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शनिवार, 6 अगस्त 2022

6 अगस्त - बड़थ्वाल कुटुंब स्थापना दिवस

 

६अगस्त का दिन मेरे लिए ही नहीं बल्कि पूरे बड़थ्वाल परिवार के लिए अविस्मरणीय रहेगा. एक परिवार सा दृश्य, अपनत्व का भाव लिए लगभग ४०- ४५ गाँवों के बड़थ्वाल कई स्थानों पर इस आयोजन में शामिल हुए.
मुख्यत: यह आयोजन दिल्ली, देहरादून, कोटद्वार, पौड़ी व् मुंबई में रहा. कई स्थानों पर एक दो परिवार ने मिलकर भी इस अवसर को मनाया.

जो सपना लिए ६ अगस्त २००७ को लेकर चला था वो आज साक्षात् देख कर आप मेरी ख़ुशी का अन्दाज लगा सकते हैं. Barthwals Around the World से हुई शुरुआत आज बड़थ्वाल कुटुंब का रूप ले चुकी है.

कार्यक्रम इस प्रकार रहे - एक झलक
दिल्ली:
कार्यक्रम गढ़वाल भवन, दिल्ली के अलकनंदा हाल में हुआ


पंजीकरण प्रक्रिया, तिलक से अतिथियों का स्वागत व चाय नाश्ते के पश्चात् ११.१५ पर संचालक पंकज बड़थ्वाल ने भूतपूर्व सचिव वित् मंत्रालय भारत सरकार व् कुटुंब के अध्यक्ष श्री राजकुमार बड़थ्वाल ( डांग ), महा सचिव प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ( सिराई ), वरिष्ठ पत्रकार श्री हरीश बड़थ्वाल ( खण्ड ), श्रो मदन मोहन बड़थ्वाल ( सिराई )भूतपूर्व प्रबन्धक भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड BEL, भारत सरकार का परिचय देकर अतिथियों का स्वागत किया. स्वागत स्वरूप माला और टोपी पहनाई गई.

उपस्थित वरिष्ठ बड़थ्वाल बंधुओं ने दीप प्रजल्वित किया और महिलाओं के द्वारा मांगल गीत के पश्चात् औपचारिक शुरुआत हुई.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ने कुटुंब सोच उद्देश्य व् किये जाने वाले कार्यों से सभी को अवगत कराया. तत्पश्चात मुख्य अतिथि हरीश बड़थ्वाल व् मदन मोहन बड़थ्वाल ने कार्यक्रम कि बधाई के साथ ही इसे महान कार्य बताया और सबसे साथ आकर जुड़ने और इसे आगे बढ़ने के लिए आवाहन भी किया और सहयोग के लिए भरोसा भी.



इसके तत्पश्चात उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं ने कुटुंब को लेकर ख़ुशी जाहिर की व् अपनी व् सुझावों को सबके मध्य नज़र रखा.

अंत में अध्यक्ष राजकुमार जी ने सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का धन्यवाद किया. कुटुंब को लेकर उदेश्यों को लेकर अपने विचार रखे और भविष्य में कुटुंब कि ओर से किये जाने वाले आयोजनो को और अच्छे सुन्दरता से हर रूप से करने का भरोसा भी दिया.
दिल्ली के आयोजन को सफल बनाने में जिन व्यक्तित्वों का सहयोग रहा और काबिले तारीफ रहा उनमें मुख्यत: कार्यकारिणी के सह- कोषाध्यक्ष श्री कमलेश बडथ्वाल(बड़ेथ), श्री देवेन्द्र बड़थ्वाल ( खण्ड ), श्री नरेंद्र बड़थ्वाल ( गैर ), श्री पंकज बड़थ्वाल( बड़ेथ), श्री पंकज बडथ्वाल (क्वली), श्री राजेन्द्र बड़थ्वाल ( फर्सेगाल ) - आप सभी का हार्दिक आभार.

दिल्ली में सिराई, बड़ेथ ( सबसे अधिक ), क्वली, बुलोड़ी, बुडोली फर्सेगाल, पाली, डांग, तल्ला बसबा, रोहिणी तल्ली, गैर गाँव से उपस्थिति रही. प्रसन्नता हुई कि परिवार के कई बड़ो का आशीर्वाद कल हमें मिला.
कार्यक्रम का संचालन पंकज बड़थ्वाल ने बहुत सुन्दरता से किया.


सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओ ने संस्था के लिए समय व् सामर्थ्य के अनुसार तन - मन - धन से सहयोग का अपना आश्वाशन दिया और अपने गाँव के अधिक से अधिक लोगो को जोड़ने की प्रतिबद्धता भी दोहराई. यह हमारी सभी बड़ी सफलता है.

कार्यक्रम को यादगार बनाने हेतु सभी अतिथियों को एक की चैन व् पेन भेंट किया गया फोटोग्राफ हेतु श्री अनिल बड़थ्वाल जी का हार्दिक आभार.




हर घर झंडा, हर घर तिरंगा को लेकर भी कुटुंब के सदस्य राजेन्द्र भाई ने पहल की और कई सदस्यों ने तिरंगे और अन्य सामान ख़रीदे.

इसके बाद कुटुंब के सभी सदस्यों ने उत्तराखंडी खाने - भात, मिक्स दाल, मिक्स बुझी, रोटी सलाद व् झुंगर की खीर खा कर पुन अधिक संख्या में मिलने का वायदा देकर विदा ली.

बड़थ्वाल कुटुंब यूट्यूब चैनल पर यह कार्यक्रम लाइव रहा https://youtu.be/sFdgBLx7SR4

देहरादून:
हिम पेलेस होटल, नेहरु कोलोनी, देहरादून में आयोजित यह कार्यक्रम पद्मश्री से सम्मानित, बडथ्वाल कुटुंब कि उपाध्यक्ष माधुरी बड़थ्वाल जी की अध्यक्षता में मनाया गया. भूतपूर्व राज्य महिला आयोग अध्यक्ष सुश्री विजया बड़थ्वाल जी कि उपस्थिति ने भी इस कार्यक्रम को चार चाँद लगा दिए. दोनों ने ही दीप प्र्जल्वित क्र कार्यक्रम कि शुरुआत की.

दून में रिटायर्ड तहसीलदार सतीश बड़थ्वाल जी, शांति प्रसाद बडथ्वाल जी, हर्षवर्धन बडथ्वाल जी, राकेश बड़थ्वाल जी, वेदप्रकाश बड़थ्वाल जी अनीता बड़थ्वाल व् कविता बड़थ्वाल जी के प्रयासों व् अगुवाई में यह कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ. मंच का संचालन शांति प्रसाद बड़थ्वाल जी ने किया. डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जी सहित सभी पूर्वजो को याद भी किया और दो मिनट का मौन भी रखा. श्री जगदीप बड़थ्वाल ने अपने पिताजी, पूर्व बीएसफ इन्स्पेक्टर श्री ओम प्रकाश बड़थ्वाल की पुस्तक "कश्मीर में पाक प्रायोजित छ्द्मयुध' अतिथियों को भेज्न्त दी. मुख्य अतिथि ने हर घर झंडा हर घर तिरंगा के लिए भी ध्यान आकर्षित किया. मुझे वीडियो काल के द्वारा उपस्थित लोगो को देखने, अभिवादन करने मौका मिला.
सबका हार्दिक आभार बड़थ्वाल कुटुंब की ओर से. आप के दो दिन के प्रयास से कार्यक्रम में लगभग ४०+ लोग उपस्थित रहे. जो सराहनीय है.




कोटद्वार:


लक्ष्मी वेडिंग प्वाइंट बलासोड़, कोटद्वार में यह कार्यक्रम ले.कर्नल राजेन्द्र प्रसाद बड़थ्वाल जी के नेतृत्व में बड़थ्वाल परिचय समारोह के रूप में मनाया गया. इस कार्यक्रम में विधान सभा अध्यक्ष सुश्री रितू खंडूड़ी जी मुख्य अतिथि रही व् उन्होंने ही दीप प्रजल्वित कर कार्यक्रम का शुभ आरम्भ भी किया गया.




