और कुतर्क भी
फिर भी कुछ रह गया शेष

लिखता रहा, गुणता रहा 
संवेदनाओं को भुनाता रहा 
अंगुलियाँ सब पर उठाता रहा 
नैतिकता दूसरों को पढ़ाता रहा
स्वयं को ‘मैं’ आगे बढ़ाता रहा
प्रश्न तुम पर खड़ा करता रहा
नाम ‘प्रतिबिम्ब’ लिखता रहा 
नाम फिर भी अपना तलाशता रहा
वर्चस्व अपना सदैव ढूंढता रहा 

नववर्ष में, नए जोश संग सोच लिखूँगा
नव चेतन मन की, बात नई लिखूँगा
आज जो लिखूँगा, नि:संकोच लिखूँगा
जो कहा वह लिखूँगा, पुन: लिखूँगा
रह गया जो शेष, वह सब लिखूँगा
शून्य हो जाने तक, ‘मैं’ पूर्ण लिखूँगा


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 31 दिसम्बर. 2022


रविवार, 25 दिसंबर 2022

आवरण



मेरा सनातन व्यक्तित्व, कुछ बदला सा है 
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है 
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है 
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है 
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं 
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है 
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है 
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है 
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है 
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है

आकांक्षाओं और स्वार्थ से, पोटली भरी है 
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है  
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है 
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं 
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है 
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है 
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है 
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है 
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है 

संस्कृति, संस्कार और साहित्य धरोहर है 
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है 
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है 
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है 
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है 
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है 
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है 
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 25 दिसम्बर 2022


मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

रिश्तों का आधार




 

रिश्तों का अनकहा सच
आँखों का पानी बतलाता है  
सच रिश्तों का फिर भी
अपनी कलम से लिखता हूँ 
बनते रिश्तों में प्रेम अनायास ही 
भीनी-भीनी खुश्बू बिखेरने लगता है 
रिश्ते बनते ही प्रेम छलकने लगता है 
अपनों की शान में शब्दकोष के 
समानार्थी शब्द हर कोने-कोने से 
अविरल निकलने लगते हैं 
परिभाषाओं के पहाड़ 
अलंकारो और विशेषण से 
अलंकृत हो कर सजते हैं 
विश्वास व् सरंक्षण करते शृंगार
सच कहूँ इस प्रकाट्य अवधि में
नि:स्वार्थ सा लगता है हर भाव
समर्पण होता तन, मन, धन
और संवेदनाओं से पुरुस्कृत लोग 
परमार्थ सा पुण्य कमा लेते हैं 


हम फर्ज रिश्तों का निभाते हैं
खुद पर कर्ज समझ तोलते हैं 
लेकिन इसी रिश्ते में ‘कुछ’
स्वार्थ के शब्दों से, बोली लगाते हैं 
कुछ पीठ पर वार कर जाते हैं
देखता हूँ मोम से पिघलते रिश्ते 
रिश्तों की तपिश में जलता मजबूर धागा  
शायद स्वार्थ हित से ओत प्रोत नहीं जानते 
शून्य हो जाता है सब किया हुआ और
पुण्य जितना भी अब तक बटोरा हुआ 
जिस दिन सब जानते हुए भी 
परार्थी से स्वार्थी बन जाते है लोग  


नए रिश्तों की तलाश में भी
पुराने रिश्ते तोड़ जाते हैं लोग  
कुछ बोझ का करा अहसास 
कुछ बना कर लम्बी दूरी  
रिश्ते को तिलांजलि देते लोग
कुछ राग अपनत्व का गाते-गाते 
द्वेष भाव पर उतरते अपने ही लोग 
रिश्तों की गरिमा की आंच अब
हर मौसम में ठंडी होने लगी है 
इन सबसे होता यही चरितार्थ है 
कि रिश्तों का आधार ही स्वार्थ है    
है कड़वा ‘प्रतिबिम्ब’, पर सत्य है
रिश्तों में उभरता यही पूर्ण सत्य है
 
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, १८ अक्टूबर, २०२२ 

गुरुवार, 1 सितंबर 2022

हिन्दी साहित्य भारती "अंतरराष्ट्रीय" - कार्यकारिणी की वार्षिक बैठक (झाँसी, उत्तर प्रदेश )

 


हिन्दी साहित्य भारती "अंतरराष्ट्रीय" की केन्द्रीय कार्यकारिणी/कार्यसमिति की वार्षिक बैठक - अपने उद्देश्यों की पूर्ति व् संस्था के विस्तार हेतु  २७-२८ अगस्त २०२२ को झाँसी के "होटल द मारवलस" सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई. अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह आयोजन आदरणीय केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी के नेतृत्व में, हिन्दी साहित्य भारती के केन्द्रीय कार्यालय प्रभारी श्री निशांत रवीन्द्र शुक्ल जी व् टीम के द्वारा शानदार प्रयासों, स्वागत, सम्मान व् आतिथ्य सत्कार के साथ इस बैठक को अविस्मरणीय बना दिया. देश - विदेश से आये हुए सभी पदाअधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलना हुआ.  





झाँसी में प्रवेश करते ही हिन्दी साहित्य भारती के पोस्टर बैनर आपका स्वागत करते हुए प्रतीत हो रहे थे. पूरा शहर मानो "हिन्दी साहित्य भारती" अंतरराष्ट्रीय के देश विदेश से आ रहे अतिथियों का दोनों बाहें फैलाकर आवाभगत कर रहा हो. एक उत्सव सा माहौल झाँसी की फिजाओं में नज़र आ रहा था. ऐसे में हिन्दी साहित्य भारती के साधक के रूप में गर्व की अनुभूति हो रही थी. 

