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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

आग


जलना या जलाना है इसका स्वभाव
दहनशील पदार्थ है छोडती अपना प्रभाव
बुझती है जब आक्सीजन का हो अभाव
लेकिन रोशनी और क्षति है इसका भाव

घर्षण से पैदा होती है चिंगारी
चिंगारी से जलती/बढती है ये आग 
हवा और ज्वलनशील वस्तु बढाते है आग
पानी और मिट्टी से बुझती है आग 

आग पवित्र है हमारी आस्था बनकर
कही जोत, कंही सतत अग्नि बनकर
कंही रोशन करती है रोशनी बनकर
कंही विज्ञान में है सहायक बनकर

वीरो के सीने में भी जलती है आग
क्रोध में भी शब्द उगलते है आग
दुश्मनी में भी एक हथियार है आग
जीवन में भी एक जरुरत है आग 

कभी आस है आग, तो कभी है विनाश
कभी दाह है आग, तो कभी है प्रकाश 
कभी त्यौहार है आग, तो कभी है द्वेष
कभी गवाह है आग, तो कभी है क्लेश

संस्कृति, जीवन और विज्ञान 
आग का है हर पल योगदान 
प्रयोग करे, दे इसे मान सम्मान
रिश्तो मे जोड ना करे अपमान
              
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

खत्म हुआ खेल “ख”(खुशियों) का



रुठना खासियत है उनकी, खिसियाना अब आदत बन गई
खिझाना वो छोडते नही, मौजदूगी मेरी अब खुरचन बन गई

खामोश हूँ मैं तेरी खातिर, ख्वाहिश थी तेरी, खैरात नही मांगी थी
खस्ता हाल है, खोखला सा जीवन, ख्वार की मुराद नही मांगी थी

खंगालता रहा मैं अपना इश्क, ना जाने क्यो खटकता रहा उन्हें
खटिक सा घूमा मैं उनके शहर और गली, खबर भी ना हुई उन्हें

खंख है जीवन,खपने लगा मैं, खंभार सा रिश्ता, खंडहर सा मैं
ख्यालि नही अब खंडित हूँ मैं,खरमास की तरह खटकता रहा मैं

खलियान सा खिले सोचा था,लेकिन खारा हुआ अब तो रिश्ता
खिदमत का कंहा मिला मौका, एक खरोंच से टूटा अब ये रिश्ता
         
   प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दोस्ती का आलम


मित्र बनाओ अभियान
बढाओ जान पहचान
बहुत है यंहा कद्रदान
सारे मित्र मेरे महान
महके मेरा खलिहान
जिंदाबाद हिन्दुस्तान

मुझे तुम लगते हो प्यारे
सपने जैसे सच हुये हमारे
हम है अब तुम्हारे सहारे
चलो साथ देखे अब बहारे
दोस्ती है बीच अब हमारे
चलो अब ये रिश्ता संवारे

एक हाथ मे उसका हाथ
दूजे हाथ में है दूजा हाथ
मन में भाये तीसरा हाथ
थामे अब चौथे का हाथ
येसे है मेरे कितने हाथ
छोड चले जो अब साथ

भरते है दोस्ती का दम
नही किसी से हम कम
वक्त पर छोड देते दामन
जैसे पडा हो कोई सामान
येसा है दोस्ती का आलम
सबको "प्रतिबिम्ब"का सलाम

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल , अबु धाबी

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

क्रोध



क्रोध मात्र एक शब्द नही, भरपूर है इसका भी संसार
ज्वाला इसकी विनाशकारी, बस मिलता इसमे अंधकार
क्रोध उपजता है
अंहकार से
उपेक्षा से
जिद्द से
भय से
घृणा से
ईर्ष्या से
स्वार्थ से
अन्याय से
तनाव से
क्रोध से हिंसा उपजे, बढ जाये नफरत और दरार
अपने तो होते है दूर लेकिन दुश्मन के भी झेले वार
क्रोध से..
ज्ञानी का पतन
साधु का अन्त
शान्ति का नाश
सत्य की मौत
तनाव का संचार
विवेक का पतन
स्वास्थ्य मे गिरावट
रिश्तो मे कड़्वाहट
लगती है हाथ निराशा
मिलती है बस निराशा

