मेरी रूह
में भी बैठा एक सिपाही है
बस जरुरत
थोडा उसे जगाने की है
ये अलग बात
है की मैंने उसे खुद सुलाया है
देख रहा सब
आँखे मूँद दिल को समझाया है
देश से
ज्यादा खुद से नाता मैंने जोड़ा है
हर नियम
कायदे को मैंने तो बस तोड़ा है
हो कोई भी
अपराध घटना या दुर्घटना कही
खुद को
छिपाकर चुप रहने को ही माना सही
खून खौलता
है मेरा देख दुश्मन की तिरछी नज़र
कुछ छण
सोचकर फिर चल पड़ता हूँ अपनी डगर
ये भी नहीं
की मैं येसा कुछ कर सकता नहीं
पर क्या
करूँ मुसीबत सोच गले लगाता नहीं
अपनों के
दुःख पर जब तड़प उठता हूँ
फिर क्यों
देश समाज से यूँ दूर रहता हूँ
आज सोच और
कलम में आत्मा जिन्दा है मेरी
बस एक
सिपाही का दिल मिले ये जरुरत है मेरी
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल