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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

एक पत्ता





एक पत्ता
अपनी खूबसूरती
पर मचलने लगा
रंग पर इतराने लगा
सोचने लगा
काश मैं भी
यहाँ से निकल
दुनिया के रंग मे घुल जाऊँ

टूटा पत्ता साख से
हवा के साथ चल पड़ा
आज़ाद हुआ कहकर
मुस्कराने लगा
अब पेड़ से
ना कोई बंधन
ना कोई शिकायत

उठते गिरते पड़ते
हवा के थपेड़ो संग
ना जाने कहाँ खो गया
खुद को अकेला पा
उसे अहसास हुआ
अपने अस्तित्व का
सोचने लगा वह
उस साख से फिर
कभी न जुड़ पाएगा

और अब
सूख कर
मिट्टी मे मिल जाएगा
मिट्टी मे मिल जाएगा

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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