अंबु से निर्मित हुआ इस धरती पर
अंकुरित हुआ इस पावन धरती पर
अंबर में अंकित जैसा एक सितारा
अंलकार सा सजा बना जैसा अंगवारा
अंशु सा चमकता, अंशुमान का पदार्पण हुआ हो जैसे
फूल अंकटक सा खिल मेरे तन से लिपटा हो अब जैसे
अंचित है सब प्रियजन, तुम भी अंबक में बसते हो
अंजौरी बन मेरे जीवन में, अंतर्मन मे तुम रहते हो
अंचल सरकता है, टखने में अंदुक सज़ते है
देख तुझे अंतरपट मेरे तब खुल जाते है
अंजन बन किसी की नयनो में बसता हूँ
अंगार बन किसी की नयनो में खटकता हूँ
अंगन्यास किया रिश्तो के बंधन में बंधने के लिये
इंसानियत एक अंगत्राण है समाज मे जीने के लिये
अंतर्दाह कभी गिरा देता है कभी उठाता है
हमारा कर्म कभी हमें अंतकारी बनाता है
जीवन मृ्त्यु का अंतराल जीना है हमें
सत्य है अंतगति, सामना करना है हमें
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
अंचित है सब प्रियजन, तुम भी अंबक में बसते हो
जवाब देंहटाएंअंजौरी बन मेरे जीवन में, अंतर्मन मे तुम रहते हो
सुंदर भाव ......बेहतरीन अभिव्यक्ति .....
उच्च कोटि की रचना...शब्द और भाव का अद्भुत संगम...बधाई स्वीकारें..
जवाब देंहटाएंनीरज
प्रतिबिम्ब जी ! बहुत सुन्दर भाव .. अ शब्दों के मोतियों से सजाई ये कविता रुपी माला भावनाओ का सागर और कुछ बाते भी बताता है.. सुन्दर रचना .. अम्बु से ..
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य को उद्घाटित करती अति सुन्दर रचना ...शुभकामनाएं सर !!!
जवाब देंहटाएंसादर !!