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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं ....

 


 


आंखो की नमी और आँखों की आग बता देती है मिजाज दिल का। आँखेँ दिल का दर्पण होती हैं और कभी ये आँखेँ बहुत बोलना चाहती हैं। आँखों का ख्याल आते ही उमराव जान फिल्म का गाना, इन आँखों की मस्ती के मस्ताने  रह-रह कर याद आ रहा। आज मन आँखों से मिलकर आँखों की भाषा से बात करना चाहता है।  

सुन लो गाँव वालों, शहर वालों, आँख व कान खोल कर कि आँखों से नित नए आयाम लिखने में हमारा कोई सानी नहीं। हम आँख लगाते नहीं, हम आँख मिलाने पर विश्वास करते हैं। कभी कोई आँखों में घर कर, बस जाता है तो कभी कोई आंखो से उतर जाता है। आँखेँ तरेरना हम नहीं जानते इस लिए कुछ की आंखो के तारे हैं हम।

हमारे आस पास कुछ तत्व आदतन दूसरे के घर पर आँख टिकाये रहते हैं। ऐसे प्राणी हमें फूटी आँख नहीं सुहाते। लोगों को इस जमाने की हकीकत को बता हमने लोगो की आँखों में पड़े पर्दे को हटाने की कोशिश बहुत की लेकिन नाकाम रहे। इस कारण आज भी कहीं हम आँख का काँटा बने हुये हैं।      

फिर भी आँखों में चर्बी चढ़े लोग कब हमारी अहमियत समझते हैं, यकीन है उनकी आँखों में खटकते जरूर होंगे हम। इस महफिल में भी आंखे मैली करने वाले बहुतेरे है।  हमारी हरकतों को आंखे फाड़कर देखने वाले और आँख लगाने वाले भी बहुत हैं। बहुत लोगो की आदत होती है लेकिन जैसे ही हम आँख में आँख डालते है उनकी, वे कन्नी काट जाते हैं। लोग जिंदगी में बहुत आते हैं उसमें कितने तो आँखों मे धूल झोंक कर चल देते है और कुछ आंखे फेर लेते है पर कुछ हैं जो आँखों ही आँखों में एक रिश्ता कायम कर लेते हैं।

इस भौतिकवाद के युग में आंखे चार होते ही हमसे आँख चुराने वालों की कमी भी नहीं। पर हम भी कम नहीं उनको जिस पल आँख भर कर देख लेते है तो वो पल बन जाता है उनका। आंखे भर आती है जब देखता हूँ कि कुछ लोग आंखे बिछाये हमारा इंतज़ार करते हैं। कम है, पर हैं जिन्हें देखकर आंखे खिल जाती है हमारी। दिल बाग-बाग होता है यह सोचकर कि कुछ की आंखो में घर बसाया है हमने। अभी भी हम कितनों का दिल लूट लेते है आखिर आंखो से काजल चुराने में महारत हासिल है हमें।

कातिल बन कर ये आँखें हमको मरने नहीं जीने का सबब दे जाती हैं। फिलहाल तो दिल आज उन आँखों की गुस्ताखियों को माफ करने के मूड में है जिनकी आँखों में हमने अजब सी अदाएं  देखी हैं। उन आँखों को दगाबाजी  सिखाने वालों का सजा देने का इरादा भी रखते है। आँखें काली, कत्थई हो या सुरीली, आँखें मस्त-मस्त हों या चैन लूटने वाली, सब देख हमारी आँखें हंस देती हैं। दिल की जुबां बनते देर नहीं लगती इन आँखों को फिर। इसमें कोई शक नहीं की कसूर आँखों का ही होता है जब प्रेम का श्रीगणेश होता है। अब जब आँख लड़ ही गये तो दिल बेचारा क्या करे? जीवन से भरी आँखों में आखिर डूब जाना और फिर इसमें गोताखोरी करना कोई जोखिम से कम नहीं। आँखों से प्रेम जाम पिलाये कोई तो मदहोश होना बनता है न। फिर लगता है कि इन आँखों के सिवाय दुनियाँ मे रखा क्या है?

सच बतायें उनकी आँखों में जहां बसता है हमारा। उनकी आँखों में सवाल भी होते हैं जबाब भी होते हैं।  प्रेम की हर भाषा जानते हैं उनकी आँखें और जब शब्द कभी आनाकानी करते हैं तो उनकी झुकी आँखें मन में उठ रही तरंगो की जुबां बन जाते हैं। आँखों में ही निमंत्रण की स्वीकृति का उत्तर पाकर आँखें बंद कर उस अहसास को जीने के लिए तन मन आतुर होता है। उन आँखों में उभरते अहसासों की कशिश में प्रतिबिम्ब यही कह पाता है उन्हें कि “ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं।“ शुभकामना इतनी कि उनकी आँखों में गम के आँसू न आयें कभी और मुझे जब भी याद करे तो खुशी संग प्रेम से छलछला उठें उनकी ये आँखें .....

