मैं इस पटल पर, जो कुछ भी लिखता हूँ
भाव अपने यहाँ, आपसे सांझा करता हूँ
वैसे अब शब्द यहाँ, ठहरते हैं कहाँ
अब दौड़ते हैं वहाँ, मिलती भीड़ जहाँ
ज्ञान बँटता नहीं, अब केवल बिकता है
टूट रही परंपराएं, अब पैसा दिखता है
बदल गई सीमाएं, पुस्तकें अकेली लगती हैं
साहित्य व्यापार हुआ, अब बोलियाँ लगती है
मेरे लिए तो हर पल, यहाँ अमृत वेला है
भाव और शब्दों का, जहाँ लगता मेला है
'प्रतिबिम्ब' आपका, नया अस्तित्व ले खड़ा हो
भाषा के साथ, साहित्य व संस्कृति से जुड़ा हो
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल,12 अक्टूबर 2023