  







प्रथम दिवस बैठक का शुभारम्भ दीनदयाल सभागार में हुआ जिसमें सभी को महामंडलेश्वर निरंजनी अखाडा, पू. स्वामी शास्वतानंद जी गिरी, पूर्व महामहिम राज्यपाल कपरन सिंह सौलंकी, पूर्व महामहिम डॉ शेखर दत्त जी, राष्ट्रीय संयोजक ( प्रज्ञा प्रवाह) संघ प्रचारक श्री जे नन्द कुमार जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी का सानिंध्य प्राप्त हुआ.  इस सत्र का संचालन डॉ रमा सिंह जी व् सुश्री अचला भूपेन्द्र जी ने किया. 










इसके तत्पश्चात सभी अतिथियों द्वारा राम - लक्ष्मण की परम्परा के वाहक राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त व् सियाशरण गुप्त जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि की. इसके साथ साहित्य सदन परिवार द्वारा सभी अतिथियों का अभिनंदन किया गया. झाँसी की शान, वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के किले, संग्रहालय व् रानी महल का भ्रमण करने का मौका भी मिला. 



होटल द मारवलस में भोजन के उपरांत द्वितीय सत्र में पिछले अधिवेशन ( हंस राज कालिज ,दिल्ली में आयोजित) में कार्यवाही की पुष्टि आदरणीय आचार्यदेव जी द्वारा की गई. संगठन के विधान, उद्देश्य व् हमारी भूमिका को डॉ. रवीन्द्र शुक्ल जी द्वारा बताया गया. आदरणीय श्री जे नन्द कुमार जी ( राष्ट्रीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह ) का इस सत्र में मार्गदर्शन व् इस यज्ञ में उनके सहयोग का आश्वासन मिला. संचालन डॉ ज्योति गोगिया जी ने व् परिचय डॉ भारती मिश्र जी द्वारा किया गया. 



तृतीय सत्र में संचार माध्यमो का उपयोग पर चर्चा रही. संचालन डॉ सुनीता मिश्र जी व् परिचय सुश्री प्रतिभा त्रिपाठी जी ने दिया. विषय प्रवर्तन डॉ आनंद उपाध्याय जी द्वारा किया गया. मुख्य वक्ता प्रो. संजय कुमार द्विवेदी जी महानिदेशक जनसंचार संसथान, भारत सरकार थे. उन्होंने संचार माध्यम की उपयोगिता को लेकर कुछ आंकड़ो के द्वारा इसकी सफलता पर प्रकाश डाला और हिन्दी साहित्य भारती को सुझाव व् शुभकामनायें दोनों प्रेषित की.


रात्रि भोजन के पश्चात् कवि सम्मलेन का कार्यक्रम रहा जिसमे उत्कृष्ट व् ओजस्वी कवियों ने कविता पाठ किया. कार्यक्रम लगभग २ बजे समाप्त हुआ.  


२८ अगस्त को पहले सत्र में वित्तीय प्रबन्धन पर जानकारी व् चर्चा रही. केन्द्रीय कोषाध्यक्ष श्री मयूर गर्ग ने हिन्दी साहित्य भारती न्यास के वित्तीय प्रबंधो पर रोशनी डाली, वित्तीय स्थिति व् भविष्य की रुपरेखा से अवगत कराया.  वक्ता के तौर पर डॉ रविन्द्र भारती ( पूर्व कुल सचिव), डॉ राजीव शर्मा जी (पूर्व आई ए एस) ने सुझाव व् प्रश्नों के उत्तर सहित समाधान भी दिए.



द्वितीय सत्र में संगठन विस्तार व् कार्यक्रमों की रूप रेखा पर चर्चा हुई. इस सत्र का सञ्चालन डॉ वागीश दिनकर जी ( अध्यक्ष, उत्तरप्रदेश) ने किया व् परिचय डॉ अजीत सिंह ( महामन्त्री, बिहार) ने किया. वक्ता व् विषय प्रवर्तन हेतु विदेश कार्यकारिणी के महामन्त्री श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ने अतिथियों को संबोधित किया व चर्चा प्रारम्भ की. हर स्तर पर अधिवेशन, कार्यकारिणी के सदस्यों के हर स्तर पर परिशिक्षण हो यह बात मुख्य रूप से उभर कर आई.

 

तृतीय सत्र में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अनुमोदन किया गया. इसके प्रस्तावक रहे डॉ करुणाशंकर उपाध्याय जी रहे व् सभी राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा इसका अनुमोदन किया गया.  संचालन श्री जगदीश सोनी जी द्वारा  व्  प्रो उमापति दीक्षित जी का सानिंध्य मिला.

भोजन के पश्चात दीक्षांत समारोह का आयोजन रहा. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार में रक्षा राज्य मंत्री व् पर्यटन मंत्री श्री अजय भट्ट जी रहे. मंच पर अन्य अतिथि पूर्व राज्यपाल डॉ शेखर दत्त जी, हिन्दी अकादमी गुजरात के अध्यक्ष पद्मश्री सम्मानित डॉ विष्णु पांड्या जी. दुबई से हिन्दी साहित्य भारती के संयोजक श्री भूपेन्द्र कुमार जी, मोरिशस से हिन्दी साहित्य भारती के अध्यक्ष डॉ हेमराज सुंदर जी, केन्द्रीय उपाध्यक्ष डॉ बुद्धिनाथ मिश्रा जी, केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी उपस्थित रहे.

डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी ने अजय भट्ट जी व् मंचासीन अतिथियों का स्वागत, अपनी राजनितिक यात्रा के अनुभव व् हिन्दी साहित्य भारती के उदय से लेकर वर्तमान तक की विकास यात्रा व् उद्देश्यों को सबके समक्ष रखा. अजय भट्ट जी ने हिन्दी साहित्य भारती के उद्देश्यों व् डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी के नेतृत्व के साथ उन्होंने हर संभव प्रयास व् साथ निभाने की बात कही. सभी साधको धन्यवाद किया. आभार ज्ञापन डॉ विनोद मिश्र ( केन्द्रीय उपाध्यक्ष ) जी ने दिया.

दीक्षांत समारोह में ही संकल्प समारोह का आयोजन किया गया था जिसमें सभी उपस्थित हिन्दी साहित्य भारती के पदाधिकारियों ने संस्था व् उसके उद्देश्यों के लिए निरंतर यथा संभव कार्य करने का संकल्प लिया. इस तरह सफल आयोजन झाँसी में सम्पन्न हुआ. 

 




झाँसी की यह बैठक अकल्पनीय, अनुप्रेरक व उद्देश्यों के अनुरूप सफल रही. इसका श्रेय केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी, निशांत रवीन्द्र शुक्ल, शुक्ल जी के परिवार के सभी सदस्यों, होटल द मारवलस व्  कार्यालय के सभी स्वयंसेवको को जाता है. सभी का हार्दिक आभार. 



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

महामन्त्री (विदेश कार्यकारिणी)



                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           





गुरुवार, 25 अगस्त 2022

रिश्ते और रास्ते





सच दुनिया का, रिश्तों में ही दुनिया है
कड़वा सच दुनिया का, इन रिश्तों में है

कभी इन रिश्तों में, रास्ते बदल जाते हैं
कभी इन रास्तों में, रिश्ते बदल जाते हैं

बाहर से रिश्ता, हर शख्स निभाता रहा
अंदर से रिश्ता, हर पल वो काटता रहा

रिश्तों में रिश्ते, मैं निभाता ही चला गया
रिश्ते में रिश्ता. दम तोड़ता ही चला गया

यहाँ कौन अपना कौन पराया, बात सही है
रिश्ते बनते व बिगड़ते हैं, हकीकत यही है

खोले थे राज जिनसे, उसी ने की मुखबरी है
शिकायत करूं कैंसे, रिश्तों की मजबूरी है

चेहरों में ले मिठास, खंजर दिल में होते हैं
कुछ रिश्तों में तो, यह मंजर आम होते हैं

साजिश समय की ‘प्रतिबिम्ब’, बड़ी गहरी है
रिश्ते और रास्तों की, कहानी अभी अधूरी है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, २५ अगस्त २०२२

बुधवार, 24 अगस्त 2022

निभाया करो

 




निभाया करो

ख्वाब जो देखे थे, उनसे बात किया करो
पल–पल जीवन , सोच तुम जिया करो

रहकर आस-पास, ओझल न रहा करो
प्रेम का हर रूप, तुम महसूस किया करो

गलतफहमियाँ, दरमियाँ में न पाला करो
अच्छा लगता है, मन से बात किया करो

अपनों को कभी, अनदेखा न किया करो
शब्द दो ही सही, पर बोल तुम लिया करो

महकेगा ये जीवन, अहसास किया करो
चाहत की आस, बेझिझक तुम कहा करो

दर्पण के सामने, सोलह शृंगार किया करो
देख रहा हूँ मैं तुम्हें, यूं भान तुम किया करो

प्रेम का मेरा हर गीत, होंठों में रखा करो
याद जब भी आये, गुनगुना तुम लिया करो

दिल से दिल की बात, समझा-कहा करो
“प्रतिबिम्ब” से रिश्ता, तुम यूं निभाया करो

- प्रतिबिम्ब २४ अगस्त, २०२२ 





शनिवार, 20 अगस्त 2022

रोनाल्ड रॉस - उत्तराखण्ड में जन्मे थे नोबल पुरुस्कार विजेता

 



रोनाल्ड रॉस

आज विश्व मच्छर दिवस है... २० अगस्त १८९७ को ही ब्रिटिश डॉक्टर रोनाल्ड रॉस ने मादा एनाफिलीज मच्छर की खोज की थी, जो मलेरिया का कारण है. यही वजह है कि इस दिन को विश्व मच्छर दिवस (World Mosquito Day ) के रूप में याद किया जाता है.  इसलिए रोनाल्ड रॉस को भी याद करना बनता है.

उत्तराखण्ड देवभूमि में जहाँ देवी देवताओं का निवास है वहीँ यहाँ न जाने कितने साहित्यकार, राजनेता, कवि, लेखक, प्रशासक और वैज्ञानिक हुए हैं. १९०२ में नोबल पुरुस्कार विजेता ( चिकित्सा तथा मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन चक्र के अन्वेषण करने वाले)  रोनाल्ड रॉस का जन्म भी कुमाऊँ के अल्मोड़ा में, उत्तराखण्ड की इसी धरती पर हुआ था.

