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शनिवार, 28 नवंबर 2020

प्रणय बेला

 

प्रणय बेला

मेरे रग-रग में व्याप्त है,
रंग प्रेम और संस्कार का
अधरों में हो समाहित,
खिल उठता रंग गुलाब सा
विलय हो उठता अधीर,
समर्पण की विरल चाह सा
प्रफुल्लित हृदय में,
रोम-रोम होता झंकृत वीणा सा
 
प्रेमाकांक्षा से होकर द्रवित,
तत्क्षण होता मन संजीवन
अंतस्थ गहनता का प्रतीक बन,
मुक्ताकाश में करता विचरण
अकलुष बहती प्रेम बयार,
निश्छलता में उमड़ जाता मन
अप्रत्याशित था अब तक,
प्रत्याशित हो उठता वो यौवन
 
प्रतिरोध न तरुणाई कर पाती,
हर्षित होती फिर संचेतना
निस्तब्ध रात्रि के आलिंगन सा,
हर पल होता दृश्यमान
अहसासों की तरंगे होकर संलगन,
लिखती फिर नया स्पर्शज्ञान
बाहुपाश में सौंदर्य निखरता,
संगठित होती प्रणय की सौंधाहट
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २८/११/२०२०

रविवार, 22 नवंबर 2020

कर नमन




कर सृष्टि को नमन
कर पृथ्वी को नमन
कर आराध्य को नमन
कर गुरुओं को नमन

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

मूल सृष्टि का बन कर
सुधा वृष्टि को अपना कर
संकल्प दृष्टि का सूत्र बन
सत्य का  तू निर्वहन कर

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

जन-मानस का ले संज्ञान
अटल हो संकलिप्त प्रतिज्ञा तेरी
संस्कृति से जोड़कर जीवन  
हर संस्कार बने पहचान तेरी   

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

कर अपने अंतर्मन में चिंतन
जिसमें प्रतिबिंबित हो निष्ठा तेरी
प्रकृति से हो सहृदय मिलन
निर्मलता प्रतिपल सक्रिय हो तेरी

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २२/११/२०

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