अपने फेसबुक की स्थिति संदेश को लिखने के बाद और कुछ मित्रो की टिप्पणियो के बाद कुछ भाव इस तरह उभर कर आये।
स्थिति संदेश कुछ इस तरह था:
"मै एक उस पुस्तक की तरह हूँ जिसे श्रेष्ठ पुस्तक कहते है - जिसकी सब प्रशंसा करते हैं परंतु पढ़ता कोई नहीं है।"
मै हूँ एक खुली किताब
फिर भी बुनता रहा एक ख्वाब
लिखता रहा खुद के पन्ने
खुद ही पाठक इसके लिये चुने
हर कोई फिर पलटता रहा
पन्नो से यूं खेलता रहा
कुछ पन्ने अब अध्याय बने
कुछ पन्ने अब वंहा नही रहे
भाव कुछ ही मेरा समझ पाये
बाकि सब देख इसे मुस्कराये
कुछ ध्यान से मुझे बांचने लगे
कुछ मेरे शब्दो को परखने लगे
कुछ ने जिल्त को पंसद किया
कुछ ने अंत को सलाम किया
कुछ ने इसे संभाल कर रख लिया
कुछ ने इसे बस इस्तेमाल किया
कुछ ने किताब छूने से किया इंकार
कुछ ने दिया इसे भरपूर अपना प्यार
कुछ ने इस किताब को मित्रो को दिया
कुछ ने इसे अपना बना लिया
कुछ ने इसे अपने में जगह दी
कुछ को इसने जीने की वजह दी
इस किताब में पन्ने अभी बाकि है
पढ सको मित्रो तो कहानी अभी बाकि है
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
इस किताब में पन्ने अभी बाकि है
जवाब देंहटाएंपढ सको मित्रो तो कहानी अभी बाकि है
कहाने वैसे भी कभी खतम नहीं होती
सुन्दर रचना
बहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएंइस किताब में पन्ने अभी बाकि है
जवाब देंहटाएंपढ सको मित्रो तो कहानी अभी बाकि है
bahut sundar abhivyakti
nice bhut khub
जवाब देंहटाएंਜਬਰਦਸਤ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आप
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