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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

मेरे जाने के बाद

 


मेरे जाने के बाद 

चलो मैं चलता हूँ 
अच्छा - बुरा जैसा भी था 
साथ तो था ही 
तुम्हारा और मेरा 
वैसे
भूलना चाहोगे भी न 
तो भूल नहीं पाओगे 
खुशियाँ कम और गम ज्यादा 
यही तो दे पाया हूँ मैं तुम्हें
तुम भी तो 
मुझसे पीछा छुड़ाने का
भरसक प्रयास कर रहे हो
कम से कम 
मेरे जाने से मेरा अस्तित्व 
तुम्हारी स्मृति पटल से हट 
कुछ हद तक तुम्हें सुकून देगा 

नियति के बंधन से बंधकर 
क्रूर वक्त के साए में 
क्रूरता की चरम सीमा बन
घाव कुछ गहरे छोड़े जा रहा हूँ 
भूल सको तो भूल जाना 
जानता हूँ, मेरा डर अब भी
तुम्हारे मन मस्तिष्क
पर प्रहार करता है 
इसलिए कह रहा हूँ
भूल सको तो भूल जाना 
नहीं चाहता कि 
मेरे जाने के बाद भी 
मेरा डर तुम्हें सताए 

निर्दयी मत समझना
प्रयास तो किया मैंने 
अपने रहते हुए तुम्हें
कुछ अच्छी याद देकर जाऊं
अपने प्रेम और भक्ति
से तुम्हें अवगत करा जाऊं 
खुशियों गुनगुनाने के कुछ पल
तुम्हारी झोली में भर जाऊं
यकीन है मुझे 
ऐसा कुछ न कुछ तुम्हें 
मुझसे मिला ही होगा  
हो सके तो तुम 
इन्हीं पलों को याद रखना 
मेरे जाने के बाद 

सुना है 
शुभकामनाओं में बड़ी ताकत होती है
इसलिए अपने जाने से पहले
तुम्हारी हर ख़ुशी की कामना कर रहा हूँ 
जीवन पथ पर बढ़ते जाना
कर्म से अपने पहचान बनाना
लेकर संकल्प राष्ट्र भक्ति का 
भारत का तुम वैभव बढ़ाना 
अपने हर निर्णय पर विश्वास हो
सफलताओं की राह आसान हो 
मंगलमय हो जीवन यात्रा तुम्हारी
घर परिवार को मिले खुशियाँ सारी
यही शुभकामनायें 
देकर जा रहा हूँ तुम्हें

चलो अब मैं चलता हूँ “प्रतिबिम्ब”
२०२१ हूँ, अब तुमसे विदा लेता हूँ 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, ३१ दिसम्बर २०२१

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

बने हिंदी मेरी पहचान

 

बने हिंदी मेरी पहचान
*************
 
हिंदी है मेरा मान, हिंदी है मेरा सम्मान
राज भाषा है, अभी केवल इसकी पहचान
टीस उठती है, जब देखता मैं ये अपमान
वर्षो से सीने में मेरे, सुलग रही ये चिंगारी
कब बन कर राष्ट्रभाषा, बने हिंदी मेरा स्वाभिमान 
बने हिंदी मेरी पहचान

मेरे बचपन की भाषा, यौवन का तुम प्रेम हो
मेरे रोम-रोम में बसी, वर्षो का तुम शोध हो
भावों का तुम शृंगार, सपनों की तुम ओज हो
मेरे हृदय की धड़कन, भविष्य की तुम सोच हो
चाहता बन कर राष्ट्रभाषा, बने हिंदी मेरा अभिमान
बने हिंदी मेरी पहचान

देवनागरी है हिंदी का मूल, संस्कृत इसका स्रोत है 
समाहित कई भाषाएँ, हर भारतीय को जोड़ने का सेतु है 
अथाह सागर सा इसका शब्दकोश, भाषा ये वैज्ञानिक है 
अपनत्व का बोध कराती हिंदी, वसुदैव कुटुंब इसका सार है
अस्तित्व इसका सदैव बना रहे, बने हिंदी मेरा गौरवगान 
बने हिंदी मेरी पहचान

सदियों से परतंत्रता का दंश झेल रही, मेरी हिंदी 
आज भी राजनीति का मोहरा बन रही, मेरी हिंदी 
भाषाओँ से भी भाषा का द्वंद्ध झेल रही, मेरी हिंदी
अपनों के ही तिरस्कार से आज जूझ रही, मेरी हिंदी
धर्म-युद्ध राष्ट्रभाषा का जीतकर, बने हिंदी मेरी पहचान
बने हिंदी मेरी पहचान

संस्कृत संस्कृति की परिचायक, हिंदी की पृष्ठ भूमि न्यारी
श्यामसुन्दर-आचार्य शुक्ल, हजारी-बड़थ्वाल से इसके पुजारी
माखनलाल-सुमन-मैथली, नागार्जुन-अज्ञेय-भारती से उत्तराधिकारी
द्विवेदी-निराला-सुभद्रा, पन्त-दिनकर-महादेवी से इसके अनुरागी
राष्ट्रभाषा बन शीर्षथ हो हिंदी, होंगे पूरे तब हमारे अरमान 
बने हिंदी मेरी पहचान

जिस राष्ट्र कि अपनी भाषा नहीं, वो गूंगा कहलाता है 
स्वतंत्र होकर भी भारत, गुलाम अंग्रेजी का कहलाता है
उचित प्रतिनिधित्व न मिलने से, विकास अवरोधित होता है 
है विश्व गुरु मेरा भारत ‘प्रतिबिम्ब’, राष्ट्रभाषा के गौरव से अछूता है
यह वैभव हिंदी को मिल जाए, हर भारतीय करे इसका सम्मान
बने हिंदी मेरी पहचान

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २७/१२/२०२१
 

शनिवार, 14 अगस्त 2021

राष्ट्र्धव्ज को करें प्रणाम

 


राष्ट्र्धव्ज को करें प्रणाम 


कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 
है राम कृष्ण की पावन भूमि 
भगत सिंह सा यहाँ बलिदानी  
पुण्य भूमि, जन्म भूमि ये मेरी
मातृभूमि का है इतिहास पुराना 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

कश्मीर से कन्याकुमारी कद इसका 
गुजरात से बंगाल तक सीना इसका 
गंगा यमुना इसके रग में बहती 
हिंद महासागर चूमता इसके चरण 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

आतिथ्य और प्रेम यहाँ है भाषा 
गुरु परम्परा को करता विश्व प्रणाम 
वसुदेव कुटुम्बकम का प्राण लिए 
उन्मुक्त तिरंगा करे अभिमान 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

सुभाष, सावरकर सा खून लिए 
विवेकान्द सा करता कोई अगुवाई 
रामायण गीता का होता अनुसरण 
मेरे तिरंगे का  शौर्य महान
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

तीन रंगो में रंगा तिरंगा हमारा 
हर भारतीय का इसमें गौरव है 
संस्कृति शांति विकास का है धोतक   
कर्तव्य हमारा करना इसका सम्मान
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

अलग भाषा, धर्म, जात चाहे हो प्रांत 
एक राष्ट्रध्वज बनता हमारी पहचान 
अनेकता में एक्य मन्त्र बन कर नारा 
एक स्वर निकले झंडा ऊँचा रहे हमारा 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

वीरों के तन से लिपट कर 
सम्मान कर्तव्यनिष्ठों का करता है 
बलिदानों का बन कर गवाह 
लहर - लहर राष्ट्रध्वज लहराता है 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

सजग प्रहरी भारत का सेनानी 
दुश्मन को मुँह तोड़ देता जबाब 
वीरगति होता कुछ का पुरुस्कार
बना रहता है तिरंगे का अभिमान 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

कर्तव्य बोध ही है सर्वोतम 
भाग्य भरोसा नहीं, कर्मठता पहचान
स्वाभिमान और अस्मिता संग 
राष्ट्रध्वज की गरिमा है अपनी शान 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 

संस्कृति सभ्यता की अपनी धरोहर 
जन गण मन है इसका गान  
विश्वगुरु का परचम हो पुनर्स्थापित 
हमें समृद्ध, श्रेष्ठ भारत बनाना है 
कर वंदन भारत माँ का 
राष्ट्रध्वज को करें प्रणाम 


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, १४ अगस्त २०२१


गुरुवार, 15 जुलाई 2021

ज्योतिषाचार्य स्व श्री मुकुंद राम बड़थ्वाल “दैवज्ञ” - एक परिचय


(ज्योतिषाचार्य स्व श्री मुकुंद राम बड़थ्वाल “दैवज्ञ” )


जब भी किसी बड़थ्वाल का नाम सुनता हूँ तो अनायास ही मन ख़ुशी अनुभव करता है और यदि कोई ऐसा है जिसके कृतित्व व् व्यक्तित्व पर बड़थ्वाल कुटुंब को गर्व होना चाहिए तो गर्व होता है. हम ही परिचित नहीं तो कैसे उनके कृतित्व को अन्य लोगो तक पहुंचाए. ऐसे ही एक प्रकांड ज्योतिषविद्ध श्रद्धेय स्व मुकुंद राम बड़थ्वाल जी के बारे में मुझे अब पता चला. जानकरी मिलने पर जो परिचय प्राप्त हुआ वह अद्भुत है. ज्योतिष विद्या में अनुसंधान के प्रक्रिया सा विस्तार दिया है इन्होने. उनके द्वारा ज्योतिष विज्ञानं में  जो श्रम और इस साहित्य को दिया गया है शायद बहुत थोडा ही लोग जानते है अगर कहे की कोई नहीं जानता तो अतिश्योक्ति भी नहीं होगी. गिने चुने लोग तब और अब तो कोई भी नहीं. हमें अपने इस रत्न की केवल अपनों में नहीं, केवल भारत में नहीं बल्कि विश्व से पहचान करवानी होगी. बडथ्वाल होने के नाते हमारे इस बड़थ्वाल कुटुंब का दायित्व भी बन जाता है और उस क्षेत्र ( संस्कृत संस्थाओं ) का भी जिसका वे प्रतिनिधित्व करते थे. आईए आज उस ज्योतिष साधक, संस्कृति साधक को संक्षिप्त में, उनके बारे में जानने का प्रयास करते है. उनका अपने समाज से परिचय करवाते हैं.  

 प मुकंद राम बडथ्वाल का जन्म  ८ नवम्बर १८८७ को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के खंड ग्राम में हुआ. पिता श्री रघुबर दत्त बड़थ्वाल ( ज्योतिष, कर्मकांड व आयुर्वेदाचार्य) तीन पुत्रो में सबसे बड़े पुत्र मुकुंद राम बड़थ्वाल  को ज्योतिष, एक पुत्र को कर्मकांड व् एक पुत्र को आयुर्वेद की ओर प्रेरित किया. मुकुंद राम जी ने पिताजी द्वारा ज्योतिष विद्या को बचपन से ही ग्रहण करना शुरू किया. एक लोकोक्ति है न कि पूत के पाँव पालने  में ही  दिख जाते  हैं अर्थात  किसी व्यक्ति के भविष्य का अनुमान उसके वर्तमान लक्षणों से लगाया जा सकता है. मुकुंद राम जी ने इस लोकोक्ति को चरितार्थ किया जब उन्होंने मात्र ९ साल की उम्र में ग्रह – गणित ज्ञान अर्जित कर लिया. 
 
इनकी शिक्षा घर, लाहौर व् साहित्यिक साधना देव प्रयाग में हुई  देव्शाला में हुई. १८ वर्ष की आयु में ही मुकुंद जी ने जातक – सारम की रचना की थी. ज्योतिर्य गणित व् सूर्यसिद्धांतो का गहन अध्ययन कर उन्होंने  मुकुद –विनोद सारिणी , मकरंद तति, मुकुंद पद्धिति, प पञ्चांग मन्जूषा, दशा- मन्जरी, सारिणिया बनाई.

मेरा मानना है की आधुनिक ज्योतिर्विद में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए. यह उनके अथाह ज्ञान व् कड़ी मेहनत के साथ शोध गर्भित अन्वेषण शामिल है.. लाहौर में एक ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा फलित ज्योतिष के ग्रन्थ संकलन हेतु मुकुंद दैवज्ञ जी ने अनेकों प्रकाशित व् अप्रकाशित ग्रंथो का अध्ययन किया. यह कोई आसान कार्य नहीं था लेकिन उनकी लगन ने ज्योतिष शास्त्र के सभी अंगो का समन्वय कर ज्योतिस्त्तत्व के नाम से रचा जो प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक को छपने में मुंबई से तीन व्यापारी केशवलाल वीरचन्द सेठ, राम्निक्लाल श्यामलाल परोख,बादिलाल मोहनलाल शाह का योगदान रहा. इसका संपादन उनके शिष्य प चक्रधर जोशी. गुरु मुकुन्दराम दैवेग्य जी और शिष्य प चक्रधर जोशी जी की जोड़ी, गुरु - शिष्य परम्परा की सटीक उदाहरण थी उनके इस शिष्य ने ही आचार्य मुकुंद दैवेज्ञ ज्योतिः शोध संश्थान  की स्थापना (The Himalayan Astrological Research Institute के अंतर्गत सन १९४६ ई में देवप्रयाग में की थी. इसके अंतर्गत एक नक्षत्र वैधशाला तथा पुस्तकालय भी बनाया बनाया गया.  


मुकुंद जी ने बहुत से ग्रंथो पर संस्कृत में व्याखाएं व् टीकाएँ लिखी. जिनमें से प्रमुख है
भट्तोत्प्ल की आर्या- सप्तति 
वेंकटेश कृत केतकी – ग्रह गणित
विददाचार्य की पद्धति – कल्पवल्ली
मल्लारी की अश्वारूढ़ि
पंडित पद्दनाभ का लम्पाक-शास्त्र
पंडित परमसुख उपाध्याय का रमल –तंत्र

ऊपर लिखी हुई भट्तोत्प्ल की आर्या- सप्तति तो कई वर्षो से राजस्थान विश्वविद्यालय की ज्योतिषाचार्य परीक्षाओं में निर्धारित पाठ्यपुस्तक है. ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न पक्षों पर दैवेज्ञ जी ने १२ भावो के फलित पर संकलन ग्रन्थ लिखे हैं. इनमें से कुछ भावो पर उनके निम्नलिखित ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं और प्रकाशित भी हैं.

भावमन्जरी
अष्टकवर्ग
आयु-निर्णय
इष्टलग्न- निर्णय
प्रसवचिंतामणि व् नष्ट जातक

ज्योतिष के जिज्ञाशूओ के लिए इसके अलावा भी उनके ग्रन्थ है जैसे बाल बोध दीपिका, वृहद/ ज्योतिष शास्त्र प्रवेशिका, वृहद होड़ा चक्र. साथ ही ज्योतिर्गणित सिद्धांत, जातक ताजिक प्रश्न वृष्टि शकुन वस्तु समर्घ-महर्घ पर भी उन्होंने ग्रन्थ लिखे हैं. इनमे से कुछ प्रकाशित कुछ अप्रकाशित है. सभी ग्रंथों को तालिका रूप में प्रस्तुत करूंगा आगे.

ज्योतिष ग्रंथो के अध्ययन के समय ज्योतिष शब्दों के लिए मुकुंद दैवेज्ञ जी को कई शब्दकोषो में ढूँढना पड़ता था. विभिन्न कोश ढूंढते थे. जैसे  वैश्नीय कोश की खोज की तो पता लगा की एक तो लन्दन में एक भारत में. किसी तरह उनके शिष्यों ने भारत में उस का कोश का पता लगाया उस पुस्तकालय का सदस्य बनाया.   इसलिए साथ साथ उन्होंने ज्योतिष शब्दों को एकत्र करना शुरू किया.  इसके फलस्वरूप उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति  ज्योतिष शब्दकोष जो की ज्योतिष शास्त्र को एक देन है. सन १९६७ में भारत सर्कार के शिक्षा मंत्रालय की वितीय सहायता द्वारा इसका प्रकाशन हुआ.  इस शब्दकोष में गद्य पद्य उपयोगी शब्द, पर्यायवाची शब्द व् अनेकार्थ शब्दों का भी संकलन है. इस शब्दकोष का आमुख महो महोपाध्याय परमेश्वरानंद द्वारा लिखित है.

उनकी विद्वता का और ज्योतिष पांडित्य ज्ञान का एक उदाहरण उनका एक मौलिक ग्रन्थ ज्योतिषतत्वम है जो १९५५ में प्रकाशित हुआ. लगभग १४०० पेजों के इस ग्रन्थ में ७७७५ स्वरचित श्लोक है.

मुकुंद कोष  का केवल एक ही भाग प्रकाशित हो पाया. अधिकांश रचनाओं को उन्होंने मुकुंद आश्रम में ही सृजन किया.  मुकुंदाश्रम सन १९६० से बनाया गया था. आइये जानते है उनके प्रकाशित व् अप्रकाशित ग्रंथो के नाम:

प्रकाशित ग्रन्थ

पंचांग मंजूषा : मुंबई से कल्याण प्रेस द्वारा सन १९२२

आर्य सप्तति: पाण्डुरंग जीवाजी रामचंद्र येशु शेंडगे मुंबई द्वारा

मुकुंद पद्वति : देवप्रयाग क्षेत्र निवासी श्रीमत पंडित गोवर्धन प्रसाद भट्ट , पंडित रेवतराम जी व् पंडित माधो प्रसाद शर्मा – स्व्मूलेन प्रकशित  १९८३ में नवल किशोर मुद्राणलय मुद्रिता बम्बई 1983

दशामन्जरी : मुकुंद प्रकाशन,जयपुर

ज्योतिषशास्त्र प्रवेशिका:

बृहद होरा चक्रम: मेहर चंद लक्ष्मण दास, संस्कृत – हिंदी ( पुस्तक विक्रेता सैदमिट्ठा बाजार, लाहौर विक्रम संवत १९९३

ज्योतिष रत्नाकर: लाहौर में ( एक भाग ही ही ४०० पन्नो का)

ज्योतिषतत्त्वं: १९५५ प चक्रधर जोशी

आशुबोध टीका:  जयपुर में आचार्य स्वीकृत

ज्योतिष शब्द कोश: १९६७

बृहद ज्योतिष शास्त्र

नष्ट जातकम: रंजन पब्लिकेशन

भाव मन्जरी: रंजन पब्लिकेशन

आयुर्निर्णय: रंजन पब्लिकेशन

अष्टक वर्ग महानिबंध: रंजन पब्लिकेशन

प्रसव चिंतामणि: रंजन पब्लिकेशन

जातक भूषणं: रंजन पब्लिकेशन

वित् एवं कृति प्रबंध

लिंगानुशासन वर्ग

 
अप्रकाशित ग्रन्थ लगभग ३०  (१४ ज्योतिष गणित)
पद्वति कल्पवल्ली
जातक सर
मुकुंद विनोद सारिणी
आयुदार्य संग्रह
मुकुंद विलास सारिणी
एकोद्दिष्ट श्राद्ध पद्वति
मकरन्दतति:
अष्टक वर्ग संग्रह
ज्योति: सार संग्रह
जातक परिजतादी संग्रह
जातकालंकार(टीका)
ताजिक योग संग्रह
मुकुंद योग संग्रह
व्यापार रत्नम
रमल नवरत्नम
जातक सूत्रम
बाल बोध दीपिका
पियूष धरा
मनोरमा
मधुव्रता
कोशानामवली
भूवलय चक्रम
अश्वारूढ़ी
लम्पाक शास्त्रं
प्रश्न दीपिका
स्त्रीजातकम
कोतकीयगृह गणितम
मुकुंदकोश
(ताम्रपत्र - अभिनव वराहमिहिर)

ज्योतिष के मर्मज्ञ पं मुकुंद राम बड़थ्वाल जी को १२ अप्रैल सन १९६७ में भारतीय ज्योतिष अनुसंधान संस्थान ने अभिनव वराहमिहिर की उपाधि से सम्मानित किया. यह उपाधि उन्हें राज्य पाल एम् चेन्ना रेड्डी द्वारा लखनऊ में प्रदान की गई.  वराहमिहिर ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे. ये भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मार्तण्ड कहे जाते हैं और वे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य  के नवरत्नों में से एक थे. ज्योतिष समाज में दैवेज्ञ जी की तुलना  वराहमिहिर से किया जाना ही  पंडित मुकुंद राम बड़थ्वाल की महानता का परिचायक है.  उनके मौलिक 40,००० श्लोक है.

मुकुन्दस्य प्रतिज्ञेद्वे कोषम ( मुकुंद्कोश) गंगा गंगां च न त्यजेत  परिज्ञ को अंतिम समय तक निभाया. खंड ग्राम में मुकुंदाश्रम में नदी किनारे ३० सितम्बर १९७९ मुकंद दैवेज्ञ जी ने अंतिम सांस ली.  

उनके लिखित हस्तलिखित ग्रन्थ आज भी बाट जो रहे है सरकार की, किसी प्रकाशक की, किसी ऐसी संस्था की जो संस्कृत में लिखे इन ग्रंथो को अनुवाद करवा कर ज्योतिष के विद्यार्थियों को, शोधकर्ताओं को उपलब्ध हो सके या ज्योतिष में, फलित ज्योतिष पढने वाले प्रयोग करने वाले इसका लाभ उठा सके.

इन सभी जानकारियों हेतु आभारी हूँ उनके पुत्र श्री रमेश बड़थ्वाल जी का, पोती सुश्री सुधा का, पोते श्री शैलेन्द्र बड़थ्वाल जी का व् श्री हर्षवर्धन जी का जिन्होंने आंशिक तौर पर ही सही परन्तु मुझे जानकारी प्रदान की.

प्रकाशित कुछ पुस्तकों ही मुझे पता चल पाया. रंजन पब्लिकेशन ने भी मुझे जानकरी देने से इंकार किया ( उनके पास १० - १२ ग्रन्थ है कुछ ६ या ७ प्रकाशित उसका भी वे ठीक से जानकरी नहीं दे रहे हैं बाकियों का ज्ञात नहीं). यह  अत्यंत निराशा का विषय है कि उनका विस्तृत भंडार आज भी बंद तालो में है. परिवार के सदस्य भी असमर्थता जाहिर करते हैं कई कारणों से. लेकिन एक उत्तराखंडी होने के नाते, बड़थ्वाल होने के नाते यह हम सब का भी सामूहिक कर्तव्य बन जाता है कि हम इन ग्रंथो के प्रकाशनार्थ हेतु कोई योजनाबद्ध तरीके से इसमें पहल करें.

अंत में इस महान ज्योतिषाचार्य मुकंद देवज्ञ जी की स्मृति में बड़थ्वाल कुटुंब की ओर नमन करता हूँ और विश्वास है आने वाले समय में हम अवश्य उनके अधूरे कार्य ( अप्रकाशित पुस्तकों को प्रकशित करने का) को पूरा करने का प्रयास करेंगे.

