कुछ लमहे यादो के सैलाब में बह जाते है
हर याद में कुछ लमहे बस सिमट जाते है
याद तुम भी आते हो फिर कहीं खो जाते हो
बंद आँखो से देखता हूँ साथ अपने ही पाता हूँ
अहसास तेरा पाते ही आस संवरने लगती है
भाव पिघलने लगते है सांस बिखरने लगती है
फ़िर यादों में भी दूर हो जाती हो
मृग- तृष्णा सी नज़र आती हो
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, आबू दाबी, यू ए ई
(एक पुरानी रचना)
बहुत बढ़िया .
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े -http://www.ashokbajaj.com/2010/10/blog-post_03.html
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
याद तो धरोहर होती है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ।
बंद आँखों में जो सपना है ...
जवाब देंहटाएंलगता मगर अपना है ...
खूबसूरत भावाभियक्ति ...!
बहुत अच्छी रचना.
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