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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

रोमिल बड़थ्वाल - एक परिचय

 

लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त)

हिंदी, साहित्य, संस्कृति और धर्मनिष्ठा से जुड़े कुछ बड़थ्वालो से आपका परिचय करवाया. आज मुझे एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानने का अवसर मिला जो देश की रक्षा से जुड़ते हुए पर्वतारोहण ब एथलीट की दुनियां में आज एक मिसाल है. उत्तराखंड के ग्राम ‘खोला’ पट्टी कंडवालस्यूं के श्री बुद्धि बल्लभ के सुपुत्र लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त) अपने फौजी पृष्ठभूमि, पारंगत क्षेत्र और व्यवसाय में किसी परिचय के मोहताज नहीं. लेकिन हम सबके लिए इस साहसी व्यक्तित्व को जानना और भी जरुरी हो जाता है कि वे बड़थ्वाल है.

13 पर्वतारोहण अभियान को नेतृत्व प्रदान करने वाले रोमिल बड़थ्वाल ने २२ वर्षो तक सेना में अपना योगदान दिया. अपने पर्वतारोहण अभियान का अंत उन्होंने मई २०१९ में माउन्ट एवरेस्ट पर फतह के साथ पूरा किया.

रोमिल बड़थ्वाल एक ट्रेकर, एक एंड्योरेंस-रनर और सुपररेंडोन्यूर  ब्रेवेट्स (साइकिलिंग) है. वे व्हाईट वाटर राफ्टिंग कोर्स के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ है. विज्ञापन खेलो में भी रोमिल ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. बजी जम्पिंग, कयाकिंग, पैरामोटरिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग सहित साहसिक खेलों में सक्रिय रूप से प्रतिभागिता की है.

२ अक्टूबर १९७६ में जन्मे रोमिल 18 साल की उम्र में भारतीय सेना में भरती हुए. वे आज की अपनी सारी सफलताओं और माउन्ट एवरेस्ट के पर्वतारोहण अभियान नेतृत्व के पीछे भी सेना को श्रेय देते है. वे आज भारत के शीर्ष पर्वतारोहण कम्पनी “बूट्स & क्रेम्पोन्स” (B&C), के संस्थापक है

रोमिल राष्ट्र रक्षा अकादमी पुणे से स्नातक है. शैक्षणिक प्रदर्शन के दौरान वे कई पर्वतारोहण अभियान में असफल रहे, पेराट्रूपर बनना चाहते थे पर असफल रहे. लेकिन उन्होंने हिम्मत व् हौसला बनाये रखा. एम् टेक ( आई आई टी खडगपुर ) के दौरान उन्होंने खुद को पहचाना, कड़ी मेहनत से स्वयं को तैयार किया. अपने आत्मविश्वास को बनाये रखा. उनके पत्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों व् मेग्जींस में प्रकाशित भी हुए. इसी दौरान  रोमिल ने लंबी दूरी की दौड़, 10 किमी, हाफ मैराथन, मैराथन, साइकिलिंग सुपररेंडोन्यूर , हाफ आयरनमैन, राफ्टिंग इत्यादि में महारत हासिल की.

उपलब्धियां:

·         रोमिल बड़थ्वाल ने 2017 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित बोस्टन मैराथन में भागीदारी की.

·         ला अल्ट्रा, सुमुर से लेह तक वाया खारदुंगला पास (3500 मीटर की ऊँचाई पर) से सबसे कठिन उच्च ऊंचाई वाला अल्ट्रामैराथन है। रोमिल ने इसमें 111 किमी दौड़ के लिए गैर-लद्दाखी श्रेणी में टीम कप्तान और रिकॉर्ड धारक हैं।

·        नई दिल्ली स्टेडियम रन में 185 किमी की दूरी तय की

रोमिल पर्वतारोहण अभियानों में एक टीम लीडर के रूप में,  टीम के सदस्यों की सुरक्षा के नाते, पर्यावरण सरंक्षण, राष्ट्र के सम्मान को स्वयं के हितों से पहले रखते है। रोमिल कहते है कि माउंट एवरेस्ट के लिए, अपने मिशन के लिए मैं इस हद तक तैयार था कि अगर मैं उंगलियां या पैर की उंगलियों को खो देता तो भी परवाह न करता. रोमिल आज अपनी कम्पनी के द्वारा अनेको पर्वतारोहण के इच्छुको को ट्रेनिंग देते व् अभियान चलाते हैं. वे अफ्रीका, अर्जेंटीना, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और भारत में कई अभियान चलाते हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल, मैरून बेरेट वाला पैराट्रूपर, ओपी विजय और कारगिल का हिस्सा थे और कई वर्षों बाद  उन्हें 2019 में साहसिक खेलों में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'द ईएमई ब्लू अवार्ड' से अलंकृत किया गया।

दो पुत्रियों ( १० वीं व् ५ वीं की छात्रा) के पिता रोमिल आई आई एम्, लखनऊ से मेनेजमेंट स्नातक है. एक महान प्रेरक वक्ता ( लगभग 100+ सभाए) और कई फिटनेस के लिए एक रोल मॉडल भी है. वे अपने माता पिता के साथ द्वारिका दिल्ली में रहते है. आजकल वे  नेपाल में पर्वतारोहण अभियान के साथ हैं.