इसमें सहयोग कि भूमिका निभाई पंडित विमल प्रसाद बड़थ्वाल जी व् शोभा बड़थ्वाल ने. सभा की अध्यक्षता शंभू प्रसाद बड़थ्वाल जी ने की. इस कार्य कर्म के मंच संचालन का काम डॉ सी एम् बड़थ्वाल जी ने किया. मुख्य प्रवक्ता गोपाल कृष्ण बड़थ्वाल, कैप्टेन सी पी डोबरियाल,डॉ सी एम् बड़थ्वाल,ले. कर्नल आर पी बड़थ्वाल, शंभू प्रसाद बड़थ्वाल आदि ने बड़थ्वाल कुटुंब के उत्थान पर प्रकाश डाला. मुख्य अतिथि रितु खण्डूरी जी ने समाज को जोड़ने की लिए बड़थ्वाल कुटुंब के प्रयास के लिए सभी बड़थ्वाल जनों की प्रशंसा की. साथ ही कर्नल बड़थ्वाल जी के द्वारा डिफेन्स कैरियर अकैडमी कोटद्वार स्टूडेंट्स को आर्मी में भर्ती करने की मुफ्त सेवा की प्रशंसा कीं. इस समारोह मे कुल 70 से ऊपर बड़थ्वाल परिवार के सदस्य ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई.
कार्यक्रम में कोटद्वार से ही नहीं बल्कि आस पास के गाँवों से व् दूर के गाँवों से भी बड़थ्वाल सम्मलित हुए. यह बड़थ्वाल कुटुंब के लिए गौरव का पल रहा. राजेन्द्र भाई साहब सहित सभी उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का हार्दिक आभार शुभकामनायें.


मुंबई:


मुंबई में संख्या कि दृष्टि से नहीं बल्कि भाव की दृष्टि से दो स्थानों पर उपस्थिति देते हुए मैं राजेन्द्र भाई साहब व् आनंदी दी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.


पौड़ी :



गढ़वाल स्वीट भंडार, पौड़ी में यह आयोजन अनूप बड़थ्वाल व् निर्मला बड़थ्वाल के देखरेख में यह कार्यक्रम सुंदर रहा. यहाँ भी संख्या नहीं भाव के मध्य नज़र कार्यक्रम सफल रहा. कुटुंब के कोषाध्यक्ष राजीव बड़थ्वाल भी अन्य गणमान्य व्यक्तियों में शामिल रहे. वह उपस्थित लोगों के साथ वीडियो काल पर परिचय व् अभिवादन करना का मौका मिला.
हरिद्वार:
आशु बड़थ्वाल ने अपने परिवार के साथ इसे मनाकर अपने प्रेम व् सहयोग को दर्शाया.
आनलाइन:
यह पहला व्यक्तिगत मिलन था कुछ लोग समय निकाल पाए क्योंकि समय व् परिस्थिति शायद उन्हें अनुमति नहीं दे पाई. कुछ लोग रात को हुई एक आनलाइन बैठक में उपस्थिति रहने में सफल रहे. जिसकी अध्यक्षता सचिव श्री नवीन बड़थ्वाल जी ने की. सभी का आभार.
दिल्ली की बैठक का प्रसारण बडथ्वाल कुटुंब यूट्यूब चैनल पर लाइव किया गया था.
सभी स्थान के आयोजको प्रयोजको व् उपस्थित बड़थ्वाल बंधुओं का इस अवसर को यह रूप देना मुझे रोमांचित कर रहा है और अब मेरा विश्वास दृढ हो चला है कि बड़थ्वाल कुटुंब कि सोच के साथ जो उद्देश्य हमने तय किये हैं उन्हें आप सबके सहयोग से हम प्राप्त करने में सफल होंगे.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
महा सचिव, बड़थ्वाल कुटुंब

