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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

तारीख़




तारीख़ .........
तारीख़े तो यहाँ रोज़ बदल जाती है   
कुछ हम भूले कुछ याद बन जाती है 
कुछ तारीखे गवाह है इतिहास की
कुछ याद दिलाये हुये परिहास की

तारीख़ पर तारीख़ मिलती है कहीं
तारीख़ पर जीत मिलती है कहीं
जन्मदिन व सालगिरह का है जश्न कहीं
बिछड़ने और मौत का छिपा है गम कहीं

कुछ तारीखों का रखते है शौक यहाँ
कुछ को इन तारीखों से है खौफ यहाँ
तारीख़ का महत्व जतलाये लोग यहाँ
हर पल की कीमत भूले हैं लोग यहाँ

कुछ देते चेतावनी अपशकुन होने का
कुछ देते भरोसा इसमे शकुन होने का
वो खेले खेल तारीखों के आने जाने का
रचते खेल बस जेब मे पैसा आने का

तारीखों का व्यवसाय अब यूं होने लगा है
कैलेंडर की शक्ल भी अब बदलने लगी है
सारे रिश्ते अब ' डे ' बन कर उभरने लगे है 
रिश्ते दिल पर नहीं कागज पर बसने लगे है

तारीख़ तो आगे बढ़ती जाती है
हर दिन कुछ संदेश दे जाती है
बीता वक्त कभी हाथ आता नही 
आज और अभी की सोच है सही

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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