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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

मुझमें एक जोत जला दे माँ

अक्षरावाणी साप्ताहिक पत्रिका के काव्य मंजरी पृष्ठ में प्रषित




मुझमें एक जोत जला दे माँ
 
हे वीणा धारिणी, करता तुझको प्रणाम
हे हंसवाहिनी, करता मैं तेरा ही स्मरण
हे माँ शारदे, ज्ञान का तू कर बीजारोपण
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
मेरे ज्ञान का, तू अब भंडार भर माँ
हो मुझमें संचार, तेरे प्रकाश का माँ
है अर्चना तुझसे, मुझे आशीष दो माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
शरणागत हूँ, तेरा प्रेम वर्षण चाहता हूँ
हूँ अज्ञानी मैं, विद्या वरदान चाहता हूँ
वीणा के तारो से, सुरों का ज्ञान चाहता हूँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
इर्ष्या और नफरत को, मुझसे दूर कर माँ
प्रेम और क्षमा बन, मुझमें  वास कर माँ
सत्य और मीठा बोलूँ, ऐसा वरदान दे माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १६/५/२०२१
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