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
‘बड़थ्वाल कुटुंब’
एवं
महामन्त्री, हिंदी साहित्य भारती (विदेश)


(सहयोग - आपके विचारो और राय के माध्यम से मिलता रहेगा येसी आशा है और मुझे मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा सभी अनुभवी लेखको के द्वारा. इसी इच्छा के साथ - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल)

रविवार, 11 जुलाई 2021

हिंदी साहित्य भारती - केन्द्रीय कार्यकारिणी व् विदेश कार्यकारिणी की घोषणा

हिंदी साहित्य भारती विकास यात्रा  

प्रख्यात साहित्यकार एवं पूर्व शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, झाँसी निवासी डॉ रवींद्र शुक्ल तथा उनके साथ देश के अनेक विद्वानों ने हिन्दी भाषा एवं हिन्दी साहित्य के उत्थान का संकल्प लेकर १५ जुलाई २०२० को हिन्दी साहित्य भारती नामक संस्था का गठन किया. अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ३५ देशों में हिन्दी साहित्य भारती सक्रिय है और भारत के २७ प्रदेशों में हमारी विधिवत रूप से गठित प्रदेश कार्यकारिणीयाँ सांगठनिक और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हैं तथा देश के शेष प्रदेशों में संयोजक एवं प्रभारी नियुक्त किए जा चुके हैं जो गठन की प्रक्रिया में सक्रिय हैं। अनेक प्रदेशों में जनपदों और महानगरों में भी हमारा संगठन खड़ा हो चुका है। 

१४ सितम्बर २०२० से १४ अक्टूबर २०२० तक हिन्दी मास व्याख्यानमाला का आभासी आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिदिन अलग-अलग विद्वानों ने विभिन्न विषयों पर रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक व्याख्यान दिये। अक्टूबर मास में ही धर्म बनाम छद्म धर्मनिरपेक्षता, साहित्य और संस्कृति का अन्तःसम्बन्ध एवं संस्कार और संस्कृति विषयों पर साप्ताहिकी के अंतर्गत अनेक शिक्षाविदों और साहित्यकारों ने तार्किक विवेचना प्रस्तुत की। इन कार्यक्रमों के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य भारती द्वारा  पुस्तक समीक्षा, महापुरुषों की जयंती और युवा साहित्यकारों के लिए साहित्यिक प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी आयोजित किये गये।



केन्द्रीय कार्यकारिणी व् विदेश कार्यकारिणी की घोषणा 


११ जुलाई २०२१  -  "प्रेस क्लब आफ इंडिया" में  हिंदी साहित्य भारती दिल्ली द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में केंद्रीय व विदेश कार्यकारिणी की घोषणा की गई। प्रख्यात साहित्यकार एवं पूर्व शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्रीय  व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रवींद्र शुक्ल जी, श्री नरेन्द्र जी, केंद्रीय उपाध्यक्ष (संस्थापक डायमंड पॉकेट बुक्स), डॉ माला मिश्रा, केंद्रीय प्रभारी (प्रो आदिति कॉलिज) , डॉ रमा, अध्यक्ष, दिल्ली कार्यकारिणी (प्राचार्य हंसराज कालिज दिल्ली), डॉ रामजी दुबे ,महामन्त्री, दिल्ली कार्यकारिणी(दिल्ली प्राचार्य दिल्ली कालिज), व श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, (महामंत्री विदेश कार्यकारिणी) की उपस्थित मंच पर रही। 

हि सा भा के उद्देश्यों को डॉ रवींद्र शुक्ल्ल जी ने सबके समक्ष रखा व उनको प्राप्त करने हेतु रोड मैप से भी अवगत कराया. हर प्रदेश  व् कई जिलो में  हि सा भा  द्वारा केन्द्रीय व् विदेश कार्यकारिणी की घोषणा प्रेस वार्ताओ द्वारा दी गई. इसी दिन विभिन्न देशो में भी घोषणा अपने - अपने माध्यम से वहा हिंदी साहित्य भारती के साधको ने की है. इन सबका उल्लेख हर राज्यों  के प्रमुख समाचार पत्रों में टीवी चैल्न्स पर किया गया है. एक साथ पूरे देश में और विदेश में कार्यकारिणी की घोषणा का यह पहला मौका होगा.

प्रेस वार्ता के ततपश्चात दिल्ली शाखा ने हंसराज कालिज में भी सम्मान हेतु एक कार्यक्रम रखा था। कालिज की प्राचार्य डॉ रमा जी ने वहां तुलसी का पौधा व शाल देकर सम्मान किया। यहाँ पर दिल्ली कार्यकरिणी के अन्य सदस्यों - माला जी, राम जी दुबे जी, रजनी जी, सृन्जना जी, प्रभांशु जी, शिल्पा जी, विकास जी, अजय जी से भी मुलाकात हुई. सभी आज के हिंदी साहित्य भारती के सफल आयोजन से उत्साहित दिखे. सबका धन्यवाद व्  शुभकामनायें. इस कार्यक्रम में डॉ देवी प्रसाद मिश्रा जी का सहयोग  भी दिल्ली टीम को मिला. आभार.

विदेशों में व देश के राज्यो जिलों में भी प्रेस वार्ताओं का सिलसिला खूब चला।  सभी को बधाई व शुभकामनाएं.

आप सभी मित्रो से निवेदन है कि अधिक से अधिक संख्या में हिंदी साहित्य भारती से जुड़े - इस संस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नवत हैं:

१-भारत के गौरवशाली साहित्य एवं सांस्कृतिक चेतना को विश्व पटल पर प्रतिष्ठा दिलाना

२- भारत में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक अधिकार दिलाना तथा इसके लिए आवश्यक कार्य योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करना

३- वैश्विक स्तर पर हिन्दी की महत्ता (जिसमें भारत की सभी  क्षेत्रीय बोलियाँ भी शामिल हैं) स्थापित करना और इस हेतु हिन्दी भाषा की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करना

४- हिन्दी एवं भारत की सभा भाषाओं के साहित्यकारों को वैश्विक एवं राष्ट्रीय पटल पर प्रतिष्ठा दिलाना तथा समाजोपयोगी साहित्य को भिन्न-भिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल कराना

५- हिन्दी के समृद्ध किन्तु आर्थिक रूप से कमजोर साहित्यकारों की उच्च स्तरीय कृतियों को प्रकाशित कराने की व्यवस्था कराना

६- विश्व के हिन्दी साहित्यकारों को एक साथ एक मंच पर लाकर साहित्य के प्रदूषण को समाप्त करना

७- विश्व के श्रेष्ठ साहित्यकारों के माध्यम से मानवता के कल्याण हेतु भारत के आदर्श मानवीय जीवन मूल्यों को जन-जन तक पहुँचना तथा देश के बौद्धिक वातावरण को सकारात्मक दिशा देना

८- "इदं न मम, इदं राष्ट्राय" तथा "माता भूमि: पुत्रोहम पृथ्विया:" के मंत्र को केंद्र में रखकर हिन्दी में साहित्य रचना करने वाले साहित्यकारों को प्रेरित करना, जिसके लिए पुरस्कार और प्रशिक्षण आदि का आयोजन करना

९-हर प्रदेश के उत्कृष्ट हिन्दी साहित्यकारों को देश तथा विदेश के मंचों पर स्थान दिलाना

१०- हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य तथा हिन्दी के साहित्यकारों के उन्नयन के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनार, गोष्ठियाँ, कवि सम्मेलन, परिसंवाद, साहित्यकार सम्मेलन आदि आयोजित करना

यह अत्यंत गौरव का विषय है  कि हिं सा भा  से इस समय अनेक पूर्व राज्यपाल, अनेक विश्वविद्यालयों के  कुलाधिपति, कुलपति, प्राचार्य, वभागाध्यक्ष, प्रोफ़ेसर, राष्टीय व्  अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त साहित्यकार, नवोदित प्रतिभाशाली साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक हिंदी प्रेमी और साहित्य अनुरागी तन-मन-धन से, पूर्ण निष्ठा व् समर्पण भाव से जुड़े है.  विदेश कार्यकारिणी में की घोषणा:



सभी देशों में जल्द ही कार्यकारिणीयों का गठन किया जाएगा. विदेशों में हिंदी प्रेम न केवल भारतीयों के दिलों में महसूस हो बल्कि इस देश के निवासी भी इससे प्रेम करें - इसके लिए कार्यक्रम की रुपरेखा उस देश में हि सा भा के लोगो के साथ मिलकर तय किये जायेंगे.   

मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि हम अपने उद्देश्य पर सफल होंगे. सभी हिंदी प्रेमियों का स्वागत है. हिंदी प्रेमी हि सा भा के पन्ने व समूह से जुड़कर देश के राज्यों या विदेश के कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं. 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

महामंत्री 

हिंदी साहित्य भारती (विदेश कार्यकारिणी)


गुरुवार, 13 मई 2021

मोदी सबसे बड़े लड़ैया

 



राजनीती और शत्रु की ये चाल है
अकेला मोदी ही बनता निशाना है
गुजरात से लेकर दिल्ली सत्ता तक
वो कर्म से मौन उत्तर देता जाता है
और
कर्म बना अब, मोदी की पहचान है
तभी तो घर - घर मोदी का चलन है
सत्तापक्ष या फिर हो बिखरा विपक्ष
एक मोदी सबकी जुबा पर बसता है
वह
बन कर प्रधानसेवक, काम करता है
जनता का विश्वास, मिलता जाता है
विपक्ष का आक्रमण, सहता जाता है
रह मौन, भारत हित साधता जाता है  
वह
करा बोध, हिन्दू स्वाभिमान जगाता है
विश्व पटल पर, भारत की शान बढाता है
कूटनिति का खिलाडी, गौरव देश पाता है
अपनों से लेकिन, बार - बार छला जाता है
अबतक
हुआ जो न ७० साल में, करता वह ६ साल में
लिए कठोर निर्णय, अखंड भारत बनता जाता है   
एक आवाज़ से आत्मनिर्भर भारत बनता जाता है
सुरक्षा और एकता का मौन घोष अब मुखर होता है
लेकिन
विरोध में कोई देश हित छोड़ उसे गाली देता जाता है
हर काम पर उसकी अंगुली उठा कटघरे में खड़ा करता है
राजनीति के लिए अपनी हर कोई शत्रु सा व्यवहार करता है
मोदी सबसे बड़े लड़ैया, यह जानकर भी कोई अनजान बनता है
वह
बिजली, शौचालय, सडक, गैस, और आवास दे जन जन की सोचता है
स्टार्टअप, मेक इन इण्डिया, जनधन और किसान बीमा की सौगात देता है
ट्रिपल तलाक पर क़ानून बना, हटा ३७०/३५A “एक भारत” का सन्देश सुनाता है
सैकड़ो चुनौतियों का कर सामना, मोदी सबसे बड़ा लड़ैया यह विश्वास बढता जाता है  
वह
कोविड में दिया जला, थाली बजा अग्रिम पंक्ति में खड़े सेवाकर्मियो का हौसला बढाता है
करवा कर लॉकडाउन बीमारी को नियंत्रण कर, विश्व को सहायता पहुँचाना धर्म समझता है
है राह कठिन उसकी, क्योंकि हर काम पर उसके विपक्ष व् देश द्रोही बस प्रश्न पूछता जाता है 
है विश्वाश जनता को मोद्दी सबसे बड़े लड़ैया रे, इसलिए ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारा लगता है  
 
-     प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, १२ मई २०२१

गुरुवार, 6 मई 2021

आज के रंगमंच का – एक दृश्य

 

~आज के रंगमंच का – एक दृश्य~


परदा उठता हुआ .....
नैपथ्य में गीत बज रहा है 
“वो जाने वाले हो सकते तो लौट आना”

अदृश्य शक्ति की भांति काली छाया 
मंच की ओर अग्रसर होती हुई 
गंध दुर्गन्ध का आभास कराता
सफ़ेद धुंआ जगह बनाता हुआ 
मंच पर खड़े लोग दूरी बनाते हुए 
मुंह को ढकते हुए भय खा रहे 
अँधेरा घना फैलता हुआ और...
  
अब साफ़ दिखने लगा है .....
बेहताश भागते दौड़ते लोग 
अफरा तफरी का माहौल 
चेहरे उजागर हो रहे   
कुछ साए हाथ थाम रहे 
गिरते पड़ते लोगों के 
पर कुछ तलाश रहे 
हताहत लोगो की जेबो में   
कुछ चेहरे व्यवस्था को कोसते हुए  
कुछ मसीहा बन लूट रहे 
भावनाओं से खड़ी नैतिकता को... 

तभी दिखता है 
एम्बुलेंसों की आवाजाही बढ़ रही है 
जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर 
अकेलापन हावी हो रहा है 
चिताये भीड़ का रूप ले चुकी है 
राख हो रही है अनेको आशाएं
जाने वाले निष्ठुरता से चले जा रहे हैं 
लौट कर कभी न वापिस आने के लिए 
सिलसिला तीव्र अति - तीव्र हो चला है
लग रहा हर कोई जाने को विवश है
पैसा, साधन–संसाधन सब पीछे छूट रहे है   
बैखौफ आगे बढ़ रही है नियति  
उसका क्रूर और भयावह चेहरा
रौशनी की आड़ में दिखने लगा है 

और ....
दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने 
डर से अपनी आँखे बंद कर दी है
होंठों सिल लिए है और हाथ 
प्रार्थना की मुद्रा में खुद के लिए 
याचना माँगते हुए बुदबुदा रहे है 
“इतनी शक्ति हमें देना दाता 
मन का विश्वास कमजोर हो न” 
परदा गिरता है...... 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ६/५/२१

सोमवार, 3 मई 2021

खुश हो प्रभु ?




खुश हो प्रभु ?

अपनों की जान की खातिर 
तुझ पर आस लगाये लोग 
सुनकर लोगो की 
हृदय विदारक चीख 
पल-पल तुम्हारे चरणों में 
शवों के आने का सिलसिला देख
अपनों की विवशता देख 
खुश हो प्रभु ?

आक्सीजन, बिस्तर, दवाई और
इंजेक्शन के लिए दौड़ते लोगो को देख 
अपनों के लिए जिंदगी माँगते लोग 
आंसुओं का बहता सैलाब 
टूटते -बिखरते परिवारों को देख
कहीं मौन रुदन देखकर 
खुश हो प्रभु ?

अंतिम संस्कार का
हक़ छीनता देख और 
शमशान में 
बोलियाँ को लगते देख 
कालाबाजारियों की हैवानियत पर
संस्कार पर भारी पड़ती 
मानवता को कोसती जिंदगी  से
खुश हो  प्रभु ?

मन्दिर में भी बैठा है 
तू अकेले प्रभु 
लोग भयभीत हो कर 
तेरे अस्तित्व पर 
तुझ पर प्रश्नचिंह लगा रहे 
नियति के इस खेल में 
तुम बाजी जीत कर 
खुश हो  प्रभु ?
 