हमारी ओर से रोमिल बड़थ्वाल व् परिवार को ढेर सारी शुभकामनायें. 


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रविवार, 18 अप्रैल 2021

तनहा अजमेरी – गुमनाम शायर ( एक परिचय)

बड़थ्वाल – एक शब्द जो मुझे सदा उत्साहित करता है. यही कारण है कि मुझे हर उस व्यक्तित्व से जुड़ना अच्छा लगता है जिसके साथ बड़थ्वाल जुड़ा है क्योंकि वह मेरी जड़ो को मजबूती प्रदान करता है. जब मैं २००७ में बड़थ्वाल बंधुओं की तलाश में था उस वक्त लिखने का शौक भी था और कई लेखको, शायरों व् कवियों को पढता भी था. तभी एक नाम जो मेरी नजरो से गुजरा - तनहा अजमेरी. एक बेहतरीन शायर और शब्दों के जादूगर तनहा अजमेरी को पढ़ा तो जानने का प्रयास किया. मेरी ख़ुशी की सीमा नहीं रही जब मैंने पाया कि उस शख्स का नाम संजय बड़थ्वाल है. आप भी चौंक गए होंगे न ? खैर फिर उनसे परिचय बढाया बड़थ्वाल (Barthwal’s Around the World) समूह में जोड़ा. मेरा तो परिचय है ही उनसे, क्या आप जानते हैं? आइये मिलिए संजय बड़थ्वाल जी उर्फ़ तनहा अजमेरी जी से - कुछ मेरी कलम से कुछ उनकी जुबानी .. 


ज़िन्दगी सिर्फ वो ही नहीं जिसकी हर वक़्त चर्चा होती रहे
 “तनहा” किसी गोशे में सुकून से खुश रहना भी है ज़िन्दगी 
(गोशे=कोने) 

वैसे तो संजय जी कहते है कि मेरे बारे में जानने लायक, सचमुच, कुछ भी नहीं है। जो थोडा बहुत लिख लेता हूँ, वही मेरा परिचय बनकर रह गया है। लेकिन मैंने जाना है जो जाना है उसकी शुरुआत करता हूँ सन १९३९ की बात है जब पाली तल्ली से संजय जी के दादा जी स्व. मेजर मनीराम बड़थ्वाल जी कोटद्वार आ गए परिवार के साथ. मेजर मनीराम जी ब्रिटिश आर्मी में गढ़वाल के पहले चुने हुए आफिसर में से एक थे. नजीबाबाद रोड पर बडथ्वाल कोलोनी उनके नाम पर ही है. परिवार के लालन पालन हेतु संजय जी के ताउजी, चाचा जी व् पिताजी देश के विभिन स्थान पर रहने लगे. यह उत्तराखंड में पलायन के शुरआती दौर की बात होगी. संजय जी का मानना भी है कि यही वक्त था की हम अपनी जड़ो और पहाड़ से दूर हो गए या कहे - कट गए. 

संजय जी के एक ताऊ जी स्व मेजर सत्य प्रसाद बड़थ्वाल (शहीद १९६२ भारत चाइना वार) और दूसरे ताऊ जी श्री जगदम्बा प्रसाद बड़थ्वाल (एक्स जनरल मेनेजर, केनेडियन इंस्टीटयूट आफ बिजिनेस, ओंटारियो) संजय जी के पिताजी श्री शांति प्रसाद बड़थ्वाल जी अजमेर (राजस्थान) आ गए. वे कहते है कि पहाड़ से रिश्ता क्या टूटा की मरुस्थल से जा मिले. 

संजय जी के पिताजी स्व श्री नरेश ( शांति प्रसाद) सीआर पी ऍफ़ में कमान्डेंट की पोस्ट से रिटायर्ड हुए. संजय जी की दो छोटी बहिने है संगीता बड़थ्वाल खंडूड़ी ( स्कूल प्रिंसिपल, शिलोंग) और दीपाली बड़थ्वाल काला ( डायरेक्टर आफ एडुकेशन, स्ट्रेयर्ष यूनिवर्सिटी यूएसए). 

