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बुधवार, 30 दिसंबर 2020

जा रे



सन दो हज़ार उन्नीस को 
भरे मन से विदा किया था
होनी अनहोनी के संग 
सुख - दुख के तमाम पलो को 
समेट कर विदाई दी थी 
३१ दिसंबर, १९ की सर्द रात में  
और
बहुत अरमानो से 
स्वागत किया था तेरा
क्या नहीं चाहा था तुझसे 
अपनी ही नहीं देश और 
समाज की खुशहाली चाही थी 
२०२० को अपना बनाने का 
श्रीगणेश कर भी दिया था 
सपनों की उड़ान को
बस पंख लगने ही वाले थे कि
‘कोविड १९’ ने सारे अरमानों पर
बुरी नज़र लगा दी

१०० सालों बाद विश्व में 
महामारी कोई ऐसी फैली 
मिलना जुलना बंद हुआ 
अर्थव्यवस्था रुक गई 
जीना सबका दूभर कर गई 
कितने बेरोजगार हुये 
व्यवसाय कितने तबाह हुये 
कितनी जानों को छीन गया 
लावारिस मौत अपनों की 
देख कितना दिल रोया होगा 
मौन श्रद्धांजलि हर ओर 
अजीब शांति थी बाहर 
अंदर हाहाकार था   
कहीं ॐ शांति का शोर था  
विदा हुये 
कितने अपने, कितने नेता, 
कितने अभिनेता, कितने सेवा कर्मी 
किसी को न तूने छोड़ा 
मनोबल तूने सबका तोड़ा 
अब तू जा 
२०२० तू जा रे 

इस बार मैं
स्वागत नहीं कर रहा 
अँग्रेजी नववर्ष का 
लेकिन तुझे २०२० 
अब मैं 
भागता हुआ देखना चाहता हूँ 
हम सब से कोसो दूर
तेरी यादों को 
‘डिलीट’ करना चाहता हूँ 
है मुश्किल अपनों को भूलना 
पर विश्व की खुशहाली हेतु 
तुझे सर पर पैर रखकर
भागते हुये देखना चाहता हूँ
जा रे, तू जल्दी जा रे

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/१२/२०२०    


 

 

 

    

 


शनिवार, 5 दिसंबर 2020

ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं ....

 


 


आंखो की नमी और आँखों की आग बता देती है मिजाज दिल का। आँखेँ दिल का दर्पण होती हैं और कभी ये आँखेँ बहुत बोलना चाहती हैं। आँखों का ख्याल आते ही उमराव जान फिल्म का गाना, इन आँखों की मस्ती के मस्ताने  रह-रह कर याद आ रहा। आज मन आँखों से मिलकर आँखों की भाषा से बात करना चाहता है।  

सुन लो गाँव वालों, शहर वालों, आँख व कान खोल कर कि आँखों से नित नए आयाम लिखने में हमारा कोई सानी नहीं। हम आँख लगाते नहीं, हम आँख मिलाने पर विश्वास करते हैं। कभी कोई आँखों में घर कर, बस जाता है तो कभी कोई आंखो से उतर जाता है। आँखेँ तरेरना हम नहीं जानते इस लिए कुछ की आंखो के तारे हैं हम।

हमारे आस पास कुछ तत्व आदतन दूसरे के घर पर आँख टिकाये रहते हैं। ऐसे प्राणी हमें फूटी आँख नहीं सुहाते। लोगों को इस जमाने की हकीकत को बता हमने लोगो की आँखों में पड़े पर्दे को हटाने की कोशिश बहुत की लेकिन नाकाम रहे। इस कारण आज भी कहीं हम आँख का काँटा बने हुये हैं।      

फिर भी आँखों में चर्बी चढ़े लोग कब हमारी अहमियत समझते हैं, यकीन है उनकी आँखों में खटकते जरूर होंगे हम। इस महफिल में भी आंखे मैली करने वाले बहुतेरे है।  हमारी हरकतों को आंखे फाड़कर देखने वाले और आँख लगाने वाले भी बहुत हैं। बहुत लोगो की आदत होती है लेकिन जैसे ही हम आँख में आँख डालते है उनकी, वे कन्नी काट जाते हैं। लोग जिंदगी में बहुत आते हैं उसमें कितने तो आँखों मे धूल झोंक कर चल देते है और कुछ आंखे फेर लेते है पर कुछ हैं जो आँखों ही आँखों में एक रिश्ता कायम कर लेते हैं।