गीता में कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया है
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
[अर्थात क्रोध से अविवेक एवं मोह होता है, मोह से स्मृति का भ्रम होता है
तथा बुद्धि के नाश हो जाने से आदमी कहीं का नहीं रह जाता]
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

सोमवार, 15 नवंबर 2010

मैं धरती हूँ


मैं धरती हूँ

सब कहते हैं
मैं माँ हूँ
धरती माँ
धरती माँ

मेरा सीना
भी गर्व से
ऊँचा हो जाता है
जब तुम
कहते हो
धरती माँ

तुम्हारे लिये
कहीं सड़क
कहीं गली
कहीं झोपडी
कहीं महल
कहीं नदी
कहीं तालाब
कहीं जंगल
कहीं शहर
कहीं खेत
कहीं खलिहान
कहीं सागर
कहीं बांध
सबको जगह दी है
अपने में

हर पल
कोई खोदता मुझे
कोई तोड़ता मुझे
कोई चूमता मुझे
कोई रौंदता मुझे
कोई पूजता मुझे
कोई सज़ा देता मुझे
लेकिन मेरा प्यार
सब के लिये
एक है एक रहेगा

मेरे सीने पर
सब चलते है
सब दौड़ते है
अच्छा लगता है
लेकिन
अच्छा नहीं लगता जब
गंदगी फैलाते हो
कहीं थूकते हो
कूडा करकट सब
बिखेर देते हो
इससे वातावरण
दूषित होता है
मैं तो सह लेती हूँ
आखिर माँ हूँ
बस इस बात का
ख्याल रखना सदा
दूसरों पर इसका
असर ना हो या
स्वास्थ्य खराब ना हो

मैंने सब
अपने में समाया है
तुमने दुख दिया या खुशी
फिर भी तुम्हें प्यार दिया
तुम्हारी हर खोज़ में
मैने साथ दिया
दैनिक जीवन में
जो चाहा वो दिया
अपने सुख की खातिर
तुमने मुझे तोड़ा मरोड़ा
फिर भी मैंने
तुम्हारा साथ कभी न छोडा
हाँ मैं धरती माँ हूँ



मैंने
हर धर्म को अपनाया है
हर इंसान से प्यार किया
काल गोरा, छोटा बडा
सब को बस अपना कहा
इस कोने से उस कोने तक
बस मैंने सब से नाता जोड़ा है
सब मेरा ही अंश है
कोई यहाँ तो कोई वहाँ
इसी लिये जब माँ कहते हो
मुझे मान, सम्मान और्
प्यार मिल जाता है


प्रकृ्ति का दोष भी
मैंने समेटा है
माँ बनकर बच्चो का
बहता खून
मृत शरीर
सब अपने सीने में
दफन किया
दिल मेरा भी रोता है
आंसू मेरे भी आते है
फिर भी अपनो की खातिर
फिर से धरती माँ बन जाती हूँ
हाँ मैं तुम सबकी माँ हूँ
धरती माँ!!!!!

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

मैं


मै भीड में
खो सा गया
तलाशा तो जाना
मै खुद से
अलग हो चुका हूँ

मेरा अस्तित्व
अब नही रहा
मेरा मक्सद
मुझसे रुठ गया
मै कौन हूँ
प्रश्न भी न पूछा गया

मन का एक कोना
खाली सा लगा
जंहा हर तरफ
शोर तो है
पर कान नही
हर तरफ आंखे तो है
पर चेहरा नही
शब्द तो है
पर पढने वाला नही
प्यार तो है
करने वाला कोई नही

राही है पर  रास्ता नही
दोस्त है पर दोस्ती नही
भीड है पर लोग नही
फूल है पर महक नही
तारे है पर आसमा नही
तीर है पर कमान नही

आखिर कब तक
खुद से समझौता
दूसरो से रिश्ता
अपनो से नाता
लेकिन
अब बंद हुआ खाता
हर कोई
किसी को नही भाता
फिर मै कौन?

