रोनाल्ड रॉस
आज विश्व मच्छर दिवस है... २० अगस्त १८९७ को ही ब्रिटिश डॉक्टर रोनाल्ड रॉस ने मादा एनाफिलीज मच्छर की खोज की थी, जो मलेरिया का कारण है. यही वजह है कि इस दिन को विश्व मच्छर दिवस (World Mosquito Day ) के रूप में याद किया जाता है. इसलिए रोनाल्ड रॉस को भी याद करना बनता है.
उत्तराखण्ड देवभूमि में जहाँ देवी देवताओं का निवास है वहीँ यहाँ न जाने कितने साहित्यकार, राजनेता, कवि, लेखक, प्रशासक और वैज्ञानिक हुए हैं. १९०२ में नोबल पुरुस्कार विजेता ( चिकित्सा तथा मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन चक्र के अन्वेषण करने वाले) रोनाल्ड रॉस का जन्म भी कुमाऊँ के अल्मोड़ा में, उत्तराखण्ड की इसी धरती पर हुआ था.
बात १८५७ की है. मंगल पांडे द्वारा एक अंग्रेज अधिकारी को गोली का निशाना बना देने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य में चारो तरफ भय का माहौल बन गया था. ब्रिटिश अधिकारी मेजर जनरल हियरसी के आदेशानुसार या कहे सलाह अनुसार बहुत से अंग्रेज अधिकारी उत्तराखण्ड की पहाड़ियों - गढ़वाल कुमाऊँ की तरफ चल पड़े थे. सर कैम्पबैल क्लेब्रान्ट रॉस अपनी पत्नी मलिदा चारलोटे एल्डरट के साथ नाव से बनारस पहुंचे. वहां वेश भूषा बदलकर वे मुरादाबाद, चिल्किया रामनगर व् भुजान होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे. अल्मोड़ा छावनी में उन्होंने अपना डेरा जमाया. भयंकर गर्मी और ब्रिटिश विरोध की ज्वाला में अंग्रेजो के लिए यह उपयुक्त स्थान था. यूं तो थोमसन हाउस अल्मोड़ा स्वामी विवेकानंद की यादों से जुड़ा है लेकिन कहीं कहीं यह बात भी सामने आई है की यहीं १३ मई १८५७ को रोनाल्ड रॉस का जन्म हुआ. रॉस का बचपन अल्मोड़ा में बीता और दस वर्ष की आयु में उन्हें आगे पढाई हेतु लंदन भेज दिया गया. मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् अपनी जन्मभूमि व् भारत से स्नेह के करना वे १८८१ भारत लौट आये. १८८३ में वे एक्टिंग गेरीसन सर्जन आफ बंगलौर बने. यहाँ उन्होंने मलेरिया के मच्छर को कंट्रोल करना व् पानी की ओर उनको सिमित करना जान लिया था. १८८८ में वे पुन इंग्लैण्ड गए और वहां रायल कालिज के सर्जनो व् प्रोफेसरों के साथ उन्होंने जीवाणु विज्ञान का गहन अध्ययन किया. १८८९ में वे पुन: भारत आये.
उन्हें कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) या बॉम्बे (वर्तमान मुम्बई) के बजाय कम प्रतिष्ठित मद्रास प्रेसिडेंसी में काम करने का मौका मिला. वहां उनका ज्यादातर काम मलेरिया पीड़ित सैनिकों का इलाज करना था. क्विनाइन से रोगी ठीक तो हो जाते, लेकिन मलेरिया इतनी तेजी से फैलता कि कई रोगियों को इलाज नहीं मिल पाता और वे मर जाते.
मलेरिया से पीड़ित क्षेत्र सिगुर घाट में अपनी शोध छुट्टियों के दौरान रास को मलेरिया हुआ लेकिन क्विनाइन से उन्होंने अपने को ठीक किया. कोलकता में वैज्ञानिक किशोरी मोहन बन्नोपाध्याय की सहयता से उन्होंने मच्छरों को एकत्र किया. ऐसे ही कुछ नाम उभर कर आते है डॉ रत्न पिल्लई उनके नौकर अब्दुल वहाब व् लक्ष्मण जिन्होंने रोस को अनुसन्धान करने में सहयता की और फर्ज निभाया. २५ मार्च १८९८ में उस मच्छर की खोज की जिस से मलेरिया फैलता था. पच्चीस साल तक भारतीय चिकित्सा सेवा के दोरान अपनी कर्तव्यपरायणता का बखूबी निर्वहन के पश्चात सेवा से त्यागपत्र दे दिया था और १९०२ में उन्हें औषधि विज्ञान के लिए नोबल पुरुस्कार मिला. सन् १९२३ में अल्बर्ट मेडल तथा मैंशन मेडल से भी सम्मानित किया गया था १९२६ में उनके योगदान तथा उपलब्धियों के सम्मान में रॉस संस्थान और अस्पताल स्थापित किया गया.
१६ सितम्बर १९३२ में रोनाल्ड रॉस ने आखरी साँस ली.
रोनाल्ड रॉस का अल्मोड़ा में जन्म और भारत में अनुसन्धान आज कहीं - कहीं पढने को मिलता है. लेकिन मैं समझता हूँ उन के जन्म स्थान अल्मोड़ा व् भारत में उनके अनुसंधान को और विस्तार मिलना चाहिए, लोगो तक पहुंचाना चाहिए.