हाँ तू शामिल है 
मेरी रूह में
भोर से भोर तक 
अनगिनत मुलाकाते  
महकती है सांस
लिए मिलन की आस  
पंखुडियां मोहब्बत की 
खुलती जाती है पल पल
एहसास खुसबू बन 
महका देते है रोम रोम 
छल नही भावो में 
पिघल जाता बस तन मन
आलिंगन करती स्नेह लता 
सिमट जाती सारी कायनात  
कोमलता और समर्पण से
पुरुस्कृत होता कण कण
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

 