अब खुद को खुद में
तलाशने का वक्त आया है
वक्त ने अब समझाया है
ये असल  नही माया है
कभी धूप कभी छाया है
समझने का वक्त आया है

अस्तित्व को अपने
पुन: जगाने का वक्त  आया है
इसलिये आज
इस राह को अपनाया है
कल शायद आपसे
फिर मुलाकात हो जाये
फिलहाल तो
जाने का वक्त आया है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

बुधवार, 3 नवंबर 2010

चलो मनाये दीवाली रे


प्रेम का नाता है हर रिश्ते में मनाओ तुम  दीवाली रे
भूले सब भेदभाव नई जोत जलाये,चलो मनाये दीवाली रे

दोस्त और दुशमनी का जाल हटा आये येसी आज दीवाली मनाये रे
करे ध्यान प्रभु का, इंसानियत की लौ जला, आये दीवाली मनाये रे

धन दौलत का अंबार लगे, दुख से नाता रहे ना कोई, हर वक्त मनाये दीवाली रे
दुखी गरीब मानस को आज राह दिखाये उसका बनकर, येसी मनाये दीवाली रे

घर आंगन खुशी का दीप जले, सफलता से रोशन हो येसी दीवाली आये रे
मित्रजन स्वस्थ रहे, आशाओ को एक आयाम मिले येसी दीवाली आये रे

बस खुद से सवाल करना कैसे मनाये दीवाली रे
रखे ध्यान प्रदुषण का साफ सुथरी दीवाली मनाये रे

रोशन हो हर लम्हा सबका, जीने का मकसद ढूढे इस दीवाली रे
अपने से अलग होकर दुसरे की कुछ सोचे आओ दीवाली मनाये रे


[सभी मित्रो को, उनके परिवार को एवम सगे संबधियो को मेरे परिवार की ओर से  हार्दिक शुभकामनाये]
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

सोमवार, 1 नवंबर 2010

मन

         
मन क्या कहूँ तेरी व्यथा है अति निराली
कभी छटे जाए अधेरा कभी छा जाये बदली

देखा तुझको रोते हुये, देखा तुझको हंसते हुये
एक मन है तू फिर भी कितने रुप छुपाये हुये

दुख झेलता तू सारे, खुशी भी तुझे ही मिलती
दर्द समेटता अपने में, सज़ा भी तुझे ही मिलती

क्रोध प्यार का अनुठा संगम तुझमे है बसता
हर पीडा और खुशी का तू ही तो एक रस्ता

प्यार मिल जाये किसी से तो मुस्कराता है तू
रिश्ता टूटे तो खुद ब खुद कितना रोता है तू

कभी बन जाता बच्चा खेलता तू फिर खुद से
कभी बडा बन सयानी बाते करता तू खुद से

कभी सवाल करता कभी जबाब देता तू सारे
कभी खुद सवाल बन खुद को कोसता तू प्यारे

कभी विचलित कभी विस्मित कभी पागल तू बन जाता
कभी मान जाये झट से कभी नखरे तू बहुत है दिखाता

कभी खो जाता खुद में कभी किस से तू मिलकर आता
जो कहा नही कभी  किसी से वो सब तू बोलकर आता

खुद को समझा पाये कभी तू, कभी चूक तू इसमे कर जाता है
अपनो और मित्रो का फिर तू ही तो  निशाना बन जाता है

कभी अपने भाव दिखा देता है, कभी उन्हे छुपा जाता है तू
कभी भक्त बन जाता है, कभी खुदा से भी रुठ जाता है तू

-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

ये निगाहे

ये निगाहें


तेरी ये निगाहे
जो कहना चाहती है
वो सब कह जाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

प्यार का इज़्हार या इनकार
ये निगाहे बंया करती है
ये निगाहे शरमा जाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

छोटी सी हो या बड़ी बात
तेरी निगाहे कह जाती है
तेरी निगाहे सवाल पूछतीं है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

तेरे दिल का दर्द्
इन निगाहो मे छलक आता है
इन निगाहो मे उतर आता है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

तेरा गुस्सा या प्यार
इन निगाहो मे दिखता है
इन निगाहो मे पढ सकते है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

वो प्यार का अफसाना
तेरी निगाहे बंयान करती है
तेरी निगाहे आगोश मे बुलाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

प्यार जब करुँ तुझे
तेरी निगाहे खामोश लगती है
तेरी बंद निगाहे फिर बाते करती  है
तेरी निगाहे तब भी बहुत बोलती है
-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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