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बुधवार, 5 मई 2010

डा. बड़थ्वाल ....अखिर कब मिलेगा सम्मान?

डा. बड़थ्वाल ....अखिर कब मिलेगा सम्मान?
 
(उपर दिये गये दायी तरफ दो वाले चित्र - सौजन्य श्री यू सी जोशी (दिल्ली)

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल १३ दिसंबर१९०१-२४ जुलाई१९४४) हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थ
जैसा कि हिन्दी साहित्य के ठेकेदार जानते है या जानकर भी अनजान बनते है कि डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी मे प्रथम डी. लिट ["हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद"] व शोध विद्दार्थी थे। हिन्दी साहित्य में उनका योगदान नकारा नही जा सकता। उनके बारे मे जानकारी कई जगह उपल्ब्ध है और कई शोध विद्दार्थी आज भी उनके शोध, लेख और निबन्धो को अपना आधार बनाते है। जब मैने पाया कि साहित्य समाज ने भी उन्हे वो स्थान नही दिया जिसके वो हकदार थे तब गत वर्ष मैने भी कुछ एक लेख उनके बारे में लिखे थे ताकि आम लोग भी जान सके इस महान साहित्यकार को हमारे देश या साहित्य समाज ने किसी कोने मे धकेल दिया है। जो अभी भी पढना चाहते है वे मेरे ब्लाग मे उन्हे पढ सकते है जिनके लिन्क नीचे दिये गये है।

1. http://merachintan.blogspot.com/2009/09/blog-post_30.html (डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल - हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी)
2. http://merachintan.blogspot.com/2009/12/blog-post_12.html (१३ दिसम्बर याद आये डा. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल (हिन्दी के प्रथम डी लिट)
3. http://views24hours.com/news.php?lang=hindi&id=412&mid=17 (डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल - एक साहित्य्कार)

एक शोध कार्य([University of California, Santa Cruz CA 95064), first draft in September 1999 on - Guru Nanak and the ‘sants’ : A Reappraisal)  में डा.बड्थ्वाल को इस तरह जाना गया है जिसे मैने अपने फेसबुक के एक नोटस मे भी लिखा था जिससे पता चलता है कि विश्व ने भी उनके लेख या शोध कार्य को बहुत महान माना है:

Mark Juergensmeyer (1987) provides a summary of the ‘central Sant motifs’, based on the work of P. D. Barthwal (1936). Barthwal is acknowledged as a pioneer in attempting to identify “the major themes of Kabir, Nanak, Dadu and others of the ‘nirguna school’”, whose effort “has not been superseded”. Briefly, these themes are:
मार्क ज्यूर्गेन्समेअर  (1987) ने "केंद्रीय संत रूपांकनों" का एक सारांश दिया है जो कि पीडी बडथ्वाल (1936) के काम पर आधारित है. बडथ्वाल को  "निर्गुण स्कूल" के "कबीर के प्रमुख विषयो, नानक, दादू और अन्य" को समझने वालो में से अग्रणी माना जाता है और उनके प्रयासो को अभी तक किसी ने भी खारिज़ नही किया है। संक्षेप मे ये विषय है:
1. The Absolute as Nirguna सम्पूर्ण रूप निर्गुण
2. The Interior Path of Spirituality आध्यात्मिकता का आंतरिक पथ
3. The Necessity of a Guru एक गुरु की आवश्यकता
4. The Fellowship of Satsang सत्संग - सभा

डा. बडथ़्वाल ने अपने साहित्यिक कार्यो द्वारा विदेशी साम्राज्य से छुटकारा दिलाने के संर्घष में भी योगदान दिया और  ‘निर्गुण स्कूल` के शोध से समाज को जोडऩे वाली साहित्यिक विचारधारा को भी साहित्य की श्रेणी मे एक नये आयाम तक पहुंचाया।( उनकी अधिकतर रचनाओ का उल्लेख मेरे ब्लाग मे मौजूद है) डा. बड्थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन  किया और उसे "गोरखवाणी" नाम से स्थान मिला। उन्होने नाथ सिद्धों की रचनाओं का भी संपादन किया था जिसे हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी ने "नाथ सिद्धो की रचनाये" मे शामिल किया है।

