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मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

एक सिपाही



मेरी रूह में भी बैठा एक सिपाही है
बस जरुरत थोडा उसे जगाने की है
ये अलग बात है की मैंने उसे खुद सुलाया है
देख रहा सब आँखे मूँद दिल को समझाया है
देश से ज्यादा खुद से नाता मैंने जोड़ा है
हर नियम कायदे को मैंने तो बस तोड़ा है
हो कोई भी अपराध घटना या दुर्घटना कही
खुद को छिपाकर चुप रहने को ही माना सही
खून खौलता है मेरा देख दुश्मन की तिरछी नज़र
कुछ छण सोचकर फिर चल पड़ता हूँ अपनी डगर
ये भी नहीं की मैं येसा कुछ कर सकता नहीं
पर क्या करूँ मुसीबत सोच गले लगाता नहीं
अपनों के दुःख पर जब तड़प उठता हूँ
फिर क्यों देश समाज से यूँ दूर रहता हूँ
आज सोच और कलम में आत्मा जिन्दा है मेरी
बस एक सिपाही का दिल मिले ये जरुरत है मेरी

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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