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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

नसीब




नसीब अपना - अपना 
आप हकीकत हम सपना 
आपके माई बाप, हम अनाथ
आपके महल, हमारा फुटपाथ

न भूख सहने को रोटी है 
न तन ढकने को वस्त्र है 
न कोई सुध हमारी लेता है 
न कोई अब हमें अपनाता है 

मिल जाये खाने को तो खा लेते है 
न मिले तो कहीं भूखे पेट सो लेते है 
मेरे सपनो को बस आँख मूँद देख लेता हूँ 
रहने को जमी और छत आसमा बन जाता है 

मैं चर्चा का विषय हर मंच पर बन जाता हूँ 
तस्वीरे दिखाते आप मैं सहानूभूति बन जाता हूँ 
क्या नेता, अब तो जनता भी हमें भुनाना जानती है 
हकीकत से दूर लेखो तस्वीरो में वाह वाह लूट ले जाते है 

आप तो पीते बोतल का पानी, हम गंदा पी, जी लेते है 
आपकी फेंकी बोतल से भी चप्पल का जुगाड़ कर लेते है 
महंगे रेस्टोरेंट में खाकर आप, 'टिप्स' खूब वहाँ दे कर आते है 
हमने फैलाये हाथ तो कर्म करने की आप नसीहत हमे दे जाते है 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 


(यह चित्र https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/ "तस्वीर क्या बोले" समूह में पेश किया था  जिसे  पुन: ब्लॉग तस्वीर क्या बोले में भी प्रेषित किया गया था )



रविवार, 27 जनवरी 2013

कर्म




हवाए सर्द है 
प्रेम का मौसम गर्म है 
ठिठुर रहा तन 
दिल में छिपाये मर्म है 
आशिकों के शहर में 
मुस्कान में छिपा दर्द है  
मोहब्बत सिखाये धर्म 
फिर भी मन में छिपाये गर्द है 
अपराध होते आम 
घिनौनी मानसिकता देख आती शर्म है 
'प्रतिबिम्ब' जानता इतना 
इंसान की पहचान केवल उसका कर्म है 
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