बात १८५७ की है. मंगल पांडे द्वारा एक अंग्रेज अधिकारी को गोली का निशाना बना देने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य में चारो तरफ  भय का माहौल बन गया था. ब्रिटिश अधिकारी मेजर जनरल हियरसी के आदेशानुसार या कहे सलाह अनुसार बहुत से अंग्रेज अधिकारी उत्तराखण्ड की पहाड़ियों - गढ़वाल कुमाऊँ की तरफ चल पड़े थे. सर कैम्पबैल क्लेब्रान्ट रॉस अपनी पत्नी मलिदा चारलोटे एल्डरट के साथ नाव से बनारस पहुंचे. वहां वेश भूषा बदलकर वे मुरादाबाद, चिल्किया रामनगर व् भुजान होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे. अल्मोड़ा छावनी में उन्होंने अपना डेरा जमाया.  भयंकर गर्मी और ब्रिटिश विरोध की ज्वाला में अंग्रेजो के लिए यह उपयुक्त स्थान था. यूं तो थोमसन हाउस अल्मोड़ा स्वामी विवेकानंद की यादों से जुड़ा है लेकिन कहीं कहीं यह बात भी सामने आई है की यहीं १३ मई १८५७ को रोनाल्ड रॉस का जन्म हुआ. रॉस का बचपन अल्मोड़ा में बीता और दस वर्ष की आयु में उन्हें आगे पढाई हेतु लंदन भेज दिया गया. मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् अपनी जन्मभूमि व् भारत से स्नेह के करना वे १८८१ भारत लौट आये. १८८३ में वे एक्टिंग गेरीसन सर्जन आफ बंगलौर बने. यहाँ उन्होंने मलेरिया के मच्छर को कंट्रोल करना व् पानी की ओर उनको सिमित करना जान लिया था. १८८८ में वे पुन इंग्लैण्ड गए और वहां रायल कालिज के सर्जनो व् प्रोफेसरों के साथ उन्होंने जीवाणु विज्ञान का गहन अध्ययन किया. १८८९ में वे पुन: भारत आये. 

उन्हें कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) या बॉम्बे (वर्तमान मुम्बई) के बजाय कम प्रतिष्ठित मद्रास प्रेसिडेंसी में काम करने का मौका मिला. वहां उनका ज्यादातर काम मलेरिया पीड़ित सैनिकों का इलाज करना था. क्विनाइन से रोगी ठीक तो हो जाते, लेकिन मलेरिया इतनी तेजी से फैलता कि कई रोगियों को इलाज नहीं मिल पाता और वे मर जाते.

मलेरिया से पीड़ित क्षेत्र सिगुर घाट में  अपनी शोध छुट्टियों के दौरान रास को मलेरिया हुआ लेकिन क्विनाइन से उन्होंने अपने को ठीक किया. कोलकता  में वैज्ञानिक किशोरी मोहन बन्नोपाध्याय की सहयता से उन्होंने मच्छरों को एकत्र किया. ऐसे ही कुछ नाम उभर कर आते है डॉ रत्न पिल्लई उनके नौकर अब्दुल वहाब व् लक्ष्मण जिन्होंने रोस को अनुसन्धान करने में सहयता की और फर्ज निभाया. २५ मार्च १८९८ में उस मच्छर की खोज की जिस से मलेरिया फैलता था. पच्चीस साल तक भारतीय चिकित्सा सेवा के दोरान अपनी कर्तव्यपरायणता का बखूबी निर्वहन के पश्चात सेवा से त्यागपत्र दे दिया था और १९०२ में उन्हें औषधि विज्ञान के लिए नोबल पुरुस्कार मिला. सन् १९२३ में अल्बर्ट मेडल तथा मैंशन मेडल से भी सम्मानित किया गया था १९२६ में उनके योगदान तथा उपलब्धियों के सम्मान में रॉस संस्थान और अस्पताल स्थापित किया गया.

१६ सितम्बर १९३२ में रोनाल्ड रॉस ने आखरी साँस ली.

रोनाल्ड रॉस का अल्मोड़ा में जन्म और भारत में अनुसन्धान आज कहीं - कहीं पढने को मिलता है. लेकिन मैं समझता हूँ उन के जन्म स्थान अल्मोड़ा व् भारत में उनके अनुसंधान को और विस्तार मिलना चाहिए, लोगो तक पहुंचाना चाहिए. 


शनिवार, 6 अगस्त 2022

6 अगस्त - बड़थ्वाल कुटुंब स्थापना दिवस

 

६अगस्त का दिन मेरे लिए ही नहीं बल्कि पूरे बड़थ्वाल परिवार के लिए अविस्मरणीय रहेगा. एक परिवार सा दृश्य, अपनत्व का भाव लिए लगभग ४०- ४५ गाँवों के बड़थ्वाल कई स्थानों पर इस आयोजन में शामिल हुए.
मुख्यत: यह आयोजन दिल्ली, देहरादून, कोटद्वार, पौड़ी व् मुंबई में रहा. कई स्थानों पर एक दो परिवार ने मिलकर भी इस अवसर को मनाया.

जो सपना लिए ६ अगस्त २००७ को लेकर चला था वो आज साक्षात् देख कर आप मेरी ख़ुशी का अन्दाज लगा सकते हैं. Barthwals Around the World से हुई शुरुआत आज बड़थ्वाल कुटुंब का रूप ले चुकी है.