~ प्रेम हाइकु ~

 


प्रेम पूजन
गंगा सा जो पावन
तुम मूरत
 
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प्रेम संदेश
हर्षित होता मन
गर्वित भाव
 
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प्रेम अर्पण
निस्वार्थ लेन देन
तुम दर्पण
 
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प्रेम स्वछ्न्द
महकती सुगंध
जीता सम्बंध
 
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प्रेम प्रतिज्ञा
जन्मों का अनुबंध
होती तपस्या
 
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प्रेम है यज्ञ
त्याग होती आहुति 
चाहत स्वाह
 
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प्रेम स्वालंबी
केवल समर्पण
मूल मंत्र
 
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बुधवार, 2 दिसंबर 2020

नमस्कार!

 


नमस्कार! 
हो गई फिर सुबह 
फेसबुक ट्वीटर वाहटसप 
पर उपस्थिति दर्ज अनिवार्य है
वरना लोग बड़ी जल्दी भूल जाते है
आपका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है  
सबसे अच्छा, प्यारा करीब लगने वाला
कब स्मृति से अन्तर्धान हो जाये 
और आप की खुशफहिमी
कब ओंधे मुँह गिर पड़े 
पता ही नहीं चलेगा 
  
चलो अब शुरू करते हैं 
लोगों को रिझाना 
अपना बनाना 
अरे भई !
अपना बनाएँगे तो ही 
भाव मिलेंगे 
वरना इस स्वार्थ की दुनियाँ में
हम किस भरोसे 
अपनी पोल पट्टी खोलेंगे 
उमड़ रहे भावो को  सुनाएँगे
अच्छा - बुरा सुनाकर ही तो 
लाइक (गर्व कराती) पा सकेंगे
खुशनसीब हुये तो 
टिप्पणियाँ भी स्वागत करेंगी   
तंज़ कसे या फिर दिखाये प्यार 
कुछ तो करते अपने सपने साकार 
गतिविधि की लाइव जानकरी 
बटोरो खूब, झूठा या सच्चा प्यार 
चलता रहे हम सबका ये व्यापार 
इसलिए "प्रतिबिम्ब" करता 
आप सबको बारंबार नमस्कार!!!!  

-प्रतिबिम्ब ०२/१२/२०

सोमवार, 30 नवंबर 2020

मेरे किसान

 


मेरे किसान
 
राजनीति की बिछी बिसात में, फंस गया हमारा किसान
बिचौलियों की इस टेढ़ी चाल में, आ गया हमारा किसान
इस कृषि सुधार नीति को, समझ न पाया हमारा किसान
सर्दी में भी दिल्ली किया कूच, गुमराह हुआ हमारा किसान
 
सरल भाषा में समझना होगा, किसी की बातों में न आना
राजनीति ने सदा बढ़ाई खाई है, बिल को तुम समझ लेना
ये वक्त महामारी का है, फैसलों पर तुम विचार कर लेना
ऐतिहासिक किसान बिल है, इसको जीवन - रेखा बना लेना
 
कृषि उपज, व्यापार व वाणिज्य से संबन्धित पहला बिल
जिससे मिलेगी सुविधा, और होगा उत्पादन का संवर्धन
देश की 2,500 एपीसी मंडियां है, राज्यो द्वारा संचलित
सब मंडियों संग, बिन शुल्क देश में मिलेगे तुम्हें विकल्प
 
कृषक कीमत व कृषि सेवा करार है दूसरा किसान बिल
किसानों का सशक्तिकरण व सरंक्षण है इसका विधान
निजी संस्था, एजेन्सियों संग भी, कर पाएंगे समझौता
कीमत का मिलेगा आश्वासन, अब कर पाएंगे अनुबंधन
 
आवश्यक वस्तु संशोधन है, सरकार का ये तीसरा बिल
कुछ वस्तु आवश्यक सूची कानून में, अब किए बदलाव
युद्ध, अकाल स्थिति व अप्रत्याशित उछाल पर सरकार
आवश्यक उत्पादन सूची से कर सकती है उनको बाहर
 
सरकार के व्यक्तव्य को सुनो व समझो, फिर करो ध्यान
न विरोध करो, न करो अन्य राज्यों व लोगों को परेशान
इतने सालों की भ्रष्ट व्यवस्था से, अब निकलो मेरे किसान
अपना हित व आय का सोचो, मत फँसो तुम मेरे किसान
 
-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल / ३० नवंबर, २०२०


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