अब ख़ुशी से 
दिल भर गया होगा प्रभु  
मान लिया पापी है 
तेरी नज़र में सब 
पर जिनको तूने 
अपने पास बुलाया है 
उनके अपनों का भी सोच 
कितनो को 
जीते जी मार गया तू 

सुन प्रभु!
अब बस कर न 
बहुत खा लिए तूने भाव
गलतियों की सजा मान ली
मृत्यु का ये तांडव 
नही देखा जाता अब
बहुतो को खो दिया
अब लौट जाने दे सबको 
खुशियों के संग 
जीने दे जिंदगी
 जीने दे जिंदगी   

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल / ३ मई २०२१
 



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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

श्री गदाधर बड़थ्वाल जी - एक परिचय

 

(३१ दिसम्बर १९१५ - २८ अगस्त २००८ )



उत्तराखंड के पौड़ी जिले  में कंडोलिया के निकट 'बुडोली' गाँव में ३१ दिसम्बर १९१५ को जन्मे श्री गदाधर बड़थ्वाल जी साधु, सात्त्विक, पूर्णतः आध्यात्मिक वृत्ति के मित्भुक्, सहज और नेक व्यक्ति थे.

श्री गदाधर जी के माता-पिता अल्पायु में चल बसे. उनकी फूफू ने उनका लालन-पालन किया. समय उनके साथ न था और जल्द ही फूफू भी उन्हें छोड़कर चल बसीं. गरीबी इतनी थी कि संस्कार के लिए साधन न होने पर श्रीनगर के निकट गंगा में ही उन्हें विसर्जित करना पड़ा.

वे बाल्यकाल से कर्मठ, जुझारू व खुद्दार थे। इसका अंदाजा इस एक घटना से लगाया जा सकता है. जब गांव में पेयजल टैंक की मरम्मत के लिए सीमेंट आदि मंगवाने के लिए दुगड्डा जाने को कोई तैयार नहीं था तो वे अकेले ही (करीब 25 मील एक ओर) पैदल चल पड़े. उन दिनों यही चलन था, और रात तक लौट भी आए. इस साहसिक कार्य के लिए प्रशासन ने उन्हें टैंक चालू होने के समारोह में शील्ड से सम्मानित किया था.

आरंभिक शिक्षा से वंचित श्री गदाधर ने अपने जुझारू व्यक्तित्व व् कुछ करने के हौसले से ज्योतिष का अनौपचारिक किंतु प्रकांड ज्ञान अर्जित कर ख्याति पाई. जन्मपत्री की सटीक विवेचना तथा भविष्यवाणियां सही उतरने पर उनके अनेक शिष्य और भक्त हो गए थे.

करीब ३५ वर्ष की आयु में, उच्च चरित्र के प0 गदाधर ने अन्न को तिलांजलि दे दी. उसके पश्चात् उनका अतिसीमित दैनिक आहार सिर्फ दो-ढ़ाई सौ ग्राम उबली पालक या अन्य पत्तेदार सब्जी, थोड़ा दूध या कोई एक फल ही रहा. अपने जीवन काल मे कभी भी औषधि का प्रयोग नहीं किया था, यहाँ तक कि सर्प दंश के बावजूद भी वह स्वस्थ रहे. इसका एक मात्र कारण उनका ४२ साल तक नमक़ का सेवन न करना था.

अंतकाल तक स्वस्थ रहना पोषण विज्ञानियों के लिए अवश्य ही कौतूहल का विषय होगा. उनकी आवश्यकताएं अंत तक नाम मात्र ही थीं. धोती, दो जूट के लंगोट, साफा, कंबल, एक जोड़ी खड़ाऊं और चश्मा उनके व्यक्तित्व की गवाही देने लगा. लंबी दूरियां पैदल तय करना उन्हें सुहाता था. उन्होंने जीवन के अधिकांश वर्ष हिमाचल के धर्मशाला और पठानकोट के आश्रमों में साधना व् अपने भक्तो के साथ बिताए।

पंडित गदाधर अंतकाल के परिवार में उनके तीन पुत्र हैं: सर्वश्री गिरिश, श्री रमेश, और श्री सुरेश। पहले पठानकोट में, शेष दो दिल्ली एनसीआर में। अंतिम दौर ( २८ अगस्त २००८ तक ) में उनका अधिकांश समय कनिष्ठ पुत्र श्री सुरेश के साथ बीता। उनके अनेक शिष्य व परिजन उनके निर्भीक, संयत आचरण और ज्ञान का गुणगान आज भी करते हैं।

हम सभी पं गदाधर जी की स्मृति में उन्हें प्रणाम व् पुष्पांजलि अर्पित करते है.

...........................................

( यह संक्षिप्त विवरण *श्री हरीश बड़थ्वाल* भाई साहब जी व् बाद में उनके पुत्र श्री सुरेश जी द्वारा जानकारी पर आधारित है. - अन्य जानकारी मिलने पर ब्लॉग में जोड़ दूंगा )

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

२९ अप्रैल २०२१


मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

याद रहे !

 


 



 

जीवन रंगमंच, रहे स्मरण
कटु सत्य, जीवन-मरण
 
अंत किसने, अपना देखा
रहेगा केवल, लेखा-जोखा
 
विचलित नहीं, सजग रह
अफवाह नहीं, सत्य कह
 
मन नियंत्रण, प्रथम रख
कठिन दौर, संयम रख   
 
यह विपदा, प्रार्थना कर
रहकर दूर, उपकार कर
 
नहीं जाता, कोई साथ
अपनी सुरक्षा, अपने हाथ
 
प्रतिबिम्ब की, यह बात
याद रख, कर आत्मसात
 
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, २७ अप्रैल २०२१

 


शनिवार, 24 अप्रैल 2021

रोमिल बड़थ्वाल - एक परिचय

 

लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त)

हिंदी, साहित्य, संस्कृति और धर्मनिष्ठा से जुड़े कुछ बड़थ्वालो से आपका परिचय करवाया. आज मुझे एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानने का अवसर मिला जो देश की रक्षा से जुड़ते हुए पर्वतारोहण ब एथलीट की दुनियां में आज एक मिसाल है. उत्तराखंड के ग्राम ‘खोला’ पट्टी कंडवालस्यूं के श्री बुद्धि बल्लभ के सुपुत्र लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बड़थ्वाल (सेवानिवृत्त) अपने फौजी पृष्ठभूमि, पारंगत क्षेत्र और व्यवसाय में किसी परिचय के मोहताज नहीं. लेकिन हम सबके लिए इस साहसी व्यक्तित्व को जानना और भी जरुरी हो जाता है कि वे बड़थ्वाल है.

13 पर्वतारोहण अभियान को नेतृत्व प्रदान करने वाले रोमिल बड़थ्वाल ने २२ वर्षो तक सेना में अपना योगदान दिया. अपने पर्वतारोहण अभियान का अंत उन्होंने मई २०१९ में माउन्ट एवरेस्ट पर फतह के साथ पूरा किया.

रोमिल बड़थ्वाल एक ट्रेकर, एक एंड्योरेंस-रनर और सुपररेंडोन्यूर  ब्रेवेट्स (साइकिलिंग) है. वे व्हाईट वाटर राफ्टिंग कोर्स के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ है. विज्ञापन खेलो में भी रोमिल ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. बजी जम्पिंग, कयाकिंग, पैरामोटरिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग सहित साहसिक खेलों में सक्रिय रूप से प्रतिभागिता की है.