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

गढ़वाली कुमाऊँनी भाषाओं की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की मांग तेज

त्तराखण्ड राज्य में हिन्दी प्रथम व् संस्कृत द्वितीय भाषा का स्थान रखती है.  लेकिन भारत के अन्य राज्यों की तरह देव भूमि उत्तराखण्ड की अपनी भाषाएँ हैं. जिसमे मुख्यत: गढ़वाली व् कुमाऊँनी भाषा का अस्तित्व सैकड़ो वर्षो से हैं. गढ़वाली आर्य भाषाओं के साथ ही विकसित हुई लेकिन 11—12वीं सदी में इसने अपना अलग स्वरूप धारण कर लिया था.   

डॉ अंकिता आचार्य पाठक ने अपने एक लेख में लिखा है:

“लगभग एक हजार वर्षों से भाषा के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाली गढ़वाली तथा कुमाऊँनी का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. उल्लेखनीय है कि तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी से पहले सहारनपुर से लेकर हिमाचल प्रदेश तक फैले गढ़वाल राज्य में सरकारी कामकाज के लिए गढ़वाली भाषा का ही प्रयोग होता था. देवप्रयाग मंदिर में महाराज जगत पाल का वर्ष 1335 का दानपत्र लेख, देवलगढ़ में अजयपाल का पंद्रहवीं सदी का लेख, बदरीनाथ आदि स्थानों में मिले शिलालेख और ताम्रपत्र गढ़वाली भाषा के समृद्ध और प्राचीनतम होने के प्रमाण हैं. इसी प्रकार यह भी उल्लेख मिलता है कि लगभग आठवीं से सोलहवीं शताब्दी तक चम्पावत कूर्माचल की राजधानी रहा और कूर्माचली यहां के राजकाज की भाषा थी. कुमाऊं में चंद शासन काल के समय भी कुमाऊँनी राजकाज की भाषा थी. राजाज्ञा कुमाऊँनी में ही ताम्रपत्रों पर लिखी जाती थी. गढ़वाली तथा कुमाऊँनी के ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट करने वाले ऐसे कई उदाहरण हैं.”

जौनसारी भाषा सहित कई और भाषाएँ उत्तराखंड की संस्कृति व् सभ्यता का हिस्सा है पर इनमें साहित्य बहुत कम लिखा गया है या कहें न के बराबर लिखा गया है. उत्तरप्रदेश से अलग होने के पश्चात् यह मांग जोड़ पकड़ने लगी कि उत्तराखण्ड की भाषाओ को भी संविधान की 8 वीं अनुसूची में स्थान मिलना चाहिए.  गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा में साहित्य व्याकरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है साथ नए लेखक भी इसमें अब बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. कुछ लोगों को मानना है कि उत्तराखण्ड की अपनी अलग भाषा व उसकी लिपि हो और वे इसके लिए अपनी और से प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अधिकांश साहित्यकार कुमाऊँनी गढ़वाली को उसके मौलिक रूप में उत्तराखण्ड में भाषा के रूप मान्यता देने के पक्षधर है जो कि उचित भी है इतिहास, साहित्य व सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार. जिसमें भाषा सहज रूप से अपने क्षेत्रों में विकास भी करेगी और जन मानस की भाषा है भी और बन भी सकेगी. इसके विपरीत कोई खिचड़ी भाषा यदि थोपने का प्रयास हुआ तो अपनी - अपनी भाषा का शब्दकोष का भंडार तहस नहस भी होगा साथ ही गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के आधार, उसकी मौलिकता और मातृभाषा के साथ खिलवाड़ होगा. 

भाषा का विकास, उसका सृजन व संवर्धन हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए. मेरा मानना है कि केंद्र व राज्य सरकार को शीघ्रातीशीघ्र कुमाऊँनी और गढ़वाली को आधिकारिक दर्जा देना चाहिए और उनके संवर्धन हेतु समुचित प्रबन्ध करने चाहिए.