इस भौतिकवाद के युग में आंखे चार होते ही हमसे आँख चुराने वालों की कमी भी नहीं। पर हम भी कम नहीं उनको जिस पल आँख भर कर देख लेते है तो वो पल बन जाता है उनका। आंखे भर आती है जब देखता हूँ कि कुछ लोग आंखे बिछाये हमारा इंतज़ार करते हैं। कम है, पर हैं जिन्हें देखकर आंखे खिल जाती है हमारी। दिल बाग-बाग होता है यह सोचकर कि कुछ की आंखो में घर बसाया है हमने। अभी भी हम कितनों का दिल लूट लेते है आखिर आंखो से काजल चुराने में महारत हासिल है हमें।

कातिल बन कर ये आँखें हमको मरने नहीं जीने का सबब दे जाती हैं। फिलहाल तो दिल आज उन आँखों की गुस्ताखियों को माफ करने के मूड में है जिनकी आँखों में हमने अजब सी अदाएं  देखी हैं। उन आँखों को दगाबाजी  सिखाने वालों का सजा देने का इरादा भी रखते है। आँखें काली, कत्थई हो या सुरीली, आँखें मस्त-मस्त हों या चैन लूटने वाली, सब देख हमारी आँखें हंस देती हैं। दिल की जुबां बनते देर नहीं लगती इन आँखों को फिर। इसमें कोई शक नहीं की कसूर आँखों का ही होता है जब प्रेम का श्रीगणेश होता है। अब जब आँख लड़ ही गये तो दिल बेचारा क्या करे? जीवन से भरी आँखों में आखिर डूब जाना और फिर इसमें गोताखोरी करना कोई जोखिम से कम नहीं। आँखों से प्रेम जाम पिलाये कोई तो मदहोश होना बनता है न। फिर लगता है कि इन आँखों के सिवाय दुनियाँ मे रखा क्या है?

सच बतायें उनकी आँखों में जहां बसता है हमारा। उनकी आँखों में सवाल भी होते हैं जबाब भी होते हैं।  प्रेम की हर भाषा जानते हैं उनकी आँखें और जब शब्द कभी आनाकानी करते हैं तो उनकी झुकी आँखें मन में उठ रही तरंगो की जुबां बन जाते हैं। आँखों में ही निमंत्रण की स्वीकृति का उत्तर पाकर आँखें बंद कर उस अहसास को जीने के लिए तन मन आतुर होता है। उन आँखों में उभरते अहसासों की कशिश में प्रतिबिम्ब यही कह पाता है उन्हें कि “ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं।“ शुभकामना इतनी कि उनकी आँखों में गम के आँसू न आयें कभी और मुझे जब भी याद करे तो खुशी संग प्रेम से छलछला उठें उनकी ये आँखें .....

~ प्रेम हाइकु ~

 


प्रेम पूजन
गंगा सा जो पावन
तुम मूरत
 
*********
 
प्रेम संदेश
हर्षित होता मन
गर्वित भाव
 
*********
 
प्रेम अर्पण
निस्वार्थ लेन देन
तुम दर्पण
 
*********
 
प्रेम स्वछ्न्द
महकती सुगंध
जीता सम्बंध
 
*********
 
प्रेम प्रतिज्ञा
जन्मों का अनुबंध
होती तपस्या
 
*********
 
प्रेम है यज्ञ
त्याग होती आहुति 
चाहत स्वाह
 
*********
 
प्रेम स्वालंबी
केवल समर्पण
मूल मंत्र
 
*********

 


बुधवार, 2 दिसंबर 2020

नमस्कार!

