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बुधवार, 26 अगस्त 2015

तेरा मेरा सार




शब्द लिख रहे है तुम्हे, तुम दूर कहीं बैठी मुस्करा रही हो 
हम नही इन आँखों में, फिर भी दिल में जगह बना रही हो

हमने तो साँसों को अपनाया है , केवल तुम्हारे लिए 
ढूंढती है नज़र तुम्हे हर पल, आओ कुछ पलो के लिए

शायद जानती हो , इन धडकनों में बहती गति हो तुम 
इश्क लिखा मन में, मेरे मन की सच्ची पहचान हो तुम

मन तो मन की सुन्दरता देखे, कब सूरत से किया प्यार है 
पल पल 'प्रतिबिंब' सी उभर आती हो, यही तेरा मेरा सार है

रविवार, 23 अगस्त 2015

क्यों ?





जमाना हो गया हमें उस एहसास से गुजरे हुए
उनका दिल, आँखे बात मुझसे करते क्यों नही ?

जानता हूँ रास नही आती अब उन्हें चाहत मेरी
आखिर क्यों यकीन नही अब चाहत पर मेरी ?

मेरी गैर मौजदूगी अब बैचेन उन्हें करती नही
मेरे लिए कलम उनकी कुछ कहती क्यों नही?  

जानता हूँ दूरियां उसने अब मुझसे बना ली है
साथ का वायदा जहाँ, वहां आज दूरी क्यों है ?

मुस्कराहट उनकी अब कुछ अलग सी बात करती है

ये मोहब्बत ‘प्रतिबिंब’ अब अतीत सी लगती क्यों है ? 
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