कई संगठन संविधान की 8वीँ अनुसूची में शामिल करने हेतु कार्य कर रहे हैं. 2012 से दिल्ली में स्थापित संस्था ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’  इसमें सबसे प्रमुखता से अपनी भूमिका निभा रहा है. यह मंच 2016 से गढवाली कुमाऊँनी भाषा का शिक्षण ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का आयोजन कर रहा है. विगत वर्ष 2018 में दिल्ली एनसीआर में लगभग 22 केन्द्रों में गढ़वाली-कुमाउनी कक्षाओं को आयोजन कर चुका है  2013 से महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान गढ़वाली के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकारों को प्रदान करता आया है. मंच हर वर्ष साहित्य एवं समाज सेवा आदि कि लिए प्रत्येक चयनित प्रतिभा को 21 हजार रूपये की राशि भी प्रदान करता है साथ समाज के वर्गों व् व्यक्तित्वों को ही आर्थिक सहायता करता है व् सामाजिक मुद्दों को भी जोर शोर से उठाता है. मंच समय-समय पर कई कवि गोष्ठियों, भाषा सेमिनार एवं अन्य साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन करता आ रहा है और भाषा आन्दोलन को लेकर अपनी अग्रणी भागीदारी निभा रहा है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा मंच भाषा के मानकीकरण को लेकर भी सक्रीय है. भाषा अधिवेशन द्वारा इसकी शुरुआत हो चुकी है. इस वर्ष गढ़वाल भवन दिल्ली, में हुए अधिवेशंन में लगभग उत्तराखण्ड व् दिल्ली एनसीआर के सैकड़ो साहित्यकार सम्मिलित हुए. जहाँ पर शब्दों के मानकीकरण पर चर्चा भी हुई और उन्हें भाषा में अधिकारिक रूप से जोड़ा भी गया. साथ ही 8 वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु भारत सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव भी पास हुआ. गृह मंत्रालय व् पीएम आफिस में इसे दिया भी जा चुका है. 

दिल्ली में उत्तराखण्ड के चुने हुए प्रतिनिधियों को मिलकर, उन्हें संसद में भाषा बनाये जाने हेतु बात रखने एवं प्रयास करने के लिए “उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच का शिष्टमंडल” लगातार उनसे भेंट कर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. मंच गढ़वाली कुमाऊँनी को भाषा का दर्जा दिलाने हेतु दृढ़संकल्प के साथ प्रयत्नशील भी है.


अभी तक शिष्टमंडल उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व् सांसद श्री तीरथ सिंह रावत जी, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री व सांसद श्री अजय भट्ट जी, सांसद श्री अजय टम्टा जी व भाजपा मिडिया प्रभारी व् राज्य सभा सांसद श्री अनिल बलूनी जी से मिलकर ज्ञापन सौंप चुका है. सभी ने भाषा के लिए की जाने वाले इस पहल के लिए बधाई व् शुभकामनायें दी है साथ ही संसद में इसे रखने का भरोसा भी दिया और इस पर हर रूप से मदद का आश्वासन भी दिया है.  



शिष्टमंडल में ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’- दिल्ली के संरक्षक व मयूर विहार जिला भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिनोद बछेती, वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल,  श्री दर्शन सिंह रावत, श्री जयपाल सिंह रावत, श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, श्री रमेश हितैषी, श्री जगमोहन रावत, श्री सुशील बुडाकोटी, श्री अनिल पन्त, श्री भगवती प्रसाद जुयाल, योगाचार्य डॉ. सत्येन्द्र सिंह, व उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी की उपस्थिति रही है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच सभी साहित्यकारों व गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के बोलने वालो को आवाहन देता है कि आइये इस यज्ञ में अपने समय व सहयोग की आहुति अवश्य दें.

जय उत्तराखण्ड ! जय हिन्द !

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

2 अगस्त, 2022

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