कार्यक्रम इस प्रकार रहे - एक झलक
दिल्ली:
कार्यक्रम गढ़वाल भवन, दिल्ली के अलकनंदा हाल में हुआ


पंजीकरण प्रक्रिया, तिलक से अतिथियों का स्वागत व चाय नाश्ते के पश्चात् ११.१५ पर संचालक पंकज बड़थ्वाल ने भूतपूर्व सचिव वित् मंत्रालय भारत सरकार व् कुटुंब के अध्यक्ष श्री राजकुमार बड़थ्वाल ( डांग ), महा सचिव प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ( सिराई ), वरिष्ठ पत्रकार श्री हरीश बड़थ्वाल ( खण्ड ), श्रो मदन मोहन बड़थ्वाल ( सिराई )भूतपूर्व प्रबन्धक भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड BEL, भारत सरकार का परिचय देकर अतिथियों का स्वागत किया. स्वागत स्वरूप माला और टोपी पहनाई गई.

उपस्थित वरिष्ठ बड़थ्वाल बंधुओं ने दीप प्रजल्वित किया और महिलाओं के द्वारा मांगल गीत के पश्चात् औपचारिक शुरुआत हुई.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ने कुटुंब सोच उद्देश्य व् किये जाने वाले कार्यों से सभी को अवगत कराया. तत्पश्चात मुख्य अतिथि हरीश बड़थ्वाल व् मदन मोहन बड़थ्वाल ने कार्यक्रम कि बधाई के साथ ही इसे महान कार्य बताया और सबसे साथ आकर जुड़ने और इसे आगे बढ़ने के लिए आवाहन भी किया और सहयोग के लिए भरोसा भी.



इसके तत्पश्चात उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं ने कुटुंब को लेकर ख़ुशी जाहिर की व् अपनी व् सुझावों को सबके मध्य नज़र रखा.

अंत में अध्यक्ष राजकुमार जी ने सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का धन्यवाद किया. कुटुंब को लेकर उदेश्यों को लेकर अपने विचार रखे और भविष्य में कुटुंब कि ओर से किये जाने वाले आयोजनो को और अच्छे सुन्दरता से हर रूप से करने का भरोसा भी दिया.
दिल्ली के आयोजन को सफल बनाने में जिन व्यक्तित्वों का सहयोग रहा और काबिले तारीफ रहा उनमें मुख्यत: कार्यकारिणी के सह- कोषाध्यक्ष श्री कमलेश बडथ्वाल(बड़ेथ), श्री देवेन्द्र बड़थ्वाल ( खण्ड ), श्री नरेंद्र बड़थ्वाल ( गैर ), श्री पंकज बड़थ्वाल( बड़ेथ), श्री पंकज बडथ्वाल (क्वली), श्री राजेन्द्र बड़थ्वाल ( फर्सेगाल ) - आप सभी का हार्दिक आभार.

दिल्ली में सिराई, बड़ेथ ( सबसे अधिक ), क्वली, बुलोड़ी, बुडोली फर्सेगाल, पाली, डांग, तल्ला बसबा, रोहिणी तल्ली, गैर गाँव से उपस्थिति रही. प्रसन्नता हुई कि परिवार के कई बड़ो का आशीर्वाद कल हमें मिला.
कार्यक्रम का संचालन पंकज बड़थ्वाल ने बहुत सुन्दरता से किया.


सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओ ने संस्था के लिए समय व् सामर्थ्य के अनुसार तन - मन - धन से सहयोग का अपना आश्वाशन दिया और अपने गाँव के अधिक से अधिक लोगो को जोड़ने की प्रतिबद्धता भी दोहराई. यह हमारी सभी बड़ी सफलता है.

कार्यक्रम को यादगार बनाने हेतु सभी अतिथियों को एक की चैन व् पेन भेंट किया गया फोटोग्राफ हेतु श्री अनिल बड़थ्वाल जी का हार्दिक आभार.




हर घर झंडा, हर घर तिरंगा को लेकर भी कुटुंब के सदस्य राजेन्द्र भाई ने पहल की और कई सदस्यों ने तिरंगे और अन्य सामान ख़रीदे.

इसके बाद कुटुंब के सभी सदस्यों ने उत्तराखंडी खाने - भात, मिक्स दाल, मिक्स बुझी, रोटी सलाद व् झुंगर की खीर खा कर पुन अधिक संख्या में मिलने का वायदा देकर विदा ली.

बड़थ्वाल कुटुंब यूट्यूब चैनल पर यह कार्यक्रम लाइव रहा https://youtu.be/sFdgBLx7SR4

देहरादून:
हिम पेलेस होटल, नेहरु कोलोनी, देहरादून में आयोजित यह कार्यक्रम पद्मश्री से सम्मानित, बडथ्वाल कुटुंब कि उपाध्यक्ष माधुरी बड़थ्वाल जी की अध्यक्षता में मनाया गया. भूतपूर्व राज्य महिला आयोग अध्यक्ष सुश्री विजया बड़थ्वाल जी कि उपस्थिति ने भी इस कार्यक्रम को चार चाँद लगा दिए. दोनों ने ही दीप प्र्जल्वित क्र कार्यक्रम कि शुरुआत की.