आज पुन: लिखने का मन इस तरह कर गया कि एक जगह पढने को मिला कि 2003 में उत्तराखंड की सरकार ने उनके पैतृक घर को एक स्मारक बनाने का आश्वासन दिया था,एवं गढवाल विश्वविद्यालय में एक पीठ स्थापति करने की और प्रतिवर्ष 50,000 रुपये की "साहित्य सम्मान पुरुस्कार" देने की घोषणा की थी.. पर ये सब अन्य घोषणाओ और आश्वसन की तरह कंही दब कर रह गयी है। अपने पैतृ्क स्थान मे भी उन्होने कई रचनाये लिखी आज भी उनके दुर्लभ कृतिया को सहेजने की जरुरत है हालाकि कई चोरी हो गई है या कुछ साहित्य के रहनुमा ये कह कर ले गये कि वे इसे पढेगे और् उसे उचित स्थान देगे जो अब तक गुम है।

भारत के और उत्तराखंड के सम्मानित, हिन्दी व गढवाली के लेखक और् कवि श्री पराशर गौड जी (सब्से पहली गढवाली फिल्म जगवाल" बनाने का श्रेय श्री गौड जी को ही जाता है) की एक टिप्पणी बहुत प्रभावित करती है इस संदर्भ मे "उनका वो मकान , जहा पर श्रीधेय डा साहिब ने जन्म लिया और अँतिम सास ली को मै कभी नहीं भुला पाउँगा ! वो मेरे लिए किसी बदरी नाथ के मदिर से कम नहीं था "

प्रिय मित्रवर प्रतिबिम्ब जी
आभार ! डा साहिब के बारे में लिखकर और उनके बारे में हिंदी वालो को बताने का जो परियास आपने की किया वो सराहनिया !
मुझे दो बार पाली जाने का सौभाग्य मिला ! एक तो जब मै अपनी पहली फीचर फिल्म बनाने का प्रयास कर रहा था ! वहा रहा ! होली से एक दिन पूरब की बात थी जब आने लगा तो सब लोगो ने अनुरोध किया की आप कल रुके , फिर जाना .. दुसरे दिन होली के कुछ साट लिए ! उनका वो मकान , जहा पर श्रीधेय डा साहिब ने जन्म लिया और अँतिम सास ली को मै कभी नहीं भुला पाउँगा ! वो मेरे लिए किसी बदरी नाथ के मदिर से कम नहीं था !
उनका लिखा और और जो रास्ता उन्होंने हमे बताया उसका ऋण तो हम कभी नही दे पायेंगे ! आज तो हिंदी में चाटुकारों और इसी जमात पैदा हो गई जो असली हिंदी के लेखको को अनदेखा सब कुछ अपने नाम करवाने में तुले है ! उन चाटुकारों को नमन ! उनकी चाटुकारिता के लिए " जिदाबाद " ! 
पराशर गौड़
October 2, 2009 3:22 PM 
 (काश हमारा देश या हिन्दी के साहित्यकार या सरकार कुछ येसा सोच पाती)

मैने एक चित्र डा बड्थ्वाल जी के घर(पाली गांव, पौडी गढवाल) का भी प्रेषित किया था कुछ दिन पहले जिसे श्री अमित बड्थ्वाल जी नी भेजा था मुझे। इस चित्र को देखकर दुख हुआ कि इस महान साहित्यकार का घर इस जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है और सरकार (खासकर उत्तराखंड की) इस ओर उदासीनता बरत रही है। वे भारत के गौरव है उत्तराखंड को तो नाज़ होना चाहिये कि येसे महान साहित्यकार ने उत्तराखंड मे जन्म लिया। अगर सही हृदय से हम उन्हे सम्मान देना चाहते है तो आज भी मौका है शुरुआत हो सकती है उन्हे कम से कम उन घोषणाओ को कार्यविंत करके।

मेरा सभी हिन्दी के रहनुमाओ तथा वेब साईट(सभी ग्रुपससमूहो या न्यूज़ पोर्टल ) के कर्ताधर्ताओ से आग्रह है कि वे इस संदेश को  उन सभी तक पहुँचाये जो उन्हे उनके इस सम्मान को दिला सके जो इतने वर्षो से हिन्दी साहित्य मे चाटुकारिता, इर्ष्या या स्वार्थ की भेटं चढा हुआ है।

-       प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी (यूएई)
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