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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

क्षितिज व्योम पर



क्षितिज व्योम पर 


क्षितिज व्योम पर है रेखांकित
नवजीवन का बन जीवन अमृत 
प्रीति रीत का प्रवाह नवनीत
जीवन संगति अनुभूति अतुल

भावना प्रबल, शब्द प्रत्यंचित
दृष्टि आलौकिक, प्रयत निष्ठा
प्रयति आभूषण, वेग प्रहाण 
जीवन - धन, प्रहर्षित जीवन 

निज मन का स्वाद विमुख है
समर्पण प्रणय बोध सजग है
मोह मंत्र नहीं मुक्ति मार्ग है 
संयम व नियम का बंधन है

पर्यवरोध की बन सुरक्षा कवच
प्रगल्भता का तुम प्रणीत संदेश
प्रतीति प्रणय की बन कर श्वास  
गूँजती प्रावण सी मुग्ध ध्वनि

आमोद का न होता प्रतिपादन 
आत्मीयता का यह गूढ़ दर्शन
अन्तर्मन में होता बस प्रतिनाद  
खिलता जलज बन तेरा ‘प्रतिबिंब’

अवचेतन प्राण की चेतना हो 
मेरे अस्तित्व का समग्र दर्शन 
सींच रही मेरे मन की प्रकृति
अनंत कल्पना की बन साक्षी 

क्षितिज व्योम पर रेखांकित
हाँ ! तुम मेरा जीवन हो !!
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल ०१\०१\२१

शुभम

 



चलिये आरम्भ करते हैं,

नए साल में नया सफर 

शब्दों की इस यात्रा में,

अब मौन संग न होगा

कुछ मेरे मन का होगा,

कुछ तेरे मन का होगा

होगा गवाह अब वर्तमान,

सृजनता होगी अब पहचान 

शुभ होगा इसका आगाज,

बुलंद होगी अब हर आवाज़

गूंज उठेगा इसका हर शब्द,

सत्य का होगा अब शंखनाद

मेरा चिंतन, चिंतन मेरे मन का,

प्रतिबिम्बित होगा इस पटल पर

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शुभ हो! जय हो! विजय हो!

शुभम 

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

जा रे



सन दो हज़ार उन्नीस को 
भरे मन से विदा किया था
होनी अनहोनी के संग 
सुख - दुख के तमाम पलो को 
समेट कर विदाई दी थी 
३१ दिसंबर, १९ की सर्द रात में  
और
बहुत अरमानो से 
स्वागत किया था तेरा
क्या नहीं चाहा था तुझसे 
अपनी ही नहीं देश और 
समाज की खुशहाली चाही थी 
२०२० को अपना बनाने का 
श्रीगणेश कर भी दिया था 
सपनों की उड़ान को
बस पंख लगने ही वाले थे कि
‘कोविड १९’ ने सारे अरमानों पर
बुरी नज़र लगा दी

१०० सालों बाद विश्व में 
महामारी कोई ऐसी फैली 
मिलना जुलना बंद हुआ 
अर्थव्यवस्था रुक गई 
जीना सबका दूभर कर गई 
कितने बेरोजगार हुये 
व्यवसाय कितने तबाह हुये 
कितनी जानों को छीन गया 
लावारिस मौत अपनों की 
देख कितना दिल रोया होगा 
मौन श्रद्धांजलि हर ओर 
अजीब शांति थी बाहर 
अंदर हाहाकार था   
कहीं ॐ शांति का शोर था  
विदा हुये 
कितने अपने, कितने नेता, 
कितने अभिनेता, कितने सेवा कर्मी 
किसी को न तूने छोड़ा 
मनोबल तूने सबका तोड़ा 
अब तू जा 
२०२० तू जा रे 

इस बार मैं
स्वागत नहीं कर रहा 
अँग्रेजी नववर्ष का 
लेकिन तुझे २०२० 
अब मैं 
भागता हुआ देखना चाहता हूँ 
हम सब से कोसो दूर
तेरी यादों को 
‘डिलीट’ करना चाहता हूँ 
है मुश्किल अपनों को भूलना 
पर विश्व की खुशहाली हेतु 
तुझे सर पर पैर रखकर
भागते हुये देखना चाहता हूँ
जा रे, तू जल्दी जा रे

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/१२/२०२०    


 

 

 

    

 


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