दून में रिटायर्ड तहसीलदार सतीश बड़थ्वाल जी, शांति प्रसाद बडथ्वाल जी, हर्षवर्धन बडथ्वाल जी, राकेश बड़थ्वाल जी, वेदप्रकाश बड़थ्वाल जी अनीता बड़थ्वाल व् कविता बड़थ्वाल जी के प्रयासों व् अगुवाई में यह कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ. मंच का संचालन शांति प्रसाद बड़थ्वाल जी ने किया. डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जी सहित सभी पूर्वजो को याद भी किया और दो मिनट का मौन भी रखा. श्री जगदीप बड़थ्वाल ने अपने पिताजी, पूर्व बीएसफ इन्स्पेक्टर श्री ओम प्रकाश बड़थ्वाल की पुस्तक "कश्मीर में पाक प्रायोजित छ्द्मयुध' अतिथियों को भेज्न्त दी. मुख्य अतिथि ने हर घर झंडा हर घर तिरंगा के लिए भी ध्यान आकर्षित किया. मुझे वीडियो काल के द्वारा उपस्थित लोगो को देखने, अभिवादन करने मौका मिला.
सबका हार्दिक आभार बड़थ्वाल कुटुंब की ओर से. आप के दो दिन के प्रयास से कार्यक्रम में लगभग ४०+ लोग उपस्थित रहे. जो सराहनीय है.




कोटद्वार:


लक्ष्मी वेडिंग प्वाइंट बलासोड़, कोटद्वार में यह कार्यक्रम ले.कर्नल राजेन्द्र प्रसाद बड़थ्वाल जी के नेतृत्व में बड़थ्वाल परिचय समारोह के रूप में मनाया गया. इस कार्यक्रम में विधान सभा अध्यक्ष सुश्री रितू खंडूड़ी जी मुख्य अतिथि रही व् उन्होंने ही दीप प्रजल्वित कर कार्यक्रम का शुभ आरम्भ भी किया गया.




इसमें सहयोग कि भूमिका निभाई पंडित विमल प्रसाद बड़थ्वाल जी व् शोभा बड़थ्वाल ने. सभा की अध्यक्षता शंभू प्रसाद बड़थ्वाल जी ने की. इस कार्य कर्म के मंच संचालन का काम डॉ सी एम् बड़थ्वाल जी ने किया. मुख्य प्रवक्ता गोपाल कृष्ण बड़थ्वाल, कैप्टेन सी पी डोबरियाल,डॉ सी एम् बड़थ्वाल,ले. कर्नल आर पी बड़थ्वाल, शंभू प्रसाद बड़थ्वाल आदि ने बड़थ्वाल कुटुंब के उत्थान पर प्रकाश डाला. मुख्य अतिथि रितु खण्डूरी जी ने समाज को जोड़ने की लिए बड़थ्वाल कुटुंब के प्रयास के लिए सभी बड़थ्वाल जनों की प्रशंसा की. साथ ही कर्नल बड़थ्वाल जी के द्वारा डिफेन्स कैरियर अकैडमी कोटद्वार स्टूडेंट्स को आर्मी में भर्ती करने की मुफ्त सेवा की प्रशंसा कीं. इस समारोह मे कुल 70 से ऊपर बड़थ्वाल परिवार के सदस्य ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई.
कार्यक्रम में कोटद्वार से ही नहीं बल्कि आस पास के गाँवों से व् दूर के गाँवों से भी बड़थ्वाल सम्मलित हुए. यह बड़थ्वाल कुटुंब के लिए गौरव का पल रहा. राजेन्द्र भाई साहब सहित सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का हार्दिक आभार शुभकामनायें.


मुंबई:


मुंबई में संख्या कि दृष्टि से नहीं बल्कि भाव की दृष्टि से दो स्थानों पर उपस्थिति देते हुए मैं राजेन्द्र भाई साहब व् आनंदी दी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.


पौड़ी :



गढ़वाल स्वीट भंडार, पौड़ी में यह आयोजन अनूप बड़थ्वाल व् निर्मला बड़थ्वाल के देखरेख में यह कार्यक्रम सुंदर रहा. यहाँ भी संख्या नहीं भाव के मध्य नज़र कार्यक्रम सफल रहा. कुटुंब के कोषाध्यक्ष राजीव बड़थ्वाल भी अन्य गणमान्य व्यक्तियों में शामिल रहे. वह उपस्थित लोगों के साथ वीडियो काल पर परिचय व् अभिवादन करना का मौका मिला.
हरिद्वार:
आशु बड़थ्वाल ने अपने परिवार के साथ इसे मनाकर अपने प्रेम व् सहयोग को दर्शाया.
आनलाइन:
यह पहला व्यक्तिगत मिलन था कुछ लोग समय निकाल पाए क्योंकि समय व् परिस्थिति शायद उन्हें अनुमति नहीं दे पाई. कुछ लोग रात को हुई एक आनलाइन बैठक में उपस्थिति रहने में सफल रहे. जिसकी अध्यक्षता सचिव श्री नवीन बड़थ्वाल जी ने की. सभी का आभार.
दिल्ली की बैठक का प्रसारण बडथ्वाल कुटुंब यूट्यूब चैनल पर लाइव किया गया था.
सभी स्थान के आयोजको प्रयोजको व् उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का इस अवसर को यह रूप देना मुझे रोमांचित कर रहा है और अब मेरा विश्वास दृढ हो चला है कि बड़थ्वाल कुटुंब कि सोच के साथ जो उद्देश्य हमने तय किये हैं उन्हें आप सबके सहयोग से हम प्राप्त करने में सफल होंगे.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
महा सचिव, बड़थ्वाल कुटुंब

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

गढ़वाली कुमाऊँनी भाषाओं की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की मांग तेज

त्तराखण्ड राज्य में हिन्दी प्रथम व् संस्कृत द्वितीय भाषा का स्थान रखती है.  लेकिन भारत के अन्य राज्यों की तरह देव भूमि उत्तराखण्ड की अपनी भाषाएँ हैं. जिसमे मुख्यत: गढ़वाली व् कुमाऊँनी भाषा का अस्तित्व सैकड़ो वर्षो से हैं. गढ़वाली आर्य भाषाओं के साथ ही विकसित हुई लेकिन 11—12वीं सदी में इसने अपना अलग स्वरूप धारण कर लिया था.   

