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शनिवार, 14 नवंबर 2020

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 



आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

सबके मन मंदिर में आध्यात्म का – वास हो

सफलता, स्वस्थता व खुशियों का – साथ हो

प्रकाश का ये पवित्र संस्कृति पर्व - शुभ हो

कर्म - धर्म हम सब के जीवन का – सार हो  

राम के भाव का हमारे हृदय में - आगमन हो

बुराई के रावण का मस्तिष्क से – गमन हो

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

अराजकता व भारत के दुश्मनों का - नाश हो

हर माँ, बहन, बेटी के सम्मान की – रक्षा हो

शिक्षा भारत का आधार बन – एक प्राण हो

राष्ट्रहित में सभी विचारधाराएँ – एक साथ हों

भारत में गरीबी का जड़ से  – उन्मूलन हो

नागरिकों में संस्कारो का पुन: - जागरण हो

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

मेरे तिरंगे का सबके दिल में – गौरव हो 

सबसे अलग मेरे भारत का - वैभव हो

मेरे देश के सभी जवानों का – मान हो

दुनियाँभर में राष्ट्र का मेरे – सम्मान हो

मेरे भारत की संस्कृति का – प्रसार हो

भारत विश्व गुरु बने व जग में - शांति हो   

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

आपकी ये दिवाली, हर दिवाली – शुभ हो

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल / १४/११/२०२०


गुरुवार, 12 नवंबर 2020

बूझो तो जाने ?

 



सबसे बात करता हूँ, मैं बातचीत नहीं करता हूँ

मैं खूब लिखता हूँ, पर पढ़ता किसी को नहीं हूँ

अपनी सुनाता सबको हूँ, मैं सुनता बिल्कुल नहीं हूँ

रखता हूँ अपना रुतबा, समझता किसी को नहीं हूँ

 

अपना ढिंढोरा पीटता हूँ, नाम किसी का भाता नहीं

सोच अपनी ही रखता हूँ, किसी का मैं सोचता नहीं

शब्दों का बना ठेकेदार हूँ, शब्द किसी के चुनता नहीं

सबका बनना चाहता हूँ, किसी को अपना बनाता नहीं

 

किस को जोड़ना किसे छोडना, जांच परख कर लेता हूँ

खुद्गर्जी से रखता हूँ नाता, अपना भला मैं देख लेता हूँ  

प्रेम का बनकर अनुयायी, प्रेम जाल अक्सर बुन लेता हूँ  

करे कोई अगर मेरी निंदा, उससे मैं किनारा कर लेता हूँ

 

मुझे यहाँ - वहाँ तुम ढूंढो, मैं अपनी कहते दिख जाता हूँ

कहो कोई काम तुम मुझे, बहाने तब हज़ार बना लेता हूँ

समय का रखता ख्याल, किसी को मैं समय नहीं देता हूँ

समझ तुम गए हो मुझे अब तक, तुम्हीं बताओ मैं कौन हूँ

 

बताओ मैं कौन?

(खुद में झांकना जरूरी)

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल – १२/११/२०२०


बुधवार, 11 नवंबर 2020

भीड़

 


भीड़

 


भीड़ भी न, भीड़ को ही

आकर्षित करती है और

पढ़ा लिखा इंसान भी

जाने अंजाने ही सही

इस भीड़ का हिस्सा बन जाता है

और बिना सिर पैर के

मुद्दे को भी मुद्दा बना देता है

संवेदनशीलता और शर्म का

उड़ता मज़ाक, व्यंग्य के नाम पर।

और खारिज हो जाती है

सारी मर्यादाएं। 

भीड़ में वो संजीदा इंसान

बेहूदा बात में भी खुद को

चर्चा मे शामिल कर लेता है।

 

आवश्यक बातों पर भी

उस भीड़ को

खींचना मुश्किल होता है

क्योंकि भीड़ अभी भी

उस भीड़ का ही

अनुसरण कर रही है

गलत सही की

परवाह किए बिना 

हाँ, वहाँ

प्रत्युतर भी दे रही है

शायद पहचान बना रही है

भीड़ कहो या भेड़ चाल

यहां सबका यही हाल।

 