२ अक्टूबर १९७६ में जन्मे रोमिल 18 साल की उम्र में भारतीय सेना में भरती हुए. वे आज की अपनी सारी सफलताओं और माउन्ट एवरेस्ट के पर्वतारोहण अभियान नेतृत्व के पीछे भी सेना को श्रेय देते है. वे आज भारत के शीर्ष पर्वतारोहण कम्पनी “बूट्स & क्रेम्पोन्स” (B&C), के संस्थापक है

रोमिल राष्ट्र रक्षा अकादमी पुणे से स्नातक है. शैक्षणिक प्रदर्शन के दौरान वे कई पर्वतारोहण अभियान में असफल रहे, पेराट्रूपर बनना चाहते थे पर असफल रहे. लेकिन उन्होंने हिम्मत व् हौसला बनाये रखा. एम् टेक ( आई आई टी खडगपुर ) के दौरान उन्होंने खुद को पहचाना, कड़ी मेहनत से स्वयं को तैयार किया. अपने आत्मविश्वास को बनाये रखा. उनके पत्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों व् मेग्जींस में प्रकाशित भी हुए. इसी दौरान  रोमिल ने लंबी दूरी की दौड़, 10 किमी, हाफ मैराथन, मैराथन, साइकिलिंग सुपररेंडोन्यूर , हाफ आयरनमैन, राफ्टिंग इत्यादि में महारत हासिल की.

उपलब्धियां:

·         रोमिल बड़थ्वाल ने 2017 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित बोस्टन मैराथन में भागीदारी की.

·         ला अल्ट्रा, सुमुर से लेह तक वाया खारदुंगला पास (3500 मीटर की ऊँचाई पर) से सबसे कठिन उच्च ऊंचाई वाला अल्ट्रामैराथन है। रोमिल ने इसमें 111 किमी दौड़ के लिए गैर-लद्दाखी श्रेणी में टीम कप्तान और रिकॉर्ड धारक हैं।

·        नई दिल्ली स्टेडियम रन में 185 किमी की दूरी तय की

रोमिल पर्वतारोहण अभियानों में एक टीम लीडर के रूप में,  टीम के सदस्यों की सुरक्षा के नाते, पर्यावरण सरंक्षण, राष्ट्र के सम्मान को स्वयं के हितों से पहले रखते है। रोमिल कहते है कि माउंट एवरेस्ट के लिए, अपने मिशन के लिए मैं इस हद तक तैयार था कि अगर मैं उंगलियां या पैर की उंगलियों को खो देता तो भी परवाह न करता. रोमिल आज अपनी कम्पनी के द्वारा अनेको पर्वतारोहण के इच्छुको को ट्रेनिंग देते व् अभियान चलाते हैं. वे अफ्रीका, अर्जेंटीना, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और भारत में कई अभियान चलाते हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल, मैरून बेरेट वाला पैराट्रूपर, ओपी विजय और कारगिल का हिस्सा थे और कई वर्षों बाद  उन्हें 2019 में साहसिक खेलों में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'द ईएमई ब्लू अवार्ड' से अलंकृत किया गया।

दो पुत्रियों ( १० वीं व् ५ वीं की छात्रा) के पिता रोमिल आई आई एम्, लखनऊ से मेनेजमेंट स्नातक है. एक महान प्रेरक वक्ता ( लगभग 100+ सभाए) और कई फिटनेस के लिए एक रोल मॉडल भी है. वे अपने माता पिता के साथ द्वारिका दिल्ली में रहते है. आजकल वे  नेपाल में पर्वतारोहण अभियान के साथ हैं.

हमारी ओर से रोमिल बड़थ्वाल व् परिवार को ढेर सारी शुभकामनायें. 


******

रविवार, 18 अप्रैल 2021

तनहा अजमेरी – गुमनाम शायर ( एक परिचय)

बड़थ्वाल – एक शब्द जो मुझे सदा उत्साहित करता है. यही कारण है कि मुझे हर उस व्यक्तित्व से जुड़ना अच्छा लगता है जिसके साथ बड़थ्वाल जुड़ा है क्योंकि वह मेरी जड़ो को मजबूती प्रदान करता है. जब मैं २००७ में बड़थ्वाल बंधुओं की तलाश में था उस वक्त लिखने का शौक भी था और कई लेखको, शायरों व् कवियों को पढता भी था. तभी एक नाम जो मेरी नजरो से गुजरा - तनहा अजमेरी. एक बेहतरीन शायर और शब्दों के जादूगर तनहा अजमेरी को पढ़ा तो जानने का प्रयास किया. मेरी ख़ुशी की सीमा नहीं रही जब मैंने पाया कि उस शख्स का नाम संजय बड़थ्वाल है. आप भी चौंक गए होंगे न ? खैर फिर उनसे परिचय बढाया बड़थ्वाल (Barthwal’s Around the World) समूह में जोड़ा. मेरा तो परिचय है ही उनसे, क्या आप जानते हैं? आइये मिलिए संजय बड़थ्वाल जी उर्फ़ तनहा अजमेरी जी से - कुछ मेरी कलम से कुछ उनकी जुबानी .. 


ज़िन्दगी सिर्फ वो ही नहीं जिसकी हर वक़्त चर्चा होती रहे
 “तनहा” किसी गोशे में सुकून से खुश रहना भी है ज़िन्दगी 
(गोशे=कोने) 

वैसे तो संजय जी कहते है कि मेरे बारे में जानने लायक, सचमुच, कुछ भी नहीं है। जो थोडा बहुत लिख लेता हूँ, वही मेरा परिचय बनकर रह गया है। लेकिन मैंने जाना है जो जाना है उसकी शुरुआत करता हूँ सन १९३९ की बात है जब पाली तल्ली से संजय जी के दादा जी स्व. मेजर मनीराम बड़थ्वाल जी कोटद्वार आ गए परिवार के साथ. मेजर मनीराम जी ब्रिटिश आर्मी में गढ़वाल के पहले चुने हुए आफिसर में से एक थे. नजीबाबाद रोड पर बडथ्वाल कोलोनी उनके नाम पर ही है. परिवार के लालन पालन हेतु संजय जी के ताउजी, चाचा जी व् पिताजी देश के विभिन स्थान पर रहने लगे. यह उत्तराखंड में पलायन के शुरआती दौर की बात होगी. संजय जी का मानना भी है कि यही वक्त था की हम अपनी जड़ो और पहाड़ से दूर हो गए या कहे - कट गए. 

संजय जी के एक ताऊ जी स्व मेजर सत्य प्रसाद बड़थ्वाल (शहीद १९६२ भारत चाइना वार) और दूसरे ताऊ जी श्री जगदम्बा प्रसाद बड़थ्वाल (एक्स जनरल मेनेजर, केनेडियन इंस्टीटयूट आफ बिजिनेस, ओंटारियो) संजय जी के पिताजी श्री शांति प्रसाद बड़थ्वाल जी अजमेर (राजस्थान) आ गए. वे कहते है कि पहाड़ से रिश्ता क्या टूटा की मरुस्थल से जा मिले. 

संजय जी के पिताजी स्व श्री नरेश ( शांति प्रसाद) सीआर पी ऍफ़ में कमान्डेंट की पोस्ट से रिटायर्ड हुए. संजय जी की दो छोटी बहिने है संगीता बड़थ्वाल खंडूड़ी ( स्कूल प्रिंसिपल, शिलोंग) और दीपाली बड़थ्वाल काला ( डायरेक्टर आफ एडुकेशन, स्ट्रेयर्ष यूनिवर्सिटी यूएसए). 