संजय बड़थ्वाल उर्फ़ तनहा अजमेरी का जन्म ३१ अक्टूबर १९६७ अजमेर में हुआ. प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने यहीं से प्राप्त की. वहीं पर शायरी के बीज चुन अल्फ़ाज़ के तमाम शजर (पेड़) लगाने का सिलसिला शुरु हुआ। अजमेर में पैदा होने कारण ही अपने उपनाम में उन्होंने ‘अजमेरी’ शब्द को जोड़ा. संजय जी की उच्च शिक्षा दिल्ली दिल्ली में सेंट स्टीफन कॉलेज में हुई. तनहा अजमेरी मानते है कि उन्हें नुकसान यह हुआ कि इन ५ वर्षों के दौरान वे धरातल से और दूर हो गए और आलम यह हुआ की न तो वे अंग्रेज बन पाए, न हिन्दुस्तानी रह गए. देश के रहे न परदेश के तो जीवन के भटकाव को ही जीवन बना लिया. कभी इधर कभी उधर, एक बहके हुए परिंदे कि मानिंद शजर से शजर। वे लिखते हैं 

अपनी धुन में जाने किधर से किधर निकल गए 
हम ऐसे मुसाफिर है जो मंजिलों को भी छल गए 

उन्हें नौकरियां मिलती रही और वे उन्हें छोड़ते रहे. कह सकते हैं कि किसी तरह उनका काम चलता रहा और ज़िन्दगी तमाम होती रही। तनहा अजमेरी जी कहना है कि एक चीज़ जो हमेशा साथ रही वो थी उनकी शायरी। इस पर वो कहते हैं कि ‘तनहा’ घूमते - घूमते हुजूम से अब ताल मेल बिठाना भूल गया हूं और वास्तविक व्यावहारिक गुफ्तगू से बिल्कुल परे हो गया हूं। 

संजय जी बताते है कि जहां तक कार्य का ताल्लुक है बहुत कोशिश की। सरकारी अफसर भी रहा, उकता गया। रोटी जब समस्या बनी तो कई प्राइवेट जॉब्स किए। TIMES OF INDIA, फिर इस्तीफा। अपने खुद के अखबार चलाए - "उत्तराखंड सवेरा" और "VOICE FROM HILLS". उच्च कोटि का काम करने की कोशिश की पर चाटुकारिता न जानने के अभाव के चलते विज्ञापन न मिले और निम्न कोटि के अखबार रसूखदार लोगों के सियासती CONNCETION के आगे अपने अखबार तो पटखनी खा गए। 

 संजय जी का स्वतंत्र रूप से लिखना जारी रहा - स्क्रिप्ट, बोल, कहानियाँ इत्यादि. मगर अंजाम वही- ढाक के तीन पात। मुंबई फिल्म उद्दयोग में जीरो कनेक्शन होने के कारण बात उनकी बात वहां भी नहीं बनी. वे कहते है कि ईर्ष्यालु लोगों ने आगे न बढ़ने दिया और मैं TALENT WITHOUT OPPORTUNITY की मिसाल बनकर रह गया। सो अब घर बैठे - बैठे ही अल्फ़ाज़ की माला पिरों रहा हूं। कहते हैं जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा। परवाह नहीं। मोर का मज़ा तो नृत्य में है। मेरे तो यही हाल है... 

ना जाने किसी ओर निगाहें किये बैठा रहा है ज़माना
मेरी तो महज कुदरत के नज़रों में ही ज़िन्दगी रही 
होती होंगी औरों की इबादत देरों - हरम में तनहा 
मेरी तो फकत आशिक़ी ही ताउम्र मेरी बंदगी रही 

संजय बड़थ्वाल जी ने इस दौरान कुछ किताबें लिखी हैं – 
 - दायरों से बाहर(Poems), 
 - अफसाना बयानी(Short Stories), 
 - समंदर (Ghazals), 
-  गीत (Music and lyrics), 
 - अक्कड़ - बक्कड (बच्चों की कविताएं), 
 - हॉलीडे रीडिंग (अंग्रेज़ी में बच्चों के लिए कहानियां), 
 - द लास्ट मैन स्टैंडिंग (पर्सनैलिटी डेवलपमेंट बुक)। 

आप सभी लोग उनके ब्लॉग में उनकी शायरियो का लुत्फ़ ले सकते हैं.
http://tanhaai-pursukun.blogspot.com/?m=1 

संजय जी अपनी जड़ो के साथ जुडा रहना चाहते हैं वे कहते है कि बडथ्वाल नाम से तो प्रेम है पर असमंजस में हूं कि क्या वाकई में इस समूह से जुडा हर शखस संजीदा है भी या नहीं या फिर लोग सिर्फ तफरीह के लिए जुड़ रहे है सिर्फ "GOOD MORNING और GOOD NIGHT" बोलने के लिए... वे एक प्रश्न बड़ी संजीदगी से पूछते है की “क्या इनके जिस्म में शिद्दत से वो लहू बह रहा है जो वाकई में उन्हें बड़थ्वाल होने पर एक नई ऊर्जा से भरता हो ? यह प्रश्न हम सबके लिए भी है और हम ही उत्तर भी है उनके प्रश्नों का. 

वर्तमान में संजय जी अपनी माताजी के साथ देहरादून में रहते है. 

आप सभी के साथ मैं उन्हें उनके उज्जवल भविष्य की कामना सहित शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
 भारत १८/४/२१

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