खास हो या आम

सब गिन रहे

गुठलियों के दाम

कहीं बिक रहा नाम

कोई हो रहा बदनाम

और तो और

चाहे अनचाहे

भीड़ में ही, स्वयं को पाया

इसलिए दोस्तों चला आया

इस भीड़ का संदेश,

इस भीड़ के ही नाम देने।

 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ११/११/२०२०

मंगलवार, 10 नवंबर 2020

कोरोना से पहले कोरोना के बाद

 


कोरोना से पहले कोरोना के बाद


जिंदगी जैसे भी थी

चल रही थी, कट रही थी

चाहे थी स्वार्थ से भरपूर

किस्से कहानी बनती

वास्तविकता से कहीं दूर

सामाजिक वातावरण मे

राजनीति की भयंकर घुसपैठ संग

अल्प और बहु से जुड़ती संख्या

जिनकी ठेकेदारी जताते

और टकराव कराते चिन्हित चेहरे

राष्ट्रवादी और द्रोहियों

के बनते उभरते समीकरण

देश से, व्यवस्था से

दुश्मनी निभाते सत्ता से वंचित लोग

सब के बीच चल रही थी जिंदगी


चीन से कोरोना ने आकर

इस जिंदगी में कर दी टांग अड़ाई

आपस मे दूरी की खाई बढाई

अनगिनत स्वार्थी मुखौटो पर भी

एक मास्क और चढ़ावाया।

मिलना - जुलना हुआ निषेध

व्यक्ति - व्यक्ति में होने लगा भेद

कोरोना ने फिर भी लगाई सेंध


कोरोना से उठाने फाइदा

राजनीति भी खूब परसाई

कुछ राज्यों ने हराने केंद्र को

बीमारी से कर दी हाथ मिलाई

रोजगारो को खुला छोड़कर

राज्य की अपनी विवशता जतलाई

हर आवाहन का उड़ाकर मजाक

नागरिकों का जीवन रख दिया ताक

फिर भी कालर सबने ऊंचे किए

इस जंग से लड़ने के ज्यों गुर सीख लिए

सबको सता रही केवल आमदनी की चिंता

क्या आम, क्या खास सबका लगा पलीता


सेनीटाइजर, मास्क, गल्वस और जांच किट

इन सब कंपनी की हो गई आमदनी लिफ्ट

लॉकडाउन पर उठाकर सवाल करते बवाल

भयंकर बीमारी में भी कुछ हुये मालामाल

अब जीवन मास्क व कोरोना दोनों संग चलेगा

नियमो का पालन, वैक्सीन तक जारी रहेगा

इस कठिन दौर में मानवता का ध्यान रखना

मिलना - जुलना कम पर प्रेम बनाए रखना।


 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १०/११/२०२०


रविवार, 8 नवंबर 2020

तनिक ठहरो!

 
 
अहसासों के पहाड़
चढ़ने से पहले
वास्तविक धरातल पर
उसका तुम निरक्षण कर लो
तनिक ठहरो!
 
संचित है जो भाव
उनका आत्ममंथन कर लो
मर्यादित है जो शब्द
उन शब्दों की पुष्टि कर लो
तनिक ठहरों!
 
संशय और शंका का
तुम पहले निवारण कर लो
देख वैभव छल का
प्रतिस्पर्धा से तुम दूरी कर लो
तनिक ठहरो!
 
प्रेम है जो उभरा
पुन: उसका परीक्षण कर लो
होगी स्वीकृति या अस्वीकृति
इसका अवलोकन कर लो
तनिक ठहरों!
 
आग्रह है या आज्ञा
भेद तुम थोड़ा समझ लो
समर्पण से पहले
निष्ठा को धारण कर लो
फिर मत ठहरो !!!!
 
 
-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०८/११/२०२०
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