डॉ अंकिता आचार्य पाठक ने अपने एक लेख में लिखा है:

“लगभग एक हजार वर्षों से भाषा के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाली गढ़वाली तथा कुमाऊँनी का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. उल्लेखनीय है कि तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी से पहले सहारनपुर से लेकर हिमाचल प्रदेश तक फैले गढ़वाल राज्य में सरकारी कामकाज के लिए गढ़वाली भाषा का ही प्रयोग होता था. देवप्रयाग मंदिर में महाराज जगत पाल का वर्ष 1335 का दानपत्र लेख, देवलगढ़ में अजयपाल का पंद्रहवीं सदी का लेख, बदरीनाथ आदि स्थानों में मिले शिलालेख और ताम्रपत्र गढ़वाली भाषा के समृद्ध और प्राचीनतम होने के प्रमाण हैं. इसी प्रकार यह भी उल्लेख मिलता है कि लगभग आठवीं से सोलहवीं शताब्दी तक चम्पावत कूर्माचल की राजधानी रहा और कूर्माचली यहां के राजकाज की भाषा थी. कुमाऊं में चंद शासन काल के समय भी कुमाऊँनी राजकाज की भाषा थी. राजाज्ञा कुमाऊँनी में ही ताम्रपत्रों पर लिखी जाती थी. गढ़वाली तथा कुमाऊँनी के ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट करने वाले ऐसे कई उदाहरण हैं.”

जौनसारी भाषा सहित कई और भाषाएँ उत्तराखंड की संस्कृति व् सभ्यता का हिस्सा है पर इनमें साहित्य बहुत कम लिखा गया है या कहें न के बराबर लिखा गया है. उत्तरप्रदेश से अलग होने के पश्चात् यह मांग जोड़ पकड़ने लगी कि उत्तराखण्ड की भाषाओ को भी संविधान की 8 वीं अनुसूची में स्थान मिलना चाहिए.  गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा में साहित्य व्याकरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है साथ नए लेखक भी इसमें अब बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. कुछ लोगों को मानना है कि उत्तराखण्ड की अपनी अलग भाषा व उसकी लिपि हो और वे इसके लिए अपनी और से प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अधिकांश साहित्यकार कुमाऊँनी गढ़वाली को उसके मौलिक रूप में उत्तराखण्ड में भाषा के रूप मान्यता देने के पक्षधर है जो कि उचित भी है इतिहास, साहित्य व सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार. जिसमें भाषा सहज रूप से अपने क्षेत्रों में विकास भी करेगी और जन मानस की भाषा है भी और बन भी सकेगी. इसके विपरीत कोई खिचड़ी भाषा यदि थोपने का प्रयास हुआ तो अपनी - अपनी भाषा का शब्दकोष का भंडार तहस नहस भी होगा साथ ही गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के आधार, उसकी मौलिकता और मातृभाषा के साथ खिलवाड़ होगा. 

भाषा का विकास, उसका सृजन व संवर्धन हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए. मेरा मानना है कि केंद्र व राज्य सरकार को शीघ्रातीशीघ्र कुमाऊँनी और गढ़वाली को आधिकारिक दर्जा देना चाहिए और उनके संवर्धन हेतु समुचित प्रबन्ध करने चाहिए.

कई संगठन संविधान की 8वीँ अनुसूची में शामिल करने हेतु कार्य कर रहे हैं. 2012 से दिल्ली में स्थापित संस्था ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’  इसमें सबसे प्रमुखता से अपनी भूमिका निभा रहा है. यह मंच 2016 से गढवाली कुमाऊँनी भाषा का शिक्षण ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का आयोजन कर रहा है. विगत वर्ष 2018 में दिल्ली एनसीआर में लगभग 22 केन्द्रों में गढ़वाली-कुमाउनी कक्षाओं को आयोजन कर चुका है  2013 से महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान गढ़वाली के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकारों को प्रदान करता आया है. मंच हर वर्ष साहित्य एवं समाज सेवा आदि कि लिए प्रत्येक चयनित प्रतिभा को 21 हजार रूपये की राशि भी प्रदान करता है साथ समाज के वर्गों व् व्यक्तित्वों को ही आर्थिक सहायता करता है व् सामाजिक मुद्दों को भी जोर शोर से उठाता है. मंच समय-समय पर कई कवि गोष्ठियों, भाषा सेमिनार एवं अन्य साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन करता आ रहा है और भाषा आन्दोलन को लेकर अपनी अग्रणी भागीदारी निभा रहा है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा मंच भाषा के मानकीकरण को लेकर भी सक्रीय है. भाषा अधिवेशन द्वारा इसकी शुरुआत हो चुकी है. इस वर्ष गढ़वाल भवन दिल्ली, में हुए अधिवेशंन में लगभग उत्तराखण्ड व् दिल्ली एनसीआर के सैकड़ो साहित्यकार सम्मिलित हुए. जहाँ पर शब्दों के मानकीकरण पर चर्चा भी हुई और उन्हें भाषा में अधिकारिक रूप से जोड़ा भी गया. साथ ही 8 वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु भारत सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव भी पास हुआ. गृह मंत्रालय व् पीएम आफिस में इसे दिया भी जा चुका है. 

