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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

अदला बदली


चल खेले खेल
अदला बदली का
तू डाल - डाल
मै पात - पात

तू मै बन जाऊँ
मै तू बन जाऊँ
तेरा गरुर मै ले लूँ
मेरा सरुर तू ले ले

दे दे मुझको
अपना मन
अपना दिल
अपनी  खुशी

मै तुझे देता हुँ
अपना प्यार
अपना इकरार
अपना अंतर्मन

अब देखो जो कहना
कहने से पहले सोच लेना
और जो मै कहूँगा
उसे भी तुम सुन लेना

अरे...
खेल शुरु होते ही
तुमने हार क्यो मान ली
मैने तो तुम बनकर
तुम्हें जीत दे दी
अपनी हार स्वीकार ली

तुमने वही किया
जो मैंने किया
हार कर भी
हम जीत गए
एक दूजे को
शायद
अब समझ गए

अब ना कहना ....... 

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

आज भी जारी है.....


आज भी जारी है.....

लिखने से भी क्रांति आती है
कभी इससे भ्रांति हो जाती है
लिखने से समाज बदल सकता है
इससे देश की सोच बदल सकती है

आज मैने सोचा कि
मै भी कुछ सिखा पाऊँ
या किसी को बदल दूँ
अपने लेखो से
अपने विचारो से
अपनी कविताओ से।

मै शायद अपने में
पूर्ण नही
फिर भी दूसरे को
बदलने का दम भरता हूँ
अपनी सोच को
लोगो पर थोपने
का अथक प्रयास करता हूँ

फिर एक सोच जागृ्त हुई
इंसान कोई हिन्दू है कोई सिख है
कोई इसाई है तो कोई मुस्लिम है
सबके अपने ग्रंथ है,पवित्र पुस्तके है
सभी उसे मानने का दम भरते है
पढे या ना पढे लेकिन अपना कहते है
जब वो सिंद्धांत किसी को बदल ना पाये
वो विचार किसी को मार्ग ना दिखा पाये
उस सत्य को जब कोई पहचान ना पाये
प्रेम और सीख को कोई जब अपना ना पाये
गीता, कुरान, बाईबल और गुरु ग्रंथ
जो ना कर पाये
क्या मेरे ये काले अक्षर उनको बदल पायेगे
क्या मेरे विचार और सोच उनको बदल पायेगे

फिर भी
मेरा प्रयास और लिखना निरंतर जारी है
बुरे और अच्छे को लिखना आज भी जारी है
सिखा तो नही पाऊँगा लेकिन लिखना जारी है
स्वयं को स्वयं का आईना दिखाना अभी जारी है
जीवन के हर मोड पर मेरा सीखना आज भी जारी है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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