संजय बड़थ्वाल उर्फ़ तनहा अजमेरी का जन्म ३१ अक्टूबर १९६७ अजमेर में हुआ. प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने यहीं से प्राप्त की. वहीं पर शायरी के बीज चुन अल्फ़ाज़ के तमाम शजर (पेड़) लगाने का सिलसिला शुरु हुआ। अजमेर में पैदा होने कारण ही अपने उपनाम में उन्होंने ‘अजमेरी’ शब्द को जोड़ा. संजय जी की उच्च शिक्षा दिल्ली दिल्ली में सेंट स्टीफन कॉलेज में हुई. तनहा अजमेरी मानते है कि उन्हें नुकसान यह हुआ कि इन ५ वर्षों के दौरान वे धरातल से और दूर हो गए और आलम यह हुआ की न तो वे अंग्रेज बन पाए, न हिन्दुस्तानी रह गए. देश के रहे न परदेश के तो जीवन के भटकाव को ही जीवन बना लिया. कभी इधर कभी उधर, एक बहके हुए परिंदे कि मानिंद शजर से शजर। वे लिखते हैं 

अपनी धुन में जाने किधर से किधर निकल गए 
हम ऐसे मुसाफिर है जो मंजिलों को भी छल गए 

उन्हें नौकरियां मिलती रही और वे उन्हें छोड़ते रहे. कह सकते हैं कि किसी तरह उनका काम चलता रहा और ज़िन्दगी तमाम होती रही। तनहा अजमेरी जी कहना है कि एक चीज़ जो हमेशा साथ रही वो थी उनकी शायरी। इस पर वो कहते हैं कि ‘तनहा’ घूमते - घूमते हुजूम से अब ताल मेल बिठाना भूल गया हूं और वास्तविक व्यावहारिक गुफ्तगू से बिल्कुल परे हो गया हूं। 

संजय जी बताते है कि जहां तक कार्य का ताल्लुक है बहुत कोशिश की। सरकारी अफसर भी रहा, उकता गया। रोटी जब समस्या बनी तो कई प्राइवेट जॉब्स किए। TIMES OF INDIA, फिर इस्तीफा। अपने खुद के अखबार चलाए - "उत्तराखंड सवेरा" और "VOICE FROM HILLS". उच्च कोटि का काम करने की कोशिश की पर चाटुकारिता न जानने के अभाव के चलते विज्ञापन न मिले और निम्न कोटि के अखबार रसूखदार लोगों के सियासती CONNCETION के आगे अपने अखबार तो पटखनी खा गए। 

 संजय जी का स्वतंत्र रूप से लिखना जारी रहा - स्क्रिप्ट, बोल, कहानियाँ इत्यादि. मगर अंजाम वही- ढाक के तीन पात। मुंबई फिल्म उद्दयोग में जीरो कनेक्शन होने के कारण बात उनकी बात वहां भी नहीं बनी. वे कहते है कि ईर्ष्यालु लोगों ने आगे न बढ़ने दिया और मैं TALENT WITHOUT OPPORTUNITY की मिसाल बनकर रह गया। सो अब घर बैठे - बैठे ही अल्फ़ाज़ की माला पिरों रहा हूं। कहते हैं जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा। परवाह नहीं। मोर का मज़ा तो नृत्य में है। मेरे तो यही हाल है... 

ना जाने किसी ओर निगाहें किये बैठा रहा है ज़माना
मेरी तो महज कुदरत के नज़रों में ही ज़िन्दगी रही 
होती होंगी औरों की इबादत देरों - हरम में तनहा 
मेरी तो फकत आशिक़ी ही ताउम्र मेरी बंदगी रही 

संजय बड़थ्वाल जी ने इस दौरान कुछ किताबें लिखी हैं – 
 - दायरों से बाहर(Poems), 
 - अफसाना बयानी(Short Stories), 
 - समंदर (Ghazals), 
-  गीत (Music and lyrics), 
 - अक्कड़ - बक्कड (बच्चों की कविताएं), 
 - हॉलीडे रीडिंग (अंग्रेज़ी में बच्चों के लिए कहानियां), 
 - द लास्ट मैन स्टैंडिंग (पर्सनैलिटी डेवलपमेंट बुक)। 

आप सभी लोग उनके ब्लॉग में उनकी शायरियो का लुत्फ़ ले सकते हैं.
http://tanhaai-pursukun.blogspot.com/?m=1 

संजय जी अपनी जड़ो के साथ जुडा रहना चाहते हैं वे कहते है कि बडथ्वाल नाम से तो प्रेम है पर असमंजस में हूं कि क्या वाकई में इस समूह से जुडा हर शखस संजीदा है भी या नहीं या फिर लोग सिर्फ तफरीह के लिए जुड़ रहे है सिर्फ "GOOD MORNING और GOOD NIGHT" बोलने के लिए... वे एक प्रश्न बड़ी संजीदगी से पूछते है की “क्या इनके जिस्म में शिद्दत से वो लहू बह रहा है जो वाकई में उन्हें बड़थ्वाल होने पर एक नई ऊर्जा से भरता हो ? यह प्रश्न हम सबके लिए भी है और हम ही उत्तर भी है उनके प्रश्नों का. 

वर्तमान में संजय जी अपनी माताजी के साथ देहरादून में रहते है. 

आप सभी के साथ मैं उन्हें उनके उज्जवल भविष्य की कामना सहित शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
 भारत १८/४/२१

रविवार, 7 मार्च 2021

प्रेम उत्सव

 




प्रेम उत्सव

व्योम मंडल हर्षित, मधुर आलिंगन अपेक्षित
अव्यक्त गूँज उठता, स्पर्श होता अभिव्यक्त
तत्क्षण स्वीकार जिसे, उत्कृष्ट होता अनुराग
प्रेम साधना पुरुस्कृत, पुलकित बसंत राग
 
शब्द - शब्द मौन, अंग - अंग सम्मोहित
कामना से अलग, उत्सर्ग जोत प्रज्वलित
प्रेम प्रांगण सुशोभित, गीत संगीत अनुमोदित
अधरो की मनमानी, छंद नव परिभाषित
 
पल - पल उमंग, हृदय आनन्द स्फुटित
हर पल उत्सव, नवोदित यौवन अनुभूति
रोम - रोम परितृप्त, तीव्र सुंगधित श्वास
आंचल में शरणागत, हर पल मधुरमास
 
प्रार्थना सी प्रीत, समर्पण भाव उत्साहित
स्वीकृत प्रेम पीयूष, मदहोश नयन प्रमुदित
स्नेह उपहार मनोहर, चेतना सज्जित तरंगित
स्पन्दन राग कौतुक, प्रेम प्रशस्ति अलंकृत
 
 
-        प्रतिबिम्ब बडथ्वाल, ६ फरवरी २०२१

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

मुझमें एक जोत जला दे माँ

अक्षरावाणी साप्ताहिक पत्रिका के काव्य मंजरी पृष्ठ में प्रषित




मुझमें एक जोत जला दे माँ
 
हे वीणा धारिणी, करता तुझको प्रणाम
हे हंसवाहिनी, करता मैं तेरा ही स्मरण
हे माँ शारदे, ज्ञान का तू कर बीजारोपण
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
मेरे ज्ञान का, तू अब भंडार भर माँ
हो मुझमें संचार, तेरे प्रकाश का माँ
है अर्चना तुझसे, मुझे आशीष दो माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
शरणागत हूँ, तेरा प्रेम वर्षण चाहता हूँ
हूँ अज्ञानी मैं, विद्या वरदान चाहता हूँ
वीणा के तारो से, सुरों का ज्ञान चाहता हूँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
इर्ष्या और नफरत को, मुझसे दूर कर माँ
प्रेम और क्षमा बन, मुझमें  वास कर माँ
सत्य और मीठा बोलूँ, ऐसा वरदान दे माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
 
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १६/५/२०२१

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

सन्देश

 




~ सन्देश ~


कोई नहीं धरती पर जो ईश्वर से बड़ा है
मानव घमंड हर बार इसे ले कर उड़ा है
बार - बार यहाँ इंसान प्रकृति से लड़ा है
फिर भी अपनी करतूतों पर वह अड़ा है
प्रकृति ने आज हमें थप्पड़ फिर जड़ा है
तबाही का मंजर फिर दिखाई पड़ा है
रिस रहा जो वो भरा प्रदूषण का घड़ा है
धर्म आस्था सहित "प्रतिबिम्ब" कर्म बड़ा है
पर्यावरण सुरक्षा पर प्रश्न आज भी खड़ा है
सुन लो अभी भी प्रकृति का सन्देश कड़ा है

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