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शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

ये निगाहे

ये निगाहें


तेरी ये निगाहे
जो कहना चाहती है
वो सब कह जाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

प्यार का इज़्हार या इनकार
ये निगाहे बंया करती है
ये निगाहे शरमा जाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

छोटी सी हो या बड़ी बात
तेरी निगाहे कह जाती है
तेरी निगाहे सवाल पूछतीं है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

तेरे दिल का दर्द्
इन निगाहो मे छलक आता है
इन निगाहो मे उतर आता है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

तेरा गुस्सा या प्यार
इन निगाहो मे दिखता है
इन निगाहो मे पढ सकते है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

वो प्यार का अफसाना
तेरी निगाहे बंयान करती है
तेरी निगाहे आगोश मे बुलाती है
तेरी निगाहे बहुत बोलती है

प्यार जब करुँ तुझे
तेरी निगाहे खामोश लगती है
तेरी बंद निगाहे फिर बाते करती  है
तेरी निगाहे तब भी बहुत बोलती है
-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

वो मैं था




हर तरफ शोर था
जिसे ना सुना किसी ने
वो अल्फ़ाज़ मेरे थे
भीड चारो और थी
जिस् चेहरे पर नज़र ना पड़ी
वो चेहरा मेरा था
समुन्द्र में तूफान उठा
जिसको साहिल ना मिला
वो कश्ती मेरी थी
किस्मत ढूढती रही दर
जिसका दर ना मिला
वो घर मेरा था
प्यार फ़िजा में बिखरता रहा
जिसे प्यार मिला
वो दिल मेरा था
ख्वाईश मुंह फैलाती रही
जिसकी इच्छा पूरी हुई
वो तम्न्ना मेरी थी
सबकी बातो को माना उसने
जिसे नही माना
वो बात मेरी थी
हसरत मंजिल बुलंद थी
जिसे मंजिल ना मिली
वो मुकद्दर मेरा था
महफिल सजाई थी उन्होने
जिसे निमत्रण ना था
वो शख्स मै था
सबके लिये इस्तकबाल है
जिसे इज़ाजत ना मिली
वो सलाम मेरा था
कुछ पन्ने किताब बन गये
जिसे कोरा कागज़ ना मिला
वो कलम मेरी थी
        रिश्तो का हुजूम सामने था
जिसे जोडा न गया
वो नाम मेरा था 
 - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, अबु धाबी
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