 


नमस्कार! 
हो गई फिर सुबह 
फेसबुक ट्वीटर वाहटसप 
पर उपस्थिति दर्ज अनिवार्य है
वरना लोग बड़ी जल्दी भूल जाते है
आपका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है  
सबसे अच्छा, प्यारा करीब लगने वाला
कब स्मृति से अन्तर्धान हो जाये 
और आप की खुशफहिमी
कब ओंधे मुँह गिर पड़े 
पता ही नहीं चलेगा 
  
चलो अब शुरू करते हैं 
लोगों को रिझाना 
अपना बनाना 
अरे भई !
अपना बनाएँगे तो ही 
भाव मिलेंगे 
वरना इस स्वार्थ की दुनियाँ में
हम किस भरोसे 
अपनी पोल पट्टी खोलेंगे 
उमड़ रहे भावो को  सुनाएँगे
अच्छा - बुरा सुनाकर ही तो 
लाइक (गर्व कराती) पा सकेंगे
खुशनसीब हुये तो 
टिप्पणियाँ भी स्वागत करेंगी   
तंज़ कसे या फिर दिखाये प्यार 
कुछ तो करते अपने सपने साकार 
गतिविधि की लाइव जानकरी 
बटोरो खूब, झूठा या सच्चा प्यार 
चलता रहे हम सबका ये व्यापार 
इसलिए "प्रतिबिम्ब" करता 
आप सबको बारंबार नमस्कार!!!!  

-प्रतिबिम्ब ०२/१२/२०

सोमवार, 30 नवंबर 2020

मेरे किसान

 


मेरे किसान
 
राजनीति की बिछी बिसात में, फंस गया हमारा किसान
बिचौलियों की इस टेढ़ी चाल में, आ गया हमारा किसान
इस कृषि सुधार नीति को, समझ न पाया हमारा किसान
सर्दी में भी दिल्ली किया कूच, गुमराह हुआ हमारा किसान
 
सरल भाषा में समझना होगा, किसी की बातों में न आना
राजनीति ने सदा बढ़ाई खाई है, बिल को तुम समझ लेना
ये वक्त महामारी का है, फैसलों पर तुम विचार कर लेना
ऐतिहासिक किसान बिल है, इसको जीवन - रेखा बना लेना
 
कृषि उपज, व्यापार व वाणिज्य से संबन्धित पहला बिल
जिससे मिलेगी सुविधा, और होगा उत्पादन का संवर्धन
देश की 2,500 एपीसी मंडियां है, राज्यो द्वारा संचलित
सब मंडियों संग, बिन शुल्क देश में मिलेगे तुम्हें विकल्प
 
कृषक कीमत व कृषि सेवा करार है दूसरा किसान बिल
किसानों का सशक्तिकरण व सरंक्षण है इसका विधान
निजी संस्था, एजेन्सियों संग भी, कर पाएंगे समझौता
कीमत का मिलेगा आश्वासन, अब कर पाएंगे अनुबंधन
 
आवश्यक वस्तु संशोधन है, सरकार का ये तीसरा बिल
कुछ वस्तु आवश्यक सूची कानून में, अब किए बदलाव
युद्ध, अकाल स्थिति व अप्रत्याशित उछाल पर सरकार
आवश्यक उत्पादन सूची से कर सकती है उनको बाहर
 
सरकार के व्यक्तव्य को सुनो व समझो, फिर करो ध्यान
न विरोध करो, न करो अन्य राज्यों व लोगों को परेशान
इतने सालों की भ्रष्ट व्यवस्था से, अब निकलो मेरे किसान
अपना हित व आय का सोचो, मत फँसो तुम मेरे किसान
 
-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल / ३० नवंबर, २०२०


शनिवार, 28 नवंबर 2020

प्रणय बेला

 

प्रणय बेला

मेरे रग-रग में व्याप्त है,
रंग प्रेम और संस्कार का
अधरों में हो समाहित,
खिल उठता रंग गुलाब सा
विलय हो उठता अधीर,
समर्पण की विरल चाह सा
प्रफुल्लित हृदय में,
रोम-रोम होता झंकृत वीणा सा
 
प्रेमाकांक्षा से होकर द्रवित,
तत्क्षण होता मन संजीवन
अंतस्थ गहनता का प्रतीक बन,
मुक्ताकाश में करता विचरण
अकलुष बहती प्रेम बयार,
निश्छलता में उमड़ जाता मन
अप्रत्याशित था अब तक,
प्रत्याशित हो उठता वो यौवन
 
