
तुमसे बिछड़ा तो ऐसा लगा
रेगिस्तान सा आभास लगा
होश अपने खोने लगा
जोश मेरा हिलने लगा
रेत का असहाय टीला
चारो ओर फ़िर भी गी्ला
रेत के बिखरते कण
दर्द के बिलखते क्षण
यादों का बहता सैलाब
फ़िर भी ना मिलते जबाब
पल-पल उखड़ती सांस
सहारा ढूँढती रही आस
इस मरुस्थल में जाना
प्यार का अपना फंसाना
तुमसे दूरी का अहसास
और पास होने का आभास
रेगिस्तान सा आभास लगा
होश अपने खोने लगा
जोश मेरा हिलने लगा
रेत का असहाय टीला
चारो ओर फ़िर भी गी्ला
रेत के बिखरते कण
दर्द के बिलखते क्षण
यादों का बहता सैलाब
फ़िर भी ना मिलते जबाब
पल-पल उखड़ती सांस
सहारा ढूँढती रही आस
इस मरुस्थल में जाना
प्यार का अपना फंसाना
तुमसे दूरी का अहसास
और पास होने का आभास
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह भी एक पुरानी रचना )