पृष्ठ

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

नील गगन मे यूँ बादल


कभी सफेद
कभी काले
कभी छट जाते है 
कभी उमड आते है
नील गगन मे यूँ बादल 

बचपन से देखता आया हूँ
तुझे येसा ही पाया है
ना बदला तू
ना बदली तेरी फितरत 
नील गगन मे यूँ बादल 

बदली छाये
मन मोरा भाये
देख तुझे
मन मयूर सा हो जाये
नील गगन मे यूँ बादल  

चांदनी रात में भी
होती तुमसे कभी बात्
भरी दोपहर मे भी
तु निभाये हमारा साथ 
नील गगन मे यूँ बादल  

कभी तलाशने मे तुझे
कोसो निकल जाता हूँ
कभी ऊँचाई से देखू
तो पास तुझे पाता हूँ
नील गगन मे यूँ बादल 

तुझे बहुत बार 
मैने है कोसा
बरसता क्यो नही 
हर बार तू बरसात जैसा
नील गगन मे यूँ बादल 

कभी तुझ में झांका नही
खुश है या दुखी जाना नही
अहसास होता है कभी तेरे बरसने से
दर्द समेटे है तू भी कुछ कम नही
नील गगन मे यूँ बादल 

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...