प्रतिरोध न तरुणाई कर पाती,
हर्षित होती फिर संचेतना
निस्तब्ध रात्रि के आलिंगन सा,
हर पल होता दृश्यमान
अहसासों की तरंगे होकर संलगन,
लिखती फिर नया स्पर्शज्ञान
बाहुपाश में सौंदर्य निखरता,
संगठित होती प्रणय की सौंधाहट
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २८/११/२०२०

रविवार, 22 नवंबर 2020

कर नमन




कर सृष्टि को नमन
कर पृथ्वी को नमन
कर आराध्य को नमन
कर गुरुओं को नमन

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

मूल सृष्टि का बन कर
सुधा वृष्टि को अपना कर
संकल्प दृष्टि का सूत्र बन
सत्य का  तू निर्वहन कर

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

जन-मानस का ले संज्ञान
अटल हो संकलिप्त प्रतिज्ञा तेरी
संस्कृति से जोड़कर जीवन  
हर संस्कार बने पहचान तेरी   

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

कर अपने अंतर्मन में चिंतन
जिसमें प्रतिबिंबित हो निष्ठा तेरी
प्रकृति से हो सहृदय मिलन
निर्मलता प्रतिपल सक्रिय हो तेरी

 

नमन तू धर्म को कर
नमन तू कर्म को कर
मानवता का सृजन कर 
पुण्य का तू अर्जन कर

 

-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २२/११/२०

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

स्मृतियाँ

 



जीवन तांता है

अनेकों स्मृतियों का

स्मृतियों में

अस्तित्व तलाशने का


स्मृति,

सुने और पढे का सरंक्षण है

ज्ञान व बौद्धिक क्षमता का

परिचायक है  स्मृतियाँ

स्मृतियाँ संग्रहित है

सुख दुख का सार लिए

अच्छे बुरे का रूप लिए

कर्म व अपराध का

बोध कराती है स्मृतियाँ

भूल जाएँ अगर स्मृतियाँ

रंगहीन होगा सबका जीवन

वर्तमान को सँजोती है स्मृतियाँ



किन्तु

मस्तिष्क का 

स्मृतियों पर नियंत्रण है

क्या भूलें क्या याद रखे

मस्तिष्क निर्धारण करता है

और संचालित करता है

क्रिया व प्रतिक्रिया का भाव

द्वेष व सदभाव को

मस्तिष्क ही स्फ्रुटित करता है


स्मृतियों के जाल को मस्तिष्क

बड़े जतन से संभाल कर रखता है

और एकांत हो चाहे शोर ज़िंदगी का

बस चुपके से सरका कर स्मृतियों को

सीधा प्रसारण कर देता है मस्तिष्क



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २०/११/२०२०





गुरुवार, 19 नवंबर 2020

भूल न पाये उनको



समय अपना दिया हमने जिनको

समय ने न जाने कब से बदल दिया उनको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

ख्यालों में भी ख्याल था जिनका

इस राह में हमारा ख्याल भी न आया उनको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

तोड़कर रिश्ता मुस्कराते हैं वो

नम आँखों में उभरा दर्द मेरा न दिखा उनको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

न मिलते वो तो अच्छा होता

अब प्यार से इतनी नफरत न होती हमको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

टूट कर चाहना हसरत थी

इस राह में चाहा भी हमने और टूटे भी हम

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

ढूंढते हैं सब में हमको ही

यह पैमाना मोहब्बत का हमने दिया है उनको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

कभी मुस्करा जाते है हम 'प्रतिबिंब'

दर्द छुपा-छुपा कर भूल न पाये हैं हम उनको

सच कहूँ भूल न पाये हैं हम उनको

 

-         प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १९/११/२०२०


शनिवार, 14 नवंबर 2020

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 



आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

सबके मन मंदिर में आध्यात्म का – वास हो

सफलता, स्वस्थता व खुशियों का – साथ हो

प्रकाश का ये पवित्र संस्कृति पर्व - शुभ हो

कर्म - धर्म हम सब के जीवन का – सार हो  

राम के भाव का हमारे हृदय में - आगमन हो

बुराई के रावण का मस्तिष्क से – गमन हो

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

अराजकता व भारत के दुश्मनों का - नाश हो

हर माँ, बहन, बेटी के सम्मान की – रक्षा हो

शिक्षा भारत का आधार बन – एक प्राण हो

राष्ट्रहित में सभी विचारधाराएँ – एक साथ हों

भारत में गरीबी का जड़ से  – उन्मूलन हो

नागरिकों में संस्कारो का पुन: - जागरण हो

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

मेरे तिरंगे का सबके दिल में – गौरव हो 

सबसे अलग मेरे भारत का - वैभव हो

मेरे देश के सभी जवानों का – मान हो

दुनियाँभर में राष्ट्र का मेरे – सम्मान हो

मेरे भारत की संस्कृति का – प्रसार हो

भारत विश्व गुरु बने व जग में - शांति हो   

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल / १४/११/२०२०


गुरुवार, 12 नवंबर 2020

बूझो तो जाने ?

 



सबसे बात करता हूँ, मैं बातचीत नहीं करता हूँ

मैं खूब लिखता हूँ, पर पढ़ता किसी को नहीं हूँ

अपनी सुनाता सबको हूँ, मैं सुनता बिल्कुल नहीं हूँ

रखता हूँ अपना रुतबा, समझता किसी को नहीं हूँ

 

अपना ढिंढोरा पीटता हूँ, नाम किसी का भाता नहीं

सोच अपनी ही रखता हूँ, किसी का मैं सोचता नहीं

शब्दों का बना ठेकेदार हूँ, शब्द किसी के चुनता नहीं

सबका बनना चाहता हूँ, किसी को अपना बनाता नहीं

 

किस को जोड़ना किसे छोडना, जांच परख कर लेता हूँ

खुद्गर्जी से रखता हूँ नाता, अपना भला मैं देख लेता हूँ  

प्रेम का बनकर अनुयायी, प्रेम जाल अक्सर बुन लेता हूँ  

करे कोई अगर मेरी निंदा, उससे मैं किनारा कर लेता हूँ

 

मुझे यहाँ - वहाँ तुम ढूंढो, मैं अपनी कहते दिख जाता हूँ

कहो कोई काम तुम मुझे, बहाने तब हज़ार बना लेता हूँ

समय का रखता ख्याल, किसी को मैं समय नहीं देता हूँ

समझ तुम गए हो मुझे अब तक, तुम्हीं बताओ मैं कौन हूँ

 

बताओ मैं कौन?

(खुद में झांकना जरूरी)

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल – १२/११/२०२०


बुधवार, 11 नवंबर 2020

भीड़

 


भीड़

 


भीड़ भी न, भीड़ को ही

आकर्षित करती है और

पढ़ा लिखा इंसान भी

जाने अंजाने ही सही

इस भीड़ का हिस्सा बन जाता है

और बिना सिर पैर के

मुद्दे को भी मुद्दा बना देता है

संवेदनशीलता और शर्म का

उड़ता मज़ाक, व्यंग्य के नाम पर।

और खारिज हो जाती है

सारी मर्यादाएं। 

भीड़ में वो संजीदा इंसान

बेहूदा बात में भी खुद को

चर्चा मे शामिल कर लेता है।

 

आवश्यक बातों पर भी

उस भीड़ को

खींचना मुश्किल होता है

क्योंकि भीड़ अभी भी

उस भीड़ का ही

अनुसरण कर रही है

गलत सही की

परवाह किए बिना 

हाँ, वहाँ

प्रत्युतर भी दे रही है

शायद पहचान बना रही है

भीड़ कहो या भेड़ चाल

यहां सबका यही हाल।

 

खास हो या आम

सब गिन रहे

गुठलियों के दाम

कहीं बिक रहा नाम

कोई हो रहा बदनाम

और तो और

चाहे अनचाहे

भीड़ में ही, स्वयं को पाया

इसलिए दोस्तों चला आया

इस भीड़ का संदेश,

इस भीड़ के ही नाम देने।

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ११/११/२०२०

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