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रविवार, 7 जनवरी 2018

खोटा सिक्का


गिरा हुआ था
एक सिक्का समझ
रख लिया उसने अपने पास
बतलाया
कहाँ से आया क्यों आया
पर इस सिक्के पर
दिल उनका आ गया
शायद मेरी कहानी में
विरह खूब भाया
नहीं की
उसने अपनी परवाह
और मैंने
हर जगह साथ दिया
उसने रखा
मेरा ध्यान बहुत खास
समझी
मेर्री भूख, मेरी प्यास
उनके लिए
बन गया था मैं खास
किसी और सिक्के को
अपने पास आने न दिया
इस तरह
कुछ साल प्रेम खूब लुटाया
और खूब पाया 

चकाचौंध दुनिया की
चकाचौंध खनक की
आखिर
उनके दिल को छूने लगी
मेरे अस्तित्व पर
संकट के बादल मंडराने लगे
मुझे बहार धकेलने का
रोज बहाना बनता
किसी न किसी न रूप में 
छुटकारा पाने की साजिश मे
उन्हें परेशान पाया 
दूसरे सिक्को की खनक
मुझ तक पहुँचने लगी
आखिर दिल पर पत्थर रख
मुझे ही कहना पड़ा
चलो अलविदा कहो
मुझे फेंक दो
किसी नदी तालाब या समुन्द्र में

बस ‘प्रतिबिम्ब’ जैसे
मेरे कहने का ही इंतजार हो
नजदीक तालाब मे
झट से मुझे फेंक दिया
खोटा सिक्का सा मैं
उनसे अलग हो गया
हाँ कुछ देर रुक कर
मेरे गिरने से
मेरे दर्द को
वो पानी की
केवल छटपाहट समझ
वो देखती रही   ....

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ७/१/२०१८
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