दिल्ली में उत्तराखण्ड के चुने हुए प्रतिनिधियों को मिलकर, उन्हें संसद में भाषा बनाये जाने हेतु बात रखने एवं प्रयास करने के लिए “उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच का शिष्टमंडल” लगातार उनसे भेंट कर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. मंच गढ़वाली कुमाऊँनी को भाषा का दर्जा दिलाने हेतु दृढ़संकल्प के साथ प्रयत्नशील भी है.


अभी तक शिष्टमंडल उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व् सांसद श्री तीरथ सिंह रावत जी, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री व सांसद श्री अजय भट्ट जी, सांसद श्री अजय टम्टा जी व भाजपा मिडिया प्रभारी व् राज्य सभा सांसद श्री अनिल बलूनी जी से मिलकर ज्ञापन सौंप चुका है. सभी ने भाषा के लिए की जाने वाले इस पहल के लिए बधाई व् शुभकामनायें दी है साथ ही संसद में इसे रखने का भरोसा भी दिया और इस पर हर रूप से मदद का आश्वासन भी दिया है.  



शिष्टमंडल में ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’- दिल्ली के संरक्षक व मयूर विहार जिला भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिनोद बछेती, वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल,  श्री दर्शन सिंह रावत, श्री जयपाल सिंह रावत, श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, श्री रमेश हितैषी, श्री जगमोहन रावत, श्री सुशील बुडाकोटी, श्री अनिल पन्त, श्री भगवती प्रसाद जुयाल, योगाचार्य डॉ. सत्येन्द्र सिंह, व उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी की उपस्थिति रही है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच सभी साहित्यकारों व गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के बोलने वालो को आवाहन देता है कि आइये इस यज्ञ में अपने समय व सहयोग की आहुति अवश्य दें.

जय उत्तराखण्ड ! जय हिन्द !

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

2 अगस्त, 2022

बुधवार, 25 मई 2022

काश....

 




अपने राष्ट्र का मान - सम्मान जिनको नहीं आता

वो लोग स्वयं को भारत का शहंशाह समझते हैं 

चले थे जो भी, जलाने स्वाभिमान मेरे भारत का 

इतिहास गवाह है, वो यहाँ पर खुद राख हो गए  


है सत्य, सनातन जड़ो को कोई मिटा नहीं सकता

उनके आकाओं को काश ये बात समझी होती

हिंदुस्तान की श्रेष्ठता को आज दुनिया है मानती

सम्मान भारत का मंदबुद्धि “काश” समझ पाती


लोकतंत्र में सार्थक विरोध सही और आवश्यक है 

लेकिन राष्ट्रहित जो समझे वही असली नायक है 

विरोध व्यक्ति का यहाँ जिनके दिमाग में छाया है 

भारतियों ने ही उन्हें बार - बार वोट से समझाया है 


राष्ट्र प्रेम में सत्तापक्ष या विपक्ष नहीं है देखा जाता

तिरंगे की आन, बान और शान से है इसका नाता 

‘प्रतिबिम्ब’ ने समझा, तुम्हें क्यों समझ नहीं आता

सत्ता क्षणिक, राष्ट्र सर्वोपरि काश वो समझ पाता   




सोमवार, 18 अप्रैल 2022

 



~ पत्थर फेंकते ये लोग ~

क़ानून का भय नहीं
नेताओ का अमूल्य प्रेम
मिलता सबसे सरंक्षण
पत्थर पकड़ते ये लोग 

देश सुरक्षा से समझौता
आतंकी से प्रेम जतलाते
यही हैं भारत में देशद्रोही
पत्थर पकड़ाते ये लोग
 
केवल वोट बैंक समझ 
इनको मुफ्त में हैं पालते
शिक्षा से रख कर दूर 
इनको पत्थर पकड़ाते ये लोग
 
और फिर

धर्म के नाम पर, 
दूसरे धर्म से चिढ़ते,
आज़ादी के नाम पर 
पत्थर फेंकते ये लोग 

विश्वास केवल विध्वंश पर
मानवता से रहते कोसो दूर
अपनों का ही करते नरसंहार
पत्थर फेंकते ये लोग 

जय श्रीराम के नाम से 
अपने ही भारत देश में 
भड़कते और भड़काते लोग 
पत्थर फेंकते ये लोग 

आरक्षण पर ज्यादा ये रहते
बहुसंख्यक पर फिर भी भारी
अल्पसंख्यक रोना रहता जारी
पत्थर फेंकते ये लोग 

मोदी इनका जी का जंजाल
हिन्दू धर्म को कर बदनाम
आग सेकते विपक्षी नेता
और पत्थर फेंकते ये लोग 

धार्मिक सद्भाव का छेड़ राग
अपनों को भी नहीं छोड़ते
फैलती फिर दंगो की आग 
और पत्थर फेंकते ये लोग

देश को एक जुट होना होगा
समान नागरिकता करना होगा
दंडित और भरपाई करनी होगी
तब सुधरेंगे पत्थर फेंकते लोग 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - १८/०४/२२
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...