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गुरुवार, 20 जनवरी 2011

अंबु से...




अंबु से निर्मित हुआ इस धरती पर
अंकुरित हुआ इस पावन धरती पर

अंबर में अंकित जैसा एक सितारा
अंलकार सा सजा बना जैसा अंगवारा

अंशु सा चमकता, अंशुमान का पदार्पण हुआ हो जैसे 
फूल अंकटक सा खिल मेरे तन से लिपटा हो अब जैसे

अंचित है सब प्रियजन, तुम भी अंबक में बसते हो
अंजौरी बन मेरे जीवन में, अंतर्मन मे तुम रहते हो

अंचल सरकता है, टखने में अंदुक सज़ते है
देख तुझे अंतरपट मेरे तब खुल जाते है

अंजन बन किसी की नयनो में बसता हूँ
अंगार बन किसी की नयनो में खटकता हूँ

अंगन्यास किया रिश्तो के बंधन में बंधने के लिये
इंसानियत एक अंगत्राण है समाज मे जीने के लिये

अंतर्दाह कभी गिरा देता है कभी उठाता है
हमारा कर्म कभी हमें अंतकारी बनाता है

जीवन मृ्त्यु का अंतराल जीना है हमें
सत्य है अंतगति, सामना करना है हमें

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

हौसला है तो ..




जीत ना मिले चाहे, हौसला बरकरार रहे
प्यार ना मिले चाहे, ज़ज़्बा बरकरार रहे

राह चाहे आसान ना हो, कदम बढते रहे
अंधेरा बेसक राह छिपाये, चिराग जलते रहे

नसीब चाहे साथ ना दे, लकीरे  बनती रहे
गुम हुई अगर सदाये, आवाज़ लगती रहे

जिंदगी चाहे मुंह मोड ले, जंग चलती रहे
खुशिया चाहे ना मिले, महफिल सजती रहे

प्रश्न कठिन है जिंदगी के, उतर देते रहे
फल चाहे ना मिले अभी, कर्म करते रहे

फूल चाहे मुरझा जाये, महक बिखरती रहे
खुदा को ना देखा हमने, तलाश चलती रहे

इस दुनिया में आये है तो जिंदगी जीना है
जीने का मज़ा मुस्कराहट और हौसला है
हौसला है तो राहे है, राहे है तो मंजिल है
तेरे हौसले में 'प्रतिबिम्ब' की दुआ शामिल है।

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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