हो तुम मेरा प्रारब्ध
तुम प्रसक्ति0, यही प्रतिदृष्ट00
प्रारम्भ से प्रलय तक
साथ तुम्हारा ही होगा
कहीं शब्दों का बन प्रकर1
कहीं अहसासों का बन प्रकर2
कहीं प्रकल्पित, कहीं प्रकाशित
कहीं प्रकुपित3, कहीं
प्रक्षिप्त4
कहीं प्रसिद्धि, कहीं
प्रतिपक्ष
मेरी पीड़ा के प्रस्रवा4*
बन बहती हो
मेरी प्रेम चेतना
में बसे तुम प्राण हो
कहीं परिपक्व, कहीं तुम प्रतिबिम्बित
कहीं प्रगृहीत5, कहीं तुम उपेक्षित
फिर भी जोश प्रचण्ड, लक्ष्य प्रचोदित6
कहीं पुरुस्कृत, कहीं प्रतिशिष्ट*
मेरे प्रणय:7 की तुम साक्षी
आक्रोश की बनकर प्रणाद:8
प्रतिकोप9 मेरा दर्शाती हो
मेरे अपने विमर्श प्रंगाण में
प्रभुता का तुम भाव लिए हो
कहीं प्रगृहीत5, कहीं तुम उपेक्षित
फिर भी जोश प्रचण्ड, लक्ष्य प्रचोदित6
कहीं पुरुस्कृत, कहीं प्रतिशिष्ट*
मेरे प्रणय:7 की तुम साक्षी
आक्रोश की बनकर प्रणाद:8
प्रतिकोप9 मेरा दर्शाती हो
मेरे अपने विमर्श प्रंगाण में
प्रभुता का तुम भाव लिए हो
तुम प्रतीति10 तुम ही प्रतिसंधान11
तुम प्रत्यय12 तुम ही प्रत्याख्यान13
तुम ही प्रबोध14 तुम ही परम्परा
तुम ही प्रमा15 तुम ही प्रयाणम्16
तुम प्रत्यय12 तुम ही प्रत्याख्यान13
तुम ही प्रबोध14 तुम ही परम्परा
तुम ही प्रमा15 तुम ही प्रयाणम्16
मेरे समाज का तुम प्रसङ्ग हो
मेरे शब्द भावों का उपहार हो
मेरी हर प्रार्थना का प्रसाद हो
मेरी प्रेम की तुम प्रतिष्ठा हो
मेरी सोच का प्रधूपित दिया हो
मेरे सपनों में छुपी प्राप्त्याशा17 हो
मेरे शब्द भावों का उपहार हो
मेरी हर प्रार्थना का प्रसाद हो
मेरी प्रेम की तुम प्रतिष्ठा हो
मेरी सोच का प्रधूपित दिया हो
मेरे सपनों में छुपी प्राप्त्याशा17 हो
हाँ तुम मेरी कविता हो
हाँ तुम “प्रतिबिम्ब” की कविता हो
हाँ तुम ही प्रतिबिम्ब का प्रतिबिम्ब हो
हाँ तुम मेरी कविता हो
हाँ तुम “प्रतिबिम्ब” की कविता हो
हाँ तुम ही प्रतिबिम्ब का प्रतिबिम्ब हो
हाँ तुम मेरी कविता हो
(कविता दिवस पर एक भाव – 21 मार्च 2022)
शब्दार्थ:
(
0उर्जा 00 दृश्यमान
, 1संग्रह, 2गुलदस्ता 3उत्तेजित 4ढाला गया
4*उमड़ते आंसू 5स्वीकृत
6निर्धारित *अस्वीकृत 7अभिरुचि 8चीत्कार/क्रंदन,
9क्रोध के प्रति क्रोध 10ख़ुशी 11उपचार 12शपथ
13निराकरण 14जागरण 15प्रत्यक्षज्ञान/ प्रतिबोध 16आरम्भ/शुरू,
17प्राप्त करने की आशा )