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बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

उदासी



उदासी.....  


क्या रंग है उदासी का
क्या रूप है उदासी का
कौन सा मौसम है उदासी का
उदासी में
केवल रात ही नज़र आती है
इसमें न धूप खिलती है
न ही शाम होती है
बस अन्धकार ही अन्धकार
समुद्र की गहराई लिए अँधेरा
बस डूबता जाता है इंसान
तब लगता है कि
तैरना जानते ही नही
मौत ही एक रास्ता नज़र आता है
सब कुछ छोड़ जाने को
हर मुसीबत से छुटकारा पाने को
मन करता है
चुपचाप अलविदा कहने को ....

गीली मिट्टी लिए हुए रास्ता
दलदल बन खींचता है अपने में
हल्की रोशनी मिलते ही
हर परछाई, अनहोनी होने का
आभास दे जाती है
और हर एक आहट
डर का श्रीगणेश करती है
ख़्वाब और ख्वाइशे
दम तोड़ते हुए
आखों से ओझल हो जाते है.... 

पीला चेहरा स्याह सा उभर
अँधेरे की भेंट चढ़ता जाता है
वजह बेवजह खुद पर दोष
स्थापित करता हुआ - शून्य दिमाग
आँख खुलने पर
नींद खुलने का अफ़सोस करता है
निराशाओं का आँचल लहराकर
पूरे बदन को ढक लेता है
कफ़न की भांति ....


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १/२/२०१७

रविवार, 29 जनवरी 2017

अकेले में ...



अकेले में ...

अकेले में
रोने के बाद
आँखों से दिखती है
एक दुनिया
जिसमे सब कुछ
साफ़ साफ़ नज़र आता है
ये वही दुनिया है
जिसने मजबूर किया
आंसुओं को जन्म लेने से
लेकिन
आँखों में पड़ी 
दुनियादारी की गंद
आखिर निकल गई ...


दुनिया में जितने लोग
उतने ही
इल्जाम लिए सर पर
अनगिनत अंगुलियाँ
उठती और भेद देती
खंजर की तरह
मेरे अस्तित्व को गहराई तक
जख्म नासूर बन रिसते रहे
कुरेदते हुए जख्मों पर
नमक डालने की प्रक्रिया में
सक्रिय मेरे अपने....
   
अँधेरे से डरी और
सिहरी हुई  मनोदशा
निढ़ाल होकर रेंगती हुई
ऐसे में
पौ फटने का इंतजार
किसे नही होता
लेकिन आँखों पर
और किस्मत पर
अँधेरे की काली स्याही
अपने हस्ताक्षर कर चुकी हो 
तो आशा और उम्मीद
करना बेमानी होगा......

-       - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २९/०१/२०१७

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