रुठना खासियत है उनकी, खिसियाना अब आदत बन गई
खिझाना वो छोडते नही, मौजदूगी मेरी अब खुरचन बन गई
खामोश हूँ मैं तेरी खातिर, ख्वाहिश थी तेरी, खैरात नही मांगी थी
खस्ता हाल है, खोखला सा जीवन, ख्वार की मुराद नही मांगी थी
खंगालता रहा मैं अपना इश्क, ना जाने क्यो खटकता रहा उन्हें
खटिक सा घूमा मैं उनके शहर और गली, खबर भी ना हुई उन्हें
खंख है जीवन,खपने लगा मैं, खंभार सा रिश्ता, खंडहर सा मैं
ख्यालि नही अब खंडित हूँ मैं,खरमास की तरह खटकता रहा मैं
खलियान सा खिले सोचा था,लेकिन खारा हुआ अब तो रिश्ता
खिदमत का कंहा मिला मौका, एक खरोंच से टूटा अब ये रिश्ता
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
वाह अद्भुत प्रतिबिम्ब भाई ...
जवाब देंहटाएं'ख ' से जितना हो सकता था ...आपने कर दिखाया
बहुत खूब ..
ख्यालि नही अब खंडित हूँ मैं,खरमास की तरह खटकता रहा मैं
जवाब देंहटाएंखरमास का उपयोग बहुत गज़ब का है ...बहुत अच्छी नज़्म
शुक्रिया बबन जी एवम संगीता जी... बस 'ख'अक्षर से कुछ शब्दो को एक्त्र कर रहा थो कुछ श्ब्दो को इसमे पिरो पाया...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
'ख' से कई रंग , भाव पिरोये हुए सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी हार्दिक आभार
हटाएंअद्भुत रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका वंदना जी
हटाएंaap kee kalam bhee kamaal hai Pratiiji..:)
जवाब देंहटाएंरिया जी आप मित्रो का स्नेह - धन्यवाद
हटाएंख की ख़लिश , खरास , खटास ...सब एक साथ ..
जवाब देंहटाएंवाह जनाब !
आभार वाणी जी ... शुभम
हटाएं