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मंगलवार, 15 अगस्त 2023

वीर सपूतों की चाह

 



वो भारत का सम्मान लिए, चला था

छोड़ कर घर, भारत का बेटा बना था

समर्पित होकर,  देश के लिए लड़ा था

न्यौछावर जीवन, माँ के लिए किया था 

माँ भारती का लाडला बन, आज लौटा था

सम्मान में तिरंगा तन से उसके लिपटा था


माटी का उसने तब, तिलक किया था

माँ को झुक कर तब, प्रणाम किया था

चौड़ा सीना लिए तब, वो आगे खड़ा था

आँखों में रोष तब, उसका हौसला बड़ा था 

रणभूमि पर तब, खूब कौताहुल मचा था

दुश्मन से लड़ने तब, हर जवान खड़ा था

 

उनके नापाक इरादों को, तब ध्वस्त किया था

गोलियों से भूनकर, ढ़ेर दुश्मनों को किया था

शत्रुओं को अपना दम उसने, खूब दिखाया था 

शत्रुओं के हर बढ़ते कदमों को, उसने रोका था 

खाकर गोली सीने पर, फिर भी अटल खड़ा था

हर सीमा प्रहरी का, मनोबल वो ही तो बना था


लड़ने का हौसला, उसका हर पल जिंदा था

अपनी शेष सांसो का भी, उसे सहारा था

जीत का लेकर भाव. स्वाभिमान प्रबल था

आँखों में उसकी, उभरता क्रोध प्रखर था

चुन चुन कर जिसने, शत्रुओं को मारा था 

आज रक्त रंजित, शरीर स्थिल वहाँ पड़ा था


इच्छा फिर भी, उसे अभी भी लड़ना था

शत्रुओं को अपने, नाकों चने चबवाना था  

घायल शरीर था, मौत को गले लगना था

उससे पहले ऊँचे शिखर, तिरंगा फहराना था

रंक्त रंजित हौसलों का, फैला तब यशगान था

जीत, माँ भारती को वीर सपूतों का उपहार है 

  


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

15 अगस्त